मंगलवार, 30 सितंबर 2025

आइजीआरएस के प्रति लापरवाही न करें अधिकारी, कलक्टर

 

बस्ती 30 सितम्बर 2025 
, आईजीआरएस के अन्तर्गत विभिन्न विभागों से संबंधित मा. मुख्यमंत्री, जिलाधिकारी, आनलाइन व पीजी पोर्टल के माध्यम से प्राप्त शिकायतों के निस्तारण के समीक्षा हेतु कलेक्टेªट सभागार में आयोजित बैठक की अध्यक्षता करते हुए जिलाधिकारी रवीश गुप्ता ने निर्देश दिया कि प्राप्त शिकायतों को समय से निस्तारित करें तथा कोई भी प्रकरण डिफाल्टर की श्रेणी में ना रहने पायें अन्यथा की स्थिति में संबंधित अधिकारी की जिम्मेदारी निर्धारित करते हुए प्रभावी कार्यवाही की जायेंगी। उन्होने यह भी कहा कि संदर्भो के निस्तारण में गुणवत्ता 
का विशेष ध्यान दिया जाय। सभी अधिकारीगण नियमित रूप से पोर्टल पर संदर्भो को प्राप्त होते ही निस्तारण की कार्यवाही सुनिश्चित करायें।


     उन्होने समस्त विभागाध्यक्षों को निर्देश दिया कि आईजीआरएस पोर्टल पर प्राप्त शिकायती संदर्भो का निस्तारण करते हुए संदर्भो के डिफाल्टर होने की तिथि से तीन दिन पहले ही पोर्टल पर अपलोड करना सुनिश्चित करें, जिससे शासन स्तर से फीडबैक लेने पर शिकायतकर्ता अपनी संतुष्टि का फीडबैक दे सकें, जिससे जनपद की रैंकिंग बेहतर हो सकें। बैठक में सीडीओ सार्थक अग्रवाल, एडीएम प्रतिपाल सिंह चौहान, सीआरओ कीर्ति प्रकाश भारती, सीएमओ डा. राजीव निगम, डीडीओ अजय कुमार सिंह, डीसी मनरेगा संजय शर्मा, उप जिलाधिकारी शत्रुध्न पाठक, मनोज प्रकाश, हिमांशु कुमार, सत्येन्द्र सिंह, डीपीआरओ धनश्याम सागर, बीएसए अनूप तिवारी, ईडीएम सौरभ द्विवेदी सहित संबंधित विभागीय अधिकारीगण उपस्थित रहें।  

राहुल गांधी: राजनीति के ‘कॉमेडी किंग’—इल्ज़ाम, माफ़ी और शर्मिंदगी का सीरियल


बस्ती, उत्तरप्रदेश

राहुल गांधी की राजनीति का रंग अब इतना चटख हो गया है कि देखकर लगता है, जैसे किसी कॉमेडी शो की रंगमंच सजाई गई हो—माइक पकड़ो, ऊँचे सुर में इल्ज़ाम ठोंक दो, और जब पर्दा उठ जाए तो स्टेज से चुपचाप माफ़ी लेकर उतर लो। ये वही ‘शहजादा’ हैं, जो हर बार लोकतंत्र के खेल में मस्त हाथ  आजमाते हैं, लेकिन हकीकत का सामना होते ही भाग खड़े होते हैं।इल्ज़ामों का ‘फुल पैसा वसूल’ शो सावरकर हो या राफ़ेल, राहुल गांधी की डायलॉग डिलीवरी में कोई कमी नहीं रहती। हर बयान फिल्मी, हर इल्ज़ाम झन्नाटेदार—“चौकीदार चोर है!” जैसे नारों से माहौल गरमाते हैं, फिर सुप्रीम कोर्ट की डांट पड़ते ही ‘सॉरी’ का पॉपकॉर्न फोड़ देते हैं। और जनता? हर हफ्ते नया एपिसोड देखती है—कभी इतिहास पर तंज, कभी अदालत में जुर्माना!अदालत भी हर बार देखती है तमाशा मद्रास हाई कोर्ट ने वोट चोरी के इल्ज़ाम को “completely misconceived” कहते हुए राहुल के पेट से हवा निकाल दी, जुर्माने की फूंक मार दी ₹1,00,000 की! सोचिए, अदालत का रोल जिस कॉमेडी शो में गेस्ट अपीयरेंस जैसे बन जाए, वहाँ असली मुकाबला सिर्फ ‘शोर बनाम सबूत’ का रह जाता है।

 अफ़सोस, राहुल गांधी सिर्फ शोर ही करते हैं.कांग्रेस: शर्मिंदगी का वारिस कांग्रेस पार्टी तो अब जैसे ‘माफ़ियों की दुकान’ चला रही है। एक दिन सावरकर पर पांव फिसलता है, तो दूसरे दिन सुप्रीम कोर्ट से पिटाई खाकर निकलते हैं। इतना नुकसान किसी कॉमेडियन को भी शो बंद करने को मजबूर कर दे, मगर यहाँ तो सीजन दर सीजन वही नाटक चलता है.जनता: हँसी और हताश जनता अब राहुल गांधी के एपिसोड में रोमांच नहीं, बल्कि ठगी और निराशा महसूस करती है। बार-बार इल्ज़ाम, बार-बार माफ़ी—नेतृत्व का पूरा मजाक बन चुका है। लोग पूछ रहे हैं, “राजनीति सीरियस है या ‘स्टेंड-अप कॉमेडी’ मंच?” खुद कांग्रेस भी उलझन में है कि आगे चुनावी रण में ये किस स्क्रिप्ट से उतरेंगे.

 राहुल गांधी—राजनीति के मस्तीबाज राहुल गांधी ने भारतीय राजनीति को ऐसी हल्की फुलकी ‘कॉमेडी’ बना दिया है, जिसमें डायलॉग हैं, हंसी है, शोर है, मगर दमदार कहानी और सच्चे किरदार की भयंकर कमी! अब पार्टी और देश की जनता को चाहिए एक असली नेतृत्व, वरना ये कॉमेडी बहुत भारी पड़ेगी।“राहुल गांधी की पॉलिटिक्स—पहले आग, फिर माफ़ी… और अंत में ताली, हंसी और शर्मिंदगी।”और कांग्रेस? केवल ताली बजाती है अगर ताली न बजाए तो कमीडियन की गाली खाय.

बस्ती में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुली, ‘रेडक्रॉस’ सोसायटी के चेयरमैन का अस्पताल ‘मेडीवर्ल्ड’ बिना अनुमति चल रहा था, लाइसेंस निरस्त, कथित अस्पताल पर भी ताला, अर्जित किया था शार्टकट सम्मान!

 


बस्ती में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुली,

‘रेडक्रॉस’ सोसायटी के चेयरमैन का अस्पताल ‘मेडीवर्ल्ड’ बिना अनुमति चल रहा था, लाइसेंस निरस्त, कथित अस्पताल पर भी ताला, अर्जित किया था  शार्टकट सम्मान!, अस्पताल के बगल ही उसका अभ्यारण्य!

बस्ती। जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की नाक के नीचे वर्षों से चल रही स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही आखिरकार उजागर हो ही गई। रेडक्रॉस सोसायटी के चेयरमैन और चर्चित चिकित्सक डॉ. प्रमोद कुमार चौधरी का मेडीवर्ल्ड अस्पताल बिना मान्यता के संचालित होता रहा और विभाग सोता रहा। अब जब मामला तूल पकड़ गया तो आनन-फानन में लाइसेंस निरस्त करने का ढोंग रचकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा जा रहा है।

जिला प्रशासन और स्वास्थ्य महकमा कटघरे में

  • सवाल यह है कि जिस अस्पताल में रोजाना सैकड़ों मरीज भर्ती होते रहे, सर्जरी होती रही, करोड़ों का कारोबार चलता रहा, वहां वर्षों तक विभागीय टीमों की आंखें बंद क्यों रहीं?
  • क्या आम गरीबों से वसूली गई मोटी रकम का हिस्सा ‘ऊपर’ तक पहुंचता रहा, इसलिए कार्रवाई दबाई गई?
  • एकाएक नोटिस और लाइसेंस निरस्ती की कार्यवाही अब महज ‘औपचारिकता’ नहीं तो और क्या है?

लाइसेंस के नाम पर खुला खेल

भाजपा नेता हरिश सिंह ने 20 मार्च को ही नोटिस जारी कर दिया था, लेकिन अस्पताल आराम से चलता रहा। 29 दिन बाद भी जवाब न मिलने पर आखिरकार लाइसेंस निरस्त कर दिया गया। सवाल यह है कि यदि सब कुछ गैरकानूनी था तो अस्पताल को इतने दिनों तक खुला रखने का जिम्मेदार कौन है?

सत्ता-प्रभाव का संरक्षण!

डॉ. प्रमोद चौधरी रेडक्रॉस सोसायटी के चेयरमैन हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकारी पद और राजनीतिक रसूख की आड़ में स्वास्थ्य व्यवस्था के नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं। बिना मान्यता के अस्पताल का निर्माण और संचालन ‘साफ-साफ अपराध’ है। लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूर्ति की जा रही है।

जनता से धोखा, मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़

जिस अस्पताल से मरीज इलाज और भरोसा खरीद रहे थे, वहां उनकी जिंदगी दांव पर लगी थी। बिना मान्यता का अस्पताल चलाना सीधे-सीधे मरीजों की जान से खिलवाड़ है। सवाल है – अगर इलाज के दौरान कोई हादसा हो जाता तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेता?

