विकसित यूपी का सपना: पंचायत बने माई-बाप, समिति बने सहारा
राजेंद्र नाथ तिवारी
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बड़े-बड़े नेता मंच पर चढ़के कहते हैं—“उत्तर प्रदेश को नंबर-वन बनाएँगे, इसे विकसित राज्य बना देंगे।” लेकिन भइया, गाँव मज़बूत न हुआ तो यूपी कभी मज़बूत न होइ।
आज पंचायत के हाल देख लो—जिन्हें गाँव का घर-आँगन सँभालना चाही, वही दाना-पानी के फेर में फँस गईं। प्रधान जी का दिमाग बस फंड में कमीशन पर चलता है। सचिव जी का खाता मोटा होता है, लेकिन गाँव की नाली, सड़क अउर तालाब जस-के-तस पड़े रहत हैं।
उदाहरण भी आँख खोल देत हैं—
- अमेठी की एक पंचायत ने गौशाला अउर तालाब बनाके बायोगैस प्लांट लगाया। आज उ पंचायत सरकार के फंड का मुँह नाहीं ताकती, खुद राजस्व कमाती है।
- जबकि बस्ती, गोंडा, बलरामपुर के गाँव में ऐसी पंचायत भी हैं जउनके पास “पर्दा झाड़े का झाड़ू तौ है, पर घर कचरे से भरा पड़ा है।”
अब सहकारी समितियन का हाल सुनो। किसान खातिर बनीं समितियाँ आजकल नेता अउर बाबू के हाथ की कठपुतली बन गईं। चुनाव के टाइम जिसको टिकट देवे की सोचो, उसी के हाथ समिति थमा दो। किसान बेचारा सोचता रह जाला—“हमरी समिति हमरी कब होगी?”
देखो भइया, गाँव बिना आत्मनिर्भर बने यूपी के विकास का सपना बस कागज पे लिखल कहानी है। जापान अउर जर्मनी युद्ध से उठके आज ताकतवर बने, तौ काहे? काहे कि उनका पंचायत अउर समिति अपना काम खुद सँभाल लीं।
हमरे गाँव की पंचायत अगर खुद दूध, सब्जी, बागवानी, तालाब अउर छोटे-छोटे उद्योग से कमाई करे, तौ सरकारी खैरात पर निर्भर न रहना पड़ी। समिति अगर सचमुच किसानन के बीज, खाद, अनाज अउर दुग्ध उद्योग सँभाले, तौ किसान साहूकार के चंगुल से छूट जाई।👉 साफ बात:
“गाँव उठिहें तौ यूपी उठी। पंचायत अउर समिति मज़बूत होइहें तौ यूपी मजबूत होई।”
नाहीं तौ, नेता मंच से चाहे लाख नारा लगा लें, पर गाँव की सड़क गड्ढा ही रही, किसानन की खेती कर्जा ही रही।
अकेले अकेले सहकारिता मंत्री के हाथ पांव करने से कुछ नहीं होगा जब तक समवेत प्रयास नहीं होगा आज समवेत प्रयास से मोदी का विजन 2047 ग्राम पंचायत सहकारिता से होकर के जाता है.