व्यवस्था के लिए कड़ा संदेश जरूरी

यह मामला सिर्फ एक अस्पताल का नहीं है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की सड़ी-गली व्यवस्था का आईना है। सरकार और स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि सिर्फ लाइसेंस निरस्त करने की दिखावटी कार्रवाई न कर, जिम्मेदार अधिकारियों और संरक्षकों पर भी मुकदमा दर्ज करे। वरना जनता यही मानेगी कि यह पूरा खेल ‘सत्ता संरक्षण’ में चल रहा था और  क्या आगे भी अभय मिलेगा?

न्याय का बाजार, या नोटों से फैसला

 


न्याय  का  का बाजार, या नोटों से फैसला

दिल्ली के दो जजों द्वारा 6 करोड़ की धोखाधड़ी के आरोपियों को नियम तोड़कर बेल देने पर सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और दोनों को ट्रेनिंग पर भेज दिया गया। सवाल यह है कि क्या इतनी गंभीर चूक का इलाज केवल "ट्रेनिंग" है?


यह कोई मामूली मामला नहीं था। हाई कोर्ट ने पहले ही आरोपियों की धोखाधड़ी पर कठोर टिप्पणी की थी। इसके बावजूद निचली अदालत ने सबूतों की अनदेखी कर बेल थमा दी। यह न्यायपालिका की उसी मानसिकता को उजागर करता है, जहां गरीब छोटे अपराधों के लिए सालों जेल में सड़ते हैं और बड़े ठग आराम से बेल पर घूमते हैं।

इतिहास गवाह है—2G घोटाला, चारा घोटाला और न जाने कितने बड़े केसों में बेल का वरदान हमेशा ताकतवरों के हिस्से आया। सवाल है: क्या कानून किताबों में गरीब के लिए और बेल के रूप में अमीर के लिए अलग-अलग है?

सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की चूक पर भी फटकार लगाई, लेकिन असली चिंता अदालतों की है। क्योंकि अगर न्याय के मंदिर में ही ढिलाई हो तो जनता भरोसा कहाँ करे?

न्यायपालिका को आत्ममंथन करना होगा—क्या वह जनता की आशा है या VIP अपराधियों का आश्रय? वरना आने वाली पीढ़ियाँ अदालतों को "न्याय का मंदिर" नहीं, बल्कि “बेल का बाज़ार” कहेंगी।

भानपुर-रुधौली तहसील सभागार में प्रशासन-कार्यकर्ताओं की समन्वय बैठक सम्पन्न


भानपुर-रुधौली तहसील सभागार में प्रशासन-कार्यकर्ताओं की समन्वय बैठक सम्पन्न

बस्ती। भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष विवेकानन्द मिश्र के मार्गदर्शन में मंगलवार को भानपुर और रुधौली तहसील सभागार में प्रशासन एवं कार्यकर्ताओं की संयुक्त समन्वय बैठक आयोजित हुई।
भानपुर की बैठक का संचालन अमृत वर्मा ने तथा रुधौली की बैठक का संचालन राकेश शर्मा ने किया।


बैठक में कार्यकर्ताओं ने बिजली कटौती, राजस्व कार्यों में विलंब, खाद्यान वितरण और स्वास्थ्य सेवाओं की कमियों जैसी समस्याओं को अधिकारियों के सामने रखा। इन शिकायतों को विभागीय अधिकारियों ने गंभीरता से सुना और शीघ्र समाधान का भरोसा दिया।

जिलाध्यक्ष विवेकानन्द मिश्र ने अधिकारियों को सख्त निर्देश देते हुए कहा कि भाजपा का कोई भी कार्यकर्ता यदि किसी भी विभागीय कार्यालय में पहुंचे तो उसकी बातों को सम्मानपूर्वक सुना जाए और निर्धारित समय सीमा के भीतर निस्तारण सुनिश्चित किया जाए।

बैठक में उपजिलाधिकारी, तहसीलदार, सीओ रुधौली, बिजली, पुलिस, राजस्व, खाद्यान, नगर पंचायत और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी मौजूद रहे। वहीं भाजपा के विभिन्न मंडलों के पदाधिकारी, ब्लॉक प्रमुख यशकान्त सिंह सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ता और जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे।

यदि समाज सेवा व्यवसाय है,तो राजनीति व्यवसाय क्यों नहीं?, भावेष पाण्डेय

 


बस्ती, उत्तरप्रदेश से भावेष पाण्डेय
अध्यक्ष, नेशनल एसोसिएशन आफ यूथ, भारत
 सेवा यदि व्यवसाय, तो राजनीति क्यों नहीं?धरती पर हर जीव की मूल आशा होती है—जीवन, सुख और मर्यादा। जब मनुष्यों का जीवन बनता है सहजीवन, तब जन्म लेता है समाज सेवा का पुण्य-कार्य। जैसे गंगा के जल में जीवन का अमृत है, वैसे ही समाज सेवा में जीवन का अर्थ है।समाज सेवा वह नदी है जो निर्मल जल लिए बसंत की तरह बहती है। हर मर्माहत हृदय को छूती है, हर दुःखी को आश्वासन देती है। इस सेवा में श्रम, समर्पण और कुछ आजीविका का भी स्थान है। 

क्योंकि बिना संसाधन के सेवा अधूरी है।आज का युग बड़ा चतुर है, जहां सेवा ने पाया है स्वरूप व्यवसाय का। गैर सरकारी संगठन, फाउंडेशन, अनुदान, वेतन—सब कुछ ओढ़ लिए हैं सेवा के वस्त्र। यह व्यवसाय नहीं तो क्या? मानवता की सेवा का यह व्यवसाय कठोर व्यापार-सरीखा है, जिसमें प्रबंध, ऑडिट, लक्ष्य सभी होते हैं।फिर प्रश्न उठता है—यदि समाज सेवा व्यवसाय हो सकता है, तो फिर राजनीति क्यों नहीं?राजनीति : धर्म भी, यज्ञ भीराजनीति एक अग्नि है, जो तपती और जलाती है। 
यह केवल सत्ता का संग्राम नहीं, बल्कि समाज के प्राणों की रक्षा का धर्म भी है। समाज सेवा जहां पानी की ठंडी बूंद सी मनोरम है, राजनीति सूर्य की ज्योति, निरंतर तपाशील है।गांधी ने इसे सत्य और अहिंसा की साधना कहा। उन्होंने कहा, “राजनीति सेवा का सर्वोच्च रूप है, यदि उसमें सत्कर्म और समर्पण हो।” राजनीति तो वह यज्ञ है जिसमें जनकल्याण के लिए हृदय-बलि चाहिए। पर विडम्बना देखो—जब सेवा को पवित्र माना जाता है, राजनीति को दूषित क्यों?राजनीति के मैदान में झूठ, धोखा, लड़ाई, और छल  होते हैं, इसलिए इसकी छवि धूमिल हुई। पर हे नर, छाया के बिना प्रकाश असंभव है। जहाँ शासन हो, परिवहन हो, शिक्षा हो, वहाँ राजनीति की जड़ें मजबूत होती हैं।
 सेवा केवल मरहम लगाना है, राजनीति वो औषधि है जो समाज के रोगों को जड़ से मिटाती है।समाज सेवा और राजनीति का मिलनसमाज सेवा और राजनीति दोनों रूप हैं एक ही मदिरा के। समाज सेवा चुपचाप मनुष्यों के घावों पर मरहम लगाती है, राजनीति संघर्ष भरे रणभूमि पर ध्वनि और आहट पैदा करती है।समाज सेवा में निधि, फंडिंग, और अभियान होते हैं। राजनीति में चुनाव, प्रस्ताव और निर्णय। पर अंततः दोनों को जीवित रखने वाले हैं—निष्ठा, परिश्रम और जनसंपर्क।ये दोनों गंगा और यमुना हैं, जो मिलकर भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और जनभावनाओं को आकार देते हैं। एक अमृत का सागर, दूसरा नीति और सत्ता का समुद्र।
 यदि इन दोनों का समन्वय हो, तो संपूर्ण राष्ट्र का विकास संभव होगा।उपसंहार : एक यज्ञ समान व्यवसायराजनीति और समाज सेवा, दोनों को समान स्थान देना होगा।
 यदि समाज सेवा व्यावसायिक हो सकती है, तो राजनीति भी उसी व्यवसाय से कम नहीं। अंतर केवल जनता की धारणा और इतिहास के भेद का है।राजनीति सृजन, संग्राम और समर्पण की मिली-जुली कला है। इसे व्यवसाय कहने में कोई अपमान नहीं, यदि उसमें सेवा का भाव बना रहे। कर्तव्य और धर्म का पथ राजनीति का मार्गदर्शक होना चाहिए.
क्या सरकारे स्वत: सज्ञान लेकर व्यवसाय घोषित करने की पहल करेंगी?

सोमवार, 29 सितंबर 2025

भारत मे राजनीति को ब्यवसाय या उड़द्योग बनाने पर बहस हो, राजेंद्र नाथ तिवारी

 भारत में राजनीतिक दलों और नेताओं की वित्तीय और व्यावसायिक हिस्सेदारी बढ़ने के कारण यह बहस तेज हुई है कि क्या राजनीति अब सेवा का माध्यम नहीं रह गई बल्कि एक बड़ा व्यापार और उद्योग बन गई है।


इस विषय पर आलोचना के कई बिंदु सामने आए हैं। चुनावों में खर्च का भारी खेल, दलबदल की राजनीति, सत्ता के लिए अनैतिक गठजोड़ और निजी लाभ के लिए नीतियों का दुरुपयोग जैसे पहलू इसे उद्योग जैसा बनाते हैं। राजनीतिक संपन्नता अक्सर व्यवसायी हितों से जुड़ी होती है, जहां पूंजी निवेश और राजनैतिक लाभ के बीच जटिल संबंध बन गए हैं।भारत में राजनीतिक निर्णयों और नीतियों पर बड़े उद्योगों का प्रभाव भी लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे जनहित की अपेक्षा व्यापारिक हितों की प्राथमिकता देखने को मिलती है। इस तरह की सत्ता और पूंजी के गठजोड़ से लोकतंत्र की मूल भावना प्रभावित होती है और जनता का विश्वास कमजोर होता है।वहीं, उद्योग जगत का तर्क है कि वे विकास और समाज सुधार में भूमिका निभा रहे हैं, और राजनीति का यह व्यवसायिक स्वरूप आर्थिक प्रगति के लिए आवश्यक भी माना जा सकता है। 

परंतु सार्वजनिक विमर्श में इस व्यापारिक राजनीति की सीमाओं, प्रभावों और खतरों पर गंभीर बहस की जरूरत है।इस पूरे विषय पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस कराने का सुझाव दिया जा रहा है ताकि राजनीति को पुनः सेवा का क्षेत्र बनाने के लिए उपयुक्त कदम उठाए जा सकें और लोकतंत्र मजबूत हो सके।यह बहस इस बात को समझने की कोशिश करती है कि क्या राजनीति अब भी जनसेवा है या केवल सत्ता और धन के खेल के रूप में संकुचित हो गई है। इससे लोकतंत्र की मूल भावना की रक्षा के लिए आवश्यक सुधारों की दिशा मिल सकती है।यह मुद्दा समकालीन भारत का एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक प्रश्न है, जिस पर आक्रामक और संवेदनशील विचार-विमर्श हो रहा है।

विकसित यूपी का सपना: पंचायत बने माई-बाप, समिति बने सहारा

 

विकसित यूपी का सपना: पंचायत बने माई-बाप, समिति बने सहारा

राजेंद्र नाथ तिवारी

rntiwari basti @gmail. Com

बड़े-बड़े नेता मंच पर चढ़के कहते हैं—“उत्तर प्रदेश को नंबर-वन बनाएँगे, इसे विकसित राज्य बना देंगे।” लेकिन भइया, गाँव मज़बूत न हुआ तो यूपी कभी मज़बूत न होइ।


आज पंचायत के हाल देख लो—जिन्हें गाँव का घर-आँगन सँभालना चाही, वही दाना-पानी के फेर में फँस गईं। प्रधान जी का दिमाग बस फंड में कमीशन पर चलता है। सचिव जी का खाता मोटा होता है, लेकिन गाँव की नाली, सड़क अउर तालाब जस-के-तस पड़े रहत हैं।

उदाहरण भी आँख खोल देत हैं—

  • अमेठी की एक पंचायत ने गौशाला अउर तालाब बनाके बायोगैस प्लांट लगाया। आज उ पंचायत सरकार के फंड का मुँह नाहीं ताकती, खुद राजस्व कमाती है।
  • जबकि बस्ती, गोंडा, बलरामपुर के गाँव में ऐसी पंचायत भी हैं जउनके पास “पर्दा झाड़े का झाड़ू तौ है, पर घर कचरे से भरा पड़ा है।”

अब सहकारी समितियन का हाल सुनो। किसान खातिर बनीं समितियाँ आजकल नेता अउर बाबू के हाथ की कठपुतली बन गईं। चुनाव के टाइम जिसको टिकट देवे की सोचो, उसी के हाथ समिति थमा दो। किसान बेचारा सोचता रह जाला—“हमरी समिति हमरी कब होगी?”

देखो भइया, गाँव बिना आत्मनिर्भर बने यूपी के विकास का सपना बस कागज पे लिखल कहानी है। जापान अउर जर्मनी युद्ध से उठके आज ताकतवर बने, तौ काहे? काहे कि उनका पंचायत अउर समिति अपना काम खुद सँभाल लीं।

हमरे गाँव की पंचायत अगर खुद दूध, सब्जी, बागवानी, तालाब अउर छोटे-छोटे उद्योग से कमाई करे, तौ सरकारी खैरात पर निर्भर न रहना पड़ी। समिति अगर सचमुच किसानन के बीज, खाद, अनाज अउर दुग्ध उद्योग सँभाले, तौ किसान साहूकार के चंगुल से छूट जाई।👉 साफ बात:

“गाँव उठिहें तौ यूपी उठी। पंचायत अउर समिति मज़बूत होइहें तौ यूपी मजबूत होई।”
नाहीं तौ, नेता मंच से चाहे लाख नारा लगा लें, पर गाँव की सड़क गड्ढा ही रही, किसानन की खेती कर्जा ही रही।

अकेले अकेले सहकारिता मंत्री के हाथ पांव करने से कुछ नहीं होगा जब तक समवेत प्रयास नहीं होगा आज समवेत प्रयास से मोदी का विजन 2047 ग्राम पंचायत सहकारिता से होकर के जाता है.

अवैध मदरसे पर छापा, 40 नाबालिग छात्राएं मिलीं

 अवैध मदरसे पर छापा, 40 नाबालिग छात्राएं मिलीं

संचालक ने लड़कियों को शौचालय में छिपाने की कोशिश की

बहराइच। 

जिले में बुधवार को प्रशासन ने एक अवैध मदरसे पर छापा मारकर बड़ा खुलासा किया। उपजिलाधिकारी अश्वनी पांडेय की अगुवाई में जब तलाशी ली गई तो अंदर से 40 नाबालिग छात्राएं मिलीं।


सूत्रों के अनुसार, मदरसा संचालक खलील अहमद अधिकारियों को काफी देर तक अंदर जाने से रोकता रहा। लेकिन एसडीएम की सख्ती के बाद उसे दरवाजे खोलने पड़े। तलाशी के दौरान कई छात्राएं शौचालय में बंद पाई गईं। अधिकारियों का कहना है कि संचालक ने उन्हें छिपाने की कोशिश की थी।

घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस भी मौके पर पहुंची और जांच शुरू कर दी। पूरे मामले की सूचना अल्पसंख्यक कल्याण विभाग को भेज दी गई है। अब प्रशासन मदरसे के संचालन, पंजीकरण, वित्तीय स्रोत और छात्राओं के अभिभावकों से जुड़ी जानकारी एकत्र कर रहा है।


ज़ब साधू ही बने अपराधी??

 सम्पादकीय

धार्मिक आस्था और अध्यात्म का स्वरूप भारतीय समाज में हमेशा से संवेदनशील और पवित्र माना गया है। लेकिन जब कोई तथाकथित साधु या स्वामी इस आस्था का दुरुपयोग कर अपने स्वार्थों की पूर्ति करता है, तब वह न केवल धर्म के मूल आदर्शों को ठेस पहुँचाता है, बल्कि समाज में विश्वास की बुनियाद को भी कमजोर कर देता है। दिल्ली के वसंतकुंज स्थित आश्रम से जुड़े चैतन्यानंद सरस्वती उर्फ पार्थसारथी का प्रकरण इसी वास्तविकता की कठोर मिसाल है।यह मामला दो स्तरों पर गंभीर है। पहला, नारी गरिमा के खिलाफ अपराध—आश्रम में रह रही छात्राओं से छेड़छाड़ जैसे कृत्य समाज की संवेदनशीलता को झकझोरते हैं और हमारे संस्थानों की सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाते हैं।


 दूसरा, आर्थिक अनियमितताओं और संपत्ति हड़पने का प्रयास—धार्मिक संस्थाओं की संपत्ति पर अवैध कब्जे और जालसाजी से अर्जित लाभ केवल निजी स्वार्थ को जाहिर करता है।ध्यान देने योग्य यह तथ्य है कि समय-समय पर ऐसे आडंबरपूर्ण संत समाज में प्रकट होते रहे हैं और वे भोले-भाले श्रद्धालुओं की भावनाओं को शोषण का साधन बना देते हैं। उनका असली चेहरा तब खुलता है जब आर्थिक अपराध और यौन शोषण जैसी प्रवृत्तियाँ सामने आती हैं। इस मामले से यह स्पष्ट है कि धार्मिक संस्थाओं को कानूनी पारदर्शिता और जवाबदेही के दायरे में लाना अब समय की आवश्यकता बन चुका है।पुलिस और न्यायपालिका की भूमिका यहाँ निर्णायक होगी।

 पीड़ितों को न्याय दिलाना और अपराधी को कठोरतम सज़ा दिलाना समाज में सही संदेश देगा कि कानून की पकड़ से कोई ऊपर नहीं है। साथ ही इस केस से सार्थक सीख यह लेनी होगी कि धार्मिक संस्थानों की आड़ में पनप रही गड़बड़ियों पर सरकारी निगरानी और प्रशासनिक सतर्कता मजबूत बनाई जाए।धर्म लोगों के जीवन में संस्कार, करुणा और सद्भाव का मार्ग प्रशस्त करता है, लेकिन जब धर्म ही शोषण और धोखाधड़ी का औजार बन जाए, तो उसे बचाने की जिम्मेदारी समाज और शासन दोनों की होती है। यही इस मामले का सबसे बड़ा सबक है. 

एक कालजयी विद्वान जिसे उत्तरभारत ने न जाना न समझा (स्मृति शेष )

 एस. एल. भैरप्पा: अपूर्णीय क्षति की मार्मिक स्मृति

परंतु उनकी सृजनशीलता और विचारधारा आने वाले युगों तक जीवनन्त रहेंगे
राजेंद्र नाथ तिवारी


भारतीय साहित्य का आकाश एक ऐसे नक्षत्र से रिक्त हो गया है, जिसकी चमक दशकों तक समाज और संस्कृति को आलोकित करती रही। 24 सितंबर, 2025 को प्रख्यात कन्नड़ उपन्यासकार, दार्शनिक और चिंतक डॉ. एस. एल. भैरप्पा के निधन ने साहित्य जगत में एक ऐसी शून्यता उत्पन्न कर दी है, जिसकी भरपाई असंभव है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित समूचे राष्ट्र ने उनके जाने को भारतीय समाज और संस्कृति के लिए एक अपूर्णीय क्षति बताया है।

भैरप्पा का जीवन अपने आप में एक प्रेरणादायक गाथा रहा। बचपन में ही ब्यूबोनिक प्लेग के कारण माँ और भाइयों को खो देने के बाद उन्होंने जिन विषम परिस्थितियों में शिक्षा प्राप्त की, वह आज की पीढ़ी के लिए उदाहरण है। भिक्षा माँगकर और छोटे-मोटे काम करके शिक्षा अर्जित करने वाला यह बालक आगे चलकर दर्शनशास्त्र का विद्वान और भारतीय साहित्य का शिखर पुरुष बना—यह उनकी अदम्य इच्छाशक्ति और आत्मबल का प्रमाण है।

मैसूर विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्वर्ण पदक अर्जित करना और बड़ौदा विश्वविद्यालय से "सत्य और सौंदर्य" विषय पर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करना केवल शैक्षणिक उपलब्धि नहीं, बल्कि उस गहरे वैचारिक अन्वेषण की नींव थी, जिसने बाद में उनके उपन्यासों को असाधारण ऊँचाई प्रदान की।

भैरप्पा का साहित्य भारतीय संस्कृति, इतिहास, परंपरा और आधुनिक प्रश्नों का अद्वितीय समन्वय है। उनके उपन्यास केवल कथा नहीं, बल्कि बौद्धिक विमर्श और आत्ममंथन के दस्तावेज़ हैं। "धर्मश्री", "आवरण", "नीले", "वंशवृक्ष", "सार्थ" और "उत्तरकांड" जैसी कृतियों ने पाठकों को धर्म, समाज और मानवीय संबंधों के गहन प्रश्नों पर सोचने को विवश किया। उन्होंने पश्चिमी विचारधारा के अंधानुकरण पर प्रश्न उठाए और भारतीय दृष्टि से सत्य की पड़ताल की। यही कारण है कि वे केवल कन्नड़ ही नहीं, बल्कि भारतीय भाषाओं के सबसे अधिक पढ़े और चर्चित उपन्यासकार बने।

उनके साहित्य का सबसे बड़ा गुण यह रहा कि उसमें साहस और निष्कपटता झलकती थी। "आवरण" हो या "उत्तरकांड", उन्होंने ज्वलंत और विवादास्पद प्रश्नों को भी खुलकर उठाया। इस निडरता के कारण उन्हें कभी-कभी विरोध भी झेलना पड़ा, लेकिन पाठकों का स्नेह और समर्थन उन्हें निरंतर शक्ति देता रहा।

उनकी कृतियों का प्रभाव इतना व्यापक रहा कि उनका अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में हुआ। करोड़ों पाठकों ने उनमें अपनी सांस्कृतिक पहचान और वैचारिक गहराई का दर्पण देखा।

उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री (2016) और पद्म भूषण (2023) से सम्मानित किया। 2010 का सरस्वती सम्मान और साहित्य अकादमी फेलोशिप उनके साहित्यिक गौरव के प्रमाण हैं। लेकिन पुरस्कारों से परे, उनका सबसे बड़ा सम्मान पाठकों के दिलों में बसी उनकी अमर कृतियाँ हैं।

आज उनके निधन पर साहित्यिक जगत स्तब्ध है। यह केवल एक लेखक का जाना नहीं, बल्कि एक युग का अंत है। उन्होंने हमें यह सिखाया कि साहित्य केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समाज का दर्पण और मार्गदर्शक होता है। उनकी लेखनी से निकले विचार आने वाली पीढ़ियों के लिए धरोहर बने रहेंगे।

निस्संदेह, एस. एल. भैरप्पा का जाना भारतीय साहित्य और दर्शन के लिए अपूर्णीय क्षति है। किंतु उनकी रचनाएँ हमें निरंतर यह याद दिलाती रहेंगी कि शब्दों की शक्ति समय और मृत्यु से परे होती है। वे भौतिक रूप से भले ही हमारे बीच न हों, परंतु उनकी सृजनशीलता और विचारधारा आने वाले युगों तक जीवित रहेंगे।
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रविवार, 28 सितंबर 2025

"दशहरा का असली सवाल: रावण कौन ?", पुतला दहन उसी का हो!

विशेष सामाजिक

"दशहरा का असली सवाल: रावण कौन है?"

दशहरा बुराई के अंत का पर्व है। परंपरा है कि रावण का पुतला जलाकर समाज यह संदेश देता है कि असत्य और अन्याय की कोई जगह नहीं। लेकिन आज कुछ जगहों पर दशहरा का रूप बिगाड़ा जा रहा है। कातिल महिलाओं या किसी खास जाति की स्त्रियों के पुतले जलाना एक ऐसी विकृत मानसिकता है जो बुराई से लड़ने के बजाय नारी को निशाना बनाती है।


यहाँ सवाल साफ़ है—क्या अपराध और अत्याचार सिर्फ महिलाओं से जुड़े हैं? हत्या कौन करता है? बलात्कार कौन करता है? सत्ता और पैसे के दम पर भ्रष्टाचार कौन फैलाता है? समाज को जातिवाद, नशा और हिंसा की आग में कौन झोंकता है? आँकड़े गवाही देते हैं कि इनमें सबसे बड़ा हिस्सा पुरुषों का है। फिर क्यों दशहरे पर बलात्कारियों, कातिल पुरुषों और भ्रष्ट नेताओं के पुतले नहीं जलते?

सच यह है कि पितृसत्तात्मक सोच आज भी इस त्योहार की आड़ में जिंदा है। महिला अगर गलती करे तो उसका पुतला बनाकर चौराहे पर जलाया जाएगा, लेकिन पुरुष चाहे बलात्कार करे या इंसाफ़ का सौदा—उसका पुतला कोई नहीं बनाता। यह दोहरा मापदंड न सिर्फ़ अन्यायपूर्ण है बल्कि दशहरे की आत्मा के खिलाफ़ भी है।

दशहरा सिर्फ़ रस्म नहीं, यह सामाजिक प्रतिज्ञा का दिन है। हमें तय करना होगा कि जलाना किसे हहिलाओं को या उन बलात्कारियों को जो समाज की बेटियों का जीवन बर्बाद करते हैं?,किसी जाति को या उन माफ़ियाओं को जो जनता का खून चूसते हैं? निर्दोष प्रतीकों को या उस भ्रष्ट राजनीति को जो देश का भविष्य बेच रही है?

अगर बुराई का अंत ही लक्ष्य है, तो पुतले बदलने होंगे। पुतला उन पुरुष अपराधियों का बनना चाहिए जो रावण से भी अधिक घृणित हैं। तभी दशहरा पर्व का वास्तविक संदेश जिंदा रहे.

टेट के सवाल पर शिक्षकों का हस्ताक्षर अभियान

 

टेट के सवाल पर शिक्षकों का हस्ताक्षर अभियान

बस्ती। टेट की अनिवार्यता के विरोध में उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ का आन्दोलन जिलेभर में जारी है। शनिवार को सभी विकास खण्डों में शिक्षकों ने काली पट्टी बांधकर शिक्षण कार्य करते हुए हस्ताक्षर अभियान चलाया।


जिलाध्यक्ष उदय शंकर शुक्ल ने बताया कि राष्ट्रीय नेतृत्व के आह्वान पर 24 दिवसीय राष्ट्रव्यापी आन्दोलन चल रहा है। हस्ताक्षरित ज्ञापन ईमेल से राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, प्रधानमंत्री, केन्द्रीय शिक्षा मंत्री, मुख्यमंत्री व बेसिक शिक्षा मंत्री को भेजे जा रहे हैं।

शनिवार को दुबौलिया में 32, गौर में 42, कुदरहा में 12 तथा नगर क्षेत्र में शिक्षकों ने हस्ताक्षर किए। संघ पदाधिकारियों ने विद्यालयों में जाकर शिक्षकों से समर्थन जुटाया। यह अभियान 15 अक्टूबर तक जारी रहेगा।

अनुशासन, विज्ञान और संस्कृति का संगम : बस्ती में प्रांतीय ज्ञान-विज्ञान मेला

बस्ती, उत्तरप्रदेश

रामबाग, बस्ती स्थित सरस्वती विद्या मंदिर में आयोजित प्रांतीय वैदिक गणित, ज्ञान-विज्ञान मेला एवं संस्कृति महोत्सव-2025 अनुशासन, विज्ञान और संस्कृति का अनूठा संगम है। तीन दिवसीय इस आयोजन का उद्घाटन अपर जिलाधिकारी प्रतिपाल सिंह चौहान ने किया। उन्होंने अपने उद्बोधन में अनुशासन को सफलता की कुंजी बताया। उनके अनुसार बाधाएं ही व्यक्ति को निरंतर प्रयास करने और लक्ष्य तक पहुंचने की प्रेरणा देती हैं। यह संदेश विद्यार्थियों के लिए प्रेरणादायी है, क्योंकि शिक्षा केवल ज्ञान प्राप्त करने का साधन नहीं बल्कि जीवन में अनुशासन और कर्मनिष्ठा का आधार भी है।

महोत्सव में विद्या भारती से संबद्ध दस जिलों के लगभग 40 विद्यालयों के 550 विद्यार्थी और 120 आचार्य-आचार्या सम्मिलित हुए। इस अवसर पर विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र संगठन मंत्री हेमचन्द्र जी ने भी विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए क्रिया आधारित अध्ययन और वैज्ञानिक नवाचार की महत्ता पर प्रकाश डाला। यह विचार शिक्षा को केवल सैद्धांतिक दायरे तक सीमित न रखकर प्रयोग और नवाचार की दिशा में आगे बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।


प्रतियोगिताओं के परिणाम बताते हैं कि बस्ती, गोरखपुर, बलिया, आज़मगढ़ और देवरिया जैसे जिलों के विद्यार्थी विभिन्न विधाओं में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं। विज्ञान प्रश्न मंच, वैदिक गणित प्रश्न मंच, आशु भाषण और विज्ञान प्रयोग जैसी प्रतियोगिताएं छात्रों के ज्ञान, रचनात्मकता और आत्मविश्वास को निखारती हैं। विशेष रूप से बस्ती संकुल की टीमों ने कई प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान अर्जित कर जिले की शैक्षणिक श्रेष्ठता को सिद्ध किया।

इस प्रकार यह मेला केवल प्रतियोगिता का मंच नहीं बल्कि विद्यार्थियों को अनुशासन, संस्कृति और विज्ञान से जोड़ने का सशक्त माध्यम है। ऐसे आयोजन छात्रों के सर्वांगीण विकास, समाज में सकारात्मक ऊर्जा और राष्ट्र निर्माण की दिशा में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। समापन समारोह के साथ यह महोत्सव विद्यार्थियों की प्रतिभा को नई दिशा प्रदान करेगा।

राहुल का लोकतंत्र पर सवाल या संगठन पर परदा?" चोर का कोतवाली पर पहरा!

 

संपादकीय

"लोकतंत्र पर सवाल या संगठन पर परदा?"

राहुल का नया हथियार : ‘वोट चोरी’

राहुल गांधी ने भाजपा और चुनाव आयोग पर मतदाता सूची में धांधली का आरोप लगाकर माहौल गर्माने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि पूरा लोकतंत्र धांधली पर टिका है और चुनाव आयोग सत्ता पक्ष का रक्षक बन गया है। सवाल उठता है—क्या यह मुद्दा जनता को जोड़ पाएगा या कांग्रेस को और उलझा देगा?ठोस सबूत या राजनीतिक शोर?


राहुल गांधी बार-बार "ब्लैक एंड व्हाइट" सबूत होने की बात कहते हैं, लेकिन न अदालत में याचिका दाखिल करते हैं और न ही कोई ठोस माँग रखते हैं। जब "विस्फोटक खुलासों" की बात हो और सामने केवल आंकड़ों की विसंगतियाँ आएं, तो जनता को यह राजनीतिक शोर ज्यादा और सच्चाई कम लगती है।कांग्रेस संगठन का असली चेहरा

कर्नाटक की महादेवपुरा सीट का उदाहरण देकर राहुल ने कहा कि एक लाख नकली वोट जोड़े गए। बड़ा सवाल यह है कि—अगर इतनी बड़ी धांधली हुई, तो कांग्रेस के बूथ एजेंट और कार्यकर्ता कहाँ थे? लोकतंत्र की रक्षा का दावा करने वाली कांग्रेस खुद अपने संगठन की ढीली पकड़ क्यों नहीं मान रही?लोकतंत्र पर हमला या जनता पर अविश्वास?

भारतीय मतदाता अपने लोकतंत्र को दुनिया में सबसे मजबूत मानता है। राहुल गांधी जब कहते हैं कि "लोकतंत्र ही धांधली पर टिका है", तो यह संदेश जनता के आत्मविश्वास को चोट पहुँचाता है। विसंगतियों को राष्ट्रीय साजिश बताना अतिशयोक्ति है और इससे भाजपा से ज्यादा कांग्रेस पर सवाल खड़े होते हैं।

ठोस मुद्दों से भटकती कांग्रेसम हंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और किसान संकट जैसे मुद्दों को छोड़कर कांग्रेस "वोट चोरी" पर अटकी हुई है। जबकि प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार युवाओं को शिक्षा और नौकरी से जोड़ रहे हैं। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अपनी राजनीतिक ऊर्जा जनता के असली दर्द पर खर्च करेगी या प्रक्रियात्मक बहसों में ही उलझी रहेगी?निष्कर्ष

राहुल गांधी का "वोट चोरी" अभियान कांग्रेस को आक्रामक दिखाने का जरिया तो है, लेकिन यह पार्टी की कमजोरियों को भी नंगा कर रहा है। आरोप लगाने से पहले कांग्रेस को अपने संगठन को जवाबदेह बनाना होगा। वरना यह पूरा अभियान "लोकतंत्र बचाने की लड़ाई" नहीं बल्कि "संगठन की नाकामी पर परदा" ही साबित होगा


शनिवार, 27 सितंबर 2025

आदि शंकर से विवेकानंद और दीनदयाल तक :सनातन अखंड धारा और आधुनिक भारत की वैचारिक लड़ाई!!!

 

सनातन ही भारत की आत्मा: शंकराचार्य से विवेकानन्द और दीनदयाल तक चिंतन का अखंड प्रवाह!

राजेंद्र नाथ तिवारी



(एक तुलनात्मक संपादकीय लेख)



प्रस्तावना: क्यों सनातन पर हमला हो रहा है?

आज की दुनिया में “सनातन” केवल एक धार्मिक शब्द नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का नाम है। यही कारण है कि जब-जब भारत उठता है, तब-तब सनातन पर प्रहार होते हैं। एक तरफ़ पश्चिमी सोच है, जो भारत को अपनी भोगवादी दृष्टि से आंकना चाहती है, और दूसरी तरफ़ भारत की जड़ें हैं, जो अद्वैत, वेदान्त और एकात्म मानववाद की चेतना से सींची गई हैं।

इस चेतना के तीन विराट स्तंभ हैं:

1. आदि गुरु शंकराचार्य – जिन्होंने दार्शनिक आधार दिया।


2. स्वामी विवेकानन्द – जिन्होंने आत्मविश्वास का शंखनाद किया।


3. पंडित दीनदयाल उपाध्याय – जिन्होंने आधुनिक राजनीति में सनातन का पुनर्स्थापन किया।




1. शंकराचार्य: सनातन दर्शन के महामिलनकर्ता


आठवीं शताब्दी का भारत विखंडन और भ्रम से ग्रसित था। बौद्ध धर्म और अन्य पंथों के वर्चस्व से सनातन परंपरा कमजोर होती जा रही थी। उसी समय आदि शंकराचार्य ने जन्म लिया और अद्वैत वेदांत का प्रकाश फैलाया।

उन्होंने कहा: ब्रह्म सत्यं, जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः।

चार मठ स्थापित कर उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम भारत को एक सूत्र में बाँध दिया।

उनके शास्त्रार्थों ने भारत को सांस्कृतिक विखंडन से निकालकर एकता की धुरी पर खड़ा किया।


पत्रकारीय नज़रिया: शंकराचार्य ने उस दौर में वही किया जो आज भारत की कूटनीति कर रही है—विभाजनकारी ताक़तों को शास्त्रार्थ और तर्क से मात देना। उनका संदेश साफ़ था: भारत की आत्मा एक है, उसे बाँटा नहीं जा सकता।




2. स्वामी विवेकानन्द: गुलामी के दौर में आत्मविश्वास का शंखनाद


उन्नीसवीं शताब्दी का भारत अंग्रेज़ों की गुलामी में आत्मविश्वास खो चुका था। पश्चिम ने हमें “असभ्य” और “पिछड़ा” साबित करने का षड्यंत्र रचा। तभी 1893 में शिकागो में स्वामी विवेकानन्द ने मंच संभाला और केवल दो शब्दों से दुनिया की आँखें खोल दीं—“Sisters and Brothers of America।”

विवेकानन्द ने कहा: “प्रत्येक आत्मा दिव्य है।”

उन्होंने “दरिद्र नारायण सेवा” का नारा दिया और धर्म को कर्मयोग से जोड़ा।

उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत का भविष्य पश्चिम की नकल में नहीं, बल्कि अपनी सनातन आत्मा में है।


पत्रकारीय दृष्टि: विवेकानन्द ने पश्चिमी मंच पर सनातन की ऐसी गूंज दी कि पूरी दुनिया में भारत की आध्यात्मिक महाशक्ति का एहसास हुआ। यह वह क्षण था जब भारत ने पहली बार औपनिवेशिक मानसिकता को तोड़ा और दुनिया को बताया—हमारी सभ्यता प्राचीन भी है और प्रासंगिक भी।


3. पंडित दीनदयाल उपाध्याय: राजनीति में सनातन की वापसी


स्वतंत्रता के बाद भारत दो चरमपंथी रास्तों पर खड़ा था—साम्यवाद और पूँजीवाद। दोनों ही विदेशी विचारधाराएँ थीं, जिनमें मनुष्य केवल आर्थिक प्राणी है। ऐसे में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने ‘एकात्म मानववाद’ का दर्शन दिया।

उन्होंने कहा: मनुष्य शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का समन्वय है।

राजनीति और अर्थनीति का आधार भारतीय संस्कृति और नैतिकता होनी चाहिए।

समाजवाद और पूँजीवाद दोनों को भारत के लिए अनुपयुक्त बताते हुए उन्होंने तीसरा रास्ता दिया।


पत्रकारीय दृष्टि: उपाध्याय ने साफ़ कहा कि भारत को भारतीय मॉडल चाहिए, पश्चिमी चश्मे से नहीं देखा जा सकता। यह बात आज के दौर में और भी प्रासंगिक है जब भारत G20 से लेकर UNSC तक अपनी आवाज़ मजबूती से उठा रहा है।




4. तीनों का साझा सूत्र: सनातन ही भारत की धुरी

तीनों महामानवों के चिंतन में कई समानताएँ हैं:

आध्यात्मिक आधार: शंकराचार्य का अद्वैत, विवेकानन्द का आत्मदर्शन और उपाध्याय का एकात्म मानववाद—तीनों का केंद्र मनुष्य की पूर्णता है।


राष्ट्रीय दृष्टि: तीनों ने भारत की एकता, अखंडता और मौलिक पहचान को सर्वोपरि माना।

विदेशी विचारधाराओं को चुनौती: शंकराचार्य ने बौद्ध वादों को तर्क से परास्त किया, विवेकानन्द ने पश्चिमी भोगवाद को चुनौती दी, और उपाध्याय ने पूँजीवाद-साम्यवाद दोनों का विकल्प दिया।

व्यावहारिक कार्य: तीनों ने केवल विचार नहीं दिए, संस्थाएँ खड़ी कीं—मठ, मिशन, और राजनीतिक संगठन।

5. क्यों आज फिर इनका चिंतन प्रासंगिक है?

आज जब भारत की बढ़ती ताक़त से दुनिया चिंतित है, तब बार-बार सनातन पर हमले हो रहे हैं। कोई कश्मीर के नाम पर सवाल उठाता है, कोई जाति या संस्कृति पर। लेकिन जवाब वही है जो इन तीनों महामानवों ने दिया था—भारत की आत्मा सनातन है, और यही उसकी ताक़त है।

संयुक्त राष्ट्र में सुधार की बहस हो या भारत की स्थायी सदस्यता की मांग, यह वही चेतना है जिसे शंकर, विवेकानन्द और दीनदयाल ने सींचा।

आर्थिक आत्मनिर्भरता की चर्चा हो या संस्कृति की वैश्विक पहचान, इनकी सोच भारत का मार्गदर्शन कर रही है।

6. आक्रमक निष्कर्ष: सनातन न झुका है, न झुकेगा

इतिहास गवाह है:

बौद्ध आक्रांतियों के दौर में शंकराचार्य उठे और सनातन को पुनर्जीवित किया।

औपनिवेशिक गुलामी के दौर में विवेकानन्द ने आत्मविश्वास का शंखनाद किया।

स्वतंत्रता के बाद की वैचारिक गुलामी के दौर में दीनदयाल ने भारतीय राजनीति को दिशा दी।


आज भी जब कुछ शक्तियाँ सनातन को “सड़ा-गला” कहने की हिमाकत करती हैं, तब ज़रूरी है कि हम इन तीनों महामानवों की गूंज को याद करें। सनातन केवल पूजा-पद्धति नहीं—यह भारत की रीढ़ है, इसकी आत्मा है।

 जो सनातन पर चोट करेगा, वह भारत पर चोट करेगा।
और जो भारत पर चोट करेगा, इतिहास उसे कभी माफ़ नहीं करेगा।


शंकराचार्य ने दर्शन दिया, विवेकानन्द ने आत्मा जगाई और दीनदयाल ने राजनीति में उसे ढाला। इन तीनों की चिंतनधारा मिलकर आज के भारत को यह संदेश देती है—भारत का भविष्य पश्चिम की नकल में नहीं, बल्कि सनातन की जड़ों से शक्ति लेकर विश्व का नेतृत्व करने में है।

और यही कारण है कि भारत आज विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर है.


 

गरीबी को मात देकर कक्षा सात की छात्रा विजय लक्ष्मी बनी एक दिन की के मुख्य राजस्व अधिकारी आईएएस का निश्चय!

 

गरीब परिवार की बेटी विजयलक्ष्मी बनीं एक दिन की मुख्य राजस्व अधिकारी

बस्ती, 27 सितम्बर।



कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय, बस्ती सदर की कक्षा 7 की छात्रा विजयलक्ष्मी ने शनिवार को अपने जीवन का अनोखा अनुभव हासिल किया। मुख्य राजस्व अधिकारी (सीआरओ) कीर्ति प्रकाश भारती ने उन्हें एक दिन के लिए मुख्य राजस्व अधिकारी की जिम्मेदारी सौंपी। यह पहल बालिकाओं को आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और प्रशासनिक तंत्र की समझ विकसित कराने के उद्देश्य से की गई।

दिनभर के इस विशेष कार्यभार के दौरान विजयलक्ष्मी को सीआरओ कार्यालय के समस्त कर्मियों से परिचित कराया गया और विभिन्न पटलों के कामकाज का अवलोकन कराया गया। फाइलों की जांच से लेकर जनसुनवाई प्रक्रिया की जानकारी तक, उन्हें हर गतिविधि में शामिल किया गया। मुख्य राजस्व अधिकारी ने छात्रा को पद की जिम्मेदारियों और कर्तव्यों का विस्तार से परिचय कराया।

विजयलक्ष्मी ने बताया कि उनका सपना आईएएस अधिकारी बनने का है। गरीब परिवार से आने के बावजूद उन्होंने कठिन परिस्थितियों को अपनी कमजोरी नहीं, बल्कि प्रेरणा बनाया है। उन्होंने कहा कि उनके पिता ने पढ़ाई के महत्व को समझते हुए उनका दाखिला कस्तूरबा गांधी विद्यालय में कराया, जहां उन्हें निःशुल्क आवास, भोजन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही है।

सीआरओ कीर्ति प्रकाश भारती ने छात्रा को प्रेरित करते हुए कहा कि लगन और परिश्रम से कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है। उन्होंने विजयलक्ष्मी को लक्ष्य के प्रति ईमानदारी और निरंतर मेहनत करने की सीख दी।

इस अवसर पर विद्यालय की शिक्षिकाएं रंजना सिंह, सोगरा बेगम और प्रज्ञा गुप्ता भी मौजूद रहीं। उन्होंने इसे छात्राओं के आत्मविश्वास को बढ़ाने और भविष्य के लिए मार्गदर्शन देने वाला कदम बताया।

रेडकॉस सोसायटी घोटाला : जनता के नाम पर डाका, कलंक कथा

रेडकॉस सोसायटी घोटाला : जनता के नाम पर डाका

अस्पताल संचालक पर फर्जीवाड़े का आरोप, प्रशासन की चुप्पी सबसे बड़ा अपराध

बस्ती।उत्तरप्रदेश

 रेडक्रास सोसायटी के अध्यक्ष और एडिवर्ल्ड अस्पताल के संचालक डॉ. प्रमोद चौधरी पर लगे फर्जीवाड़े ने जिले की जनता को हिला दिया है। आरोप है कि लाखों रुपये का हेरफेर कर समाजसेवा के नाम पर खुलेआम लूट की गई। सवाल यह है कि आखिर वर्षों से चल रही इस गड़बड़ी पर प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने आंखें क्यों मूंद रखीं?


रेडकॉस जैसी संस्था, जिसका काम संकट की घड़ी में आमजन की मदद करना है, अगर भ्रष्टाचार का अड्डा बन जाए तो फिर जनता का सहारा किससे मिलेगा? यह घोटाला किसी व्यक्ति की लालच की कहानी नहीं, बल्कि हमारी बीमार और निकम्मी व्यवस्था की सच्चाई है।

प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की नाकामी साफ दिखती है। जब तक पूरी सोसायटी का ऑडिट नहीं होता और दोषियों को सलाखों के पीछे नहीं डाला जाता, यह कार्रवाई महज ढकोसला मानी जाएगी। जनता के पैसे और आस्था से खिलवाड़ करने वालों को सिर्फ नोटिस देकर नहीं, जेल में डालकर ही सबक सिखाना होगा।

यह मामला चेतावनी है कि यदि जवाबदेही तय नहीं हुई तो जनता की सेवा के नाम पर चल रही संस्थाएं लूट का बाजार बनी रहेंगी। सवाल सिर्फ डॉ. प्रमोद चौधरी का नहीं, सवाल पूरे सिस्टम की सड़ांध का है।


एसटीएफ ने दो लाख का इनामी बदमाश सुमित चौधरी को दबोचा!!

 एसटीएफ ने दो लाख का इनामी बदमाश सुमित चौधरी को दबोचा!!


मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ।

 2018 में बदायूं जेल से फरार चल रहे दो लाख रुपए के इनामी कुख्यात बदमाश सुमित चौधरी को यूपी एसटीएफ ने गुरुवार को गिरफ्तार किया है। एसटीएफ के अधिकारी अब्दुल कादिर का कहना है दबोचा गया इनामी बदमाश पीलीभीत व टनकपुर से होते हुए नेपाल भागने की फिराक में था कि उनकी टीम ने धर दबोचा। बताया जा रहा है कि गिरफ्तार सुमित चौधरी का नाम वर्ष 2015 में सुर्खियों में तब आया था जब वह मुरादाबाद जिले की भरी कचहरी में पूर्व ब्लाक प्रमुख योगेन्द्र सिंह उर्फ भूरा को पुलिस अभिरक्षा में गोलियों से भून डाला था। इस मामले में पुलिस ने गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे भेजा। खूंखार इनामी सुमित चौधरी को मुरादाबाद से बदायूं जेल भेजा गया था। लेकिन 12 मई 2018 को खूंखार अपराधी चंदन की मदद जेल की दीवार फांदकर भाग निकला था।



इसके बाद वह पुलिस से बचने के लिए नेपाल सहित कई राज्यों में छिपकर रह रहा था। बताया जा रहा है कि यूपी के अलग-अलग जिलों में आजाद बनकर घूम रहा कुख्यात इनामी बदमाश सुमित चौधरी एक बार फिर पीलीभीत और टनकपुर रास्ते से होते हुए नेपाल भागने की फिराक में था कि एसटीएफ टीम ने गुरुवार को उसे धर दबोचा। एसटीएफ के आलाधिकारियों ने इसकी गिरफ्तारी के लिए दो लाख रुपए का इनाम घोषित कर रखा था।

बहराइच में पांच दिन में तीन बच्चों को भेड़ियों ने मार डाला

 बहराइच में पांच दिन में तीन बच्चों को भेड़ियों ने मार डाला,

पकड़ने में फिसड्डी हुये वन विभाग के अफसर!


मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। 

बहराइच में भेड़ियों का हमला नहीं थम रहा है। पांच दिनों में तीन मासूमों को भेड़िये उठा ले गए। बुधवार को बाबा बंगला गांव में बाबूलाल की पुत्री सोनी (2) दोपहर करीब तीन बजे आंगन में खेल रही थी। मां विनीता दूध लेने घर के अंदर गई थीं। पिता बाबूलाल कुछ दूरी पर रात के लिए लकड़ी का इंतजाम कर रहे थे। इसी दौरान अचानक आया भेड़िया सोनी को जबड़े में दबोच कर भाग निकला। बच्ची की चीख सुनकर बाबूलाल कुल्हाड़ी लेकर दौड़े और मां विनीता भी पीछे भागीं, लेकिन भेड़िया गन्ने के खेत में ओझल हो गया। करीब डेढ़ घंटे खोजबीन के बाद बच्ची घर से लगभग 400 मीटर दूर गन्ने के खेत में क्षत-विक्षत हालत में मिली। उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र फखरपुर ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। ग्रामीणों का आरोप है कि वन विभाग की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। इससे पहले 20 सितंबर को भेड़िया एक और मासूम को उठा ले गया था। 23 सितंबर को बच्चे को लेकर भाग रहे भेड़िये को ग्रामीणों ने किसी तरह से घेरकर बच्चे को बचाया। 24 सितंबर को तीसरी घटना हुई। इस संदर्भ में डीएफओ राम सिंह यादव ने कहा कि गन्ने के खेत और नदी के कछार के कारण भेड़िये को पकड़ने में दिक्कत हो रही है। इलाके को ड्रोन से खंगाला जा रहा है। जाल लगाया गया है। जल्द ही भेड़िये को पकड़ लिया जाएगा।



स्थानीय पीड़ितों ने वन विभाग के अधिकारियों को घेर लिया था। ग्रामीणों का आरोप रहा कि वन विभाग की ओर से समय पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। भेड़िये के लगातार हमलों से ग्रामीण भयभीत हैं। विभाग समय पर सक्रिय नहीं हुआ। ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि यदि विभाग के अधिकारी गांव में प्रवेश करते हैं और भेड़िये के हमले से बचाव के लिए उचित सुरक्षा इंतजाम नहीं करते, तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। स्थानीय लोगों के समझाने-बुझाने और प्रयासों के बाद ही डीएफओ की गाड़ी को गुस्साए ग्रामीणों ने आगे जाने दिया।डीएफओ राम सिंह यादव ने कहा कि भेड़िया काफी चालाक प्रजाति का जानवर होता है और प्रभावित क्षेत्रों में इनकी संख्या दो या उससे अधिक हो सकती है। इसलिए इन्हें पकड़ने में समय लग रहा है। उन्होंने बताया कि संभावित स्थानों पर जाल बिछाकर भेड़िये को पकड़ने की तैयारी की जा रही है।


ग्राम पंचायत मंझारा तीकली और आसपास के दर्जन भर गांवों में पिछले 15 दिनों से भेड़िया लगातार हमला कर रहा है। इस दौरान तीन बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि एक बच्ची का अभी पता नहीं चल सका है। इस माह कुल 17 लोग भेड़िये के हमले में घायल हो चुके हैं। ग्रामीणों के अनुसार, लगातार हो रहे हमलों से उनका जीवन भय और असुरक्षा में गुजर रहा है। वन विभाग भेड़िये को पकड़ने में अब तक नाकाम रहा है। इस काम के लिए 32 टीमों के साथ बाराबंकी, गोंडा और श्रावस्ती के डीएफओ को भी लगाया गया है।बताते हैं कि पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश के ड्रोन ऑपरेटर व विशेषज्ञ भी बुलाए गए, लेकिन इन सब व्यवस्थाओं के बावजूद भेड़िया लगातार वन विभाग को चकमा दे रहा है।

संयुक्त राष्ट्र मे कूटनीतिक टकराव,एस जय शंकर का प्रहार!

 संयुक्त राष्ट्र मे कूटनीतिक टकराव,एस जय शंकर  का प्रहार!

दिल्ली

यूनाइटेड नेशन्स के हालिया मंच पर जो द्वंद्व दिखाई दिया, वह सिर्फ वाक्-युद्ध नहीं — बल्कि वैश्विक कूटनीति की एक छोटी-सी परीक्षा थी। बात की जड़ है तीन परतें: (1) सदस्य देशों के राष्ट्रीय/घरेलू राजनीतिक हित, (2) परम्परागत द्विपक्षीय विवादों का बहुपक्षिकरण, और (3) बहुलक-वर्ल्ड ऑर्डर में संस्थागत-सुधार की चर्चा जो अब गर्म हो चली है। उस संदर्भ में तुर्की-पाकिस्तान के सहानुभूति-संदेश और भारत की तीव्र प्रतिक्रिया दोनों को अलग-अलग नहीं देखा जा सकता। 



सबसे पहले: एर्दोगान का कश्मीर का ज़िक्र केवल पाकिस्तान को सांत्वना देने का साधन नहीं, बल्कि घरेलू और क्षेत्रीय संकेत भी था — यह दर्शाता है कि कुछ नेता बहुसंख्यक समर्थन और धार्मिक-राजनीतिक पहचान की रेखाओं को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी खींचकर उपयोग कर रहे हैं। इस तरह के हस्तक्षेप से एक सूक्ष्म लेकिन खतरनाक प्रवृत्ति जन्म लेती है: द्विपक्षीय विषयों का बहुपक्षिकरण, जिससे समाधान की जगह ध्रुवीकरण बढ़ता है। 


दूसरी परत — गुटारेस का UNSC सुधार का आह्वान — ने खेल का नियम बदला। जब महासचिव कहते हैं कि परिषद 1945 की दुनिया की झलक नहीं है और सुधार आवश्यक है, तो यह उन देशों के अभियान को वैधता देता है जो स्थायी सीटों के लिये दबाव बना रहे हैं। इस बयान ने भारत को न केवल तर्क पेश करने का मौका दिया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संरचनात्मक न्याय के नारों के साथ सामूहिक समर्थन जुटाने का अवसर भी। 


तीसरी परत में हम पाते हैं भारतीय कूटनीति की रणनीति: सार्वजनिक मोर्चे पर कड़ा जवाब और पृष्ठभूमि में सक्रिय द्विपक्षीय/बहुपक्षीय संवाद। विदेश मंत्री ने तुर्की के आरोपों का सांस्कृतिक-इतिहास और मानवाधिकारों की दृष्टि से प्रत्युत्तर देते हुए आरोपों को पलटा — यह प्रतिद्वन्द्वी के नैरेटिव को चुनौती देने का जानबूझकर प्रयुक्त औजार था। परन्तु सावधानी भी जरूरी है: 

मोदी विज़न @2047 : लक्ष्य सहकारिता से ही सम्भव,

मोदी विज़न @2047 : लक्ष्य सहकारिता से ही सम्भव,

 राजेंद्र नाथ तिवारी

भारत आज़ादी के अमृतकाल में प्रवेश कर चुका है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प प्रस्तुत किया है। यह केवल सरकारी योजनाओं या पूँजी निवेश पर निर्भर नहीं है, बल्कि सहकारिता की भावना पर आधारित है। भारत का वास्तविक सामर्थ्य तभी प्रकट होगा जब गाँव-गाँव, खेत-खेत और समाज के हर वर्ग में सामूहिकता का भाव जीवित रहेगा।

सहकारिता की परंपरा

भारतीय समाज की संस्कृति ही सहकारिता पर आधारित रही है। गाँवों में श्रमदान की परंपरा, पंचायती व्यवस्था और सामूहिक खेती इसके प्रमाण हैं। आधुनिक दौर में अमूल जैसी डेयरी सहकारी समितियों ने सिद्ध किया कि जब किसान और श्रमिक एकजुट होते हैं, तो वे बड़े उद्योगपतियों को भी चुनौती दे सकते हैं।

मोदी विज़न और सहकारिता

प्रधानमंत्री मोदी ने ‘सहकार से समृद्धि’ का नारा देते हुए सहकारिता मंत्रालय का गठन किया। किसान उत्पादक संगठन (FPO), स्वयं सहायता समूह, महिला मंडल और डेयरी समितियाँ अब राष्ट्रीय विकास की रीढ़ मानी जा रही हैं।

  • कृषि सुधार : छोटे किसान मिलकर बाज़ार में प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।
  • ग्रामीण विकास : सहकारी ढाँचे से गाँवों में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे।
  • आर्थिक सशक्तिकरण : जब पूँजी, संसाधन और श्रम का साझा उपयोग होगा, तब आत्मनिर्भर भारत का मार्ग और सरल बनेगा।
  • सामाजिक समरसता : सहकारिता जाति-पाँति और वर्गभेद से ऊपर उठकर समानता का आधार देती है।

चुनौतियाँ

सहकारी समितियों के इतिहास में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसी समस्याएँ सामने आई हैं। यदि पारदर्शिता और ईमानदारी से इन संस्थाओं का संचालन हो, तो वे भारत की नई विकास यात्रा का सबसे मजबूत स्तंभ बन सकती हैं।

परिणति

विजन 2047 केवल एक लक्ष्य नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयास की पुकार है। सरकार नीतियाँ बना सकती है, पूँजी निवेश बढ़ा सकती है, परन्तु समाज का उत्थान तभी होगा जब हर नागरिक सहयोग और सहभागिता का भाव अपनाए।
निश्चित ही यह कहना उचित है कि –
“मोदी विज़न @2047 का लक्ष्य सहकारिता से ही सम्भव है।”

मुक़बधिरों को समाज की मुख्यधारा मे लाना सबसे पुनीत कार्य

   मूक-बधिरता के प्रारंभिक लक्षणों की दी जानकारी

जौनपुर।उत्तरप्रदेश
 विश्व मूक बधिर दिवस के उपलक्ष्य में उमानाथ सिंह सिंह स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय, एवं रोटरी क्लब   के संयुक्त तत्वावधान में  शिविर और जनजागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह आयोजन पी.एम. श्री कम्पोजिट विद्यालय, इब्राहिमाबाद में संपन्न हुआ, जिसमें मूक-बधिर बच्चों की पहचान, देखभाल एवं पुनर्वास से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियाँ साझा की गईं।बधिर व्यक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय सप्ताह के तहत शिविर का आयोजन महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो. डॉ. आर.बी. कमल और मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. ए.ए. जाफरी के निर्देशन में किया गया। इस अवसर पर विशेषज्ञों की टीम ने बच्चों की जांच की और अभिभावकों को व्यक्तिगत परामर्श प्रदान किया।मेडिकल कॉलेजके डॉ. राजश्री यादव ने   कहा 




, समय पर की गई पहचान न केवल बच्चों को सामान्य जीवन जीने का अवसर देती है, बल्कि समाज को भी समावेशिता की ओर अग्रसर करती है। उन्होंने मूक-बधिरता के प्रारंभिक लक्षणों और कारणों पर भी विस्तृत जानकारी दी और बताया कि यदि जन्म के शुरुआती महीनों में ही लक्षणों की पहचान कर ली जाए तो आधुनिक चिकित्सा पद्धतियाँ बच्चों के भविष्य को बदल सकती हैं।प्रोफेसर डॉ. बृजेश कनौजिया  ने ग्रामीण क्षेत्रों में इस प्रकार के शिविरों के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि, विश्व भर में 466 मिलियन से अधिक लोग गंभीर श्रवण हानि से ग्रसित हैं। जागरूकता की कमी के चलते उन्हें सामाजिक कलंक, अलगाव और अवसरों की कमी का सामना करना पड़ता है। शीघ्र पहचान और समय पर हस्तक्षेप जीवन को बदल सकता है। डॉ नीरज,   राजू मजूमदार, सीए सुजीत अग्रहरी, संजय जायसवाल, दीपमाला जायसवाल, अनुराधा शर्मा, माधुरी जायसवाल, आरती यादव, विजय कला, फौजदार, एवं कई बच्चों के अभिभावक उपस्थित रहे।

शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

तीन मनचले गिरफ्तार

 तीन मनचले गिरफ्तार

बस्ती। मिशन शक्ति अभियान फेज-5 के तहत महिलाओं व बालिकाओं पर फब्तियां कसने वाले तीन युवकों को नगर पुलिस ने गिरफ्तार किया है।

 थानाध्यक्ष नगर विश्व मोहन राय के नेतृत्व में चौकी प्रभारी करहली उपनिरीक्षक सर्वेश कुमार चौधरी मय पुलिस टीम करहली बाजार से खड़उवा जाने वाले मार्ग पर चेकिंग कर रहे थे। इस दौरान बभनियाये खुर्द गांव के पास सड़क किनारे खड़े कुछ युवक आने-जाने वाली महिलाओं पर फब्तियां कस रहे थे।


 पुलिस को देखकर आरोपी भागने लगे, लेकिन घेराबंदी कर दबोच लिया गया। आरोपियों की पहचान रोहित यादव (20), पंकज यादव (30), निवासी कैंथवलिया, थाना नगर और आदित्य दूबे (20) निवासी पकड़ी मिश्राइन, थाना नगर के रूप में हुई

Basti News: मिशन शक्ति अभियान के तहत अंतर्गत महिलाओं/बालिकाओं को किया गया जागरुक

 मिशन शक्ति अभियान के तहत अंतर्गत महिलाओं/बालिकाओं को किया गया जागरुक

बस्ती।  मिशन शक्ति अभियना के तहत क्षेत्राधिकारी रुधौली द्वारा प्रभारी निरीक्षक लालगंज के साथ थाना लालगंज क्षेत्र अंतर्गत महसों कस्बा/बाजार में पांडालों का भ्रमण कर महिला पंचायत/चौपाल लगाकर महिलाओं व बालिकाओं को पंपलेट वितरित कर जागरुक किया गया। इस दौरान महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा, सशक्तीकरण, और महिला संबंधी अपराधों की रोकथाम के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए गए। 




चौपाल में उपस्थित लोगों को सरकार द्वारा जारी हेल्पलाइन नंबरों जैसे 1090 (विमेन पावर लाइन), 112 (पुलिस आपातकाल), 181 (महिला हेल्पलाइन), 1076, 1098, और 108 के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। क्षेत्राधिकारी ने दुर्गा पूजा के अवसर पर आयोजित पांडालों में श्रद्धालुओं, खासकर महिलाओं, को सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करने और साइबर अपराधों से बचाव के लिए सतर्क रहने की सलाह दी। मिशन शक्ति अभियान के तहत महिलाओं को आत्मरक्षा, कानूनी अधिकारों, और शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया के बारे में भी बताया गया।

निसंतान हिंदू विधवा की मौत के बाद किसकी होगी संपत्ति? सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

निसंतान हिंदू विधवा की मौत के बाद किसकी होगी संपत्ति? सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया है कि निसंतान हिंदू विधवा महिला की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति किसे विरासत में मिलेगी। यह फैसला न केवल पारिवारिक विवादों को सुलझाने में अहम है, बल्कि भविष्य में होने वाले उत्तराधिकार संबंधी मामलों के लिए भी मार्गदर्शक साबित होगा।



मामला क्या था?

मामले में एक हिंदू महिला की शादी के बाद पति की मृत्यु हो गई थी। पति की कोई संतान नहीं थी और महिला अपने पति की संपत्ति की मालिक बन गई थी। महिला की मृत्यु के बाद यह विवाद उठ खड़ा हुआ कि संपत्ति उसके पति के परिवार को मिलेगी या उसके मायके (माता-पिता के परिवार) को।

नीचली अदालत और हाईकोर्ट में इस पर अलग-अलग दलीलें पेश हुईं, लेकिन आखिरकार मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि—

  • अगर कोई हिंदू विधवा बिना संतान के मृत्यु को प्राप्त होती है, तो उसके पास जो संपत्ति है, वह सीधे उसके पति के परिवार (ससुराल पक्ष) को जाएगी।
  • मायके के परिजनों को इस पर कोई अधिकार नहीं होगा।
  • कोर्ट ने यह भी कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act, 1956) के प्रावधानों के तहत पति की संपत्ति पत्नी को मिल सकती है, लेकिन विधवा की मृत्यु के बाद उस संपत्ति का उत्तराधिकारी पति का परिवार ही होगा।

क्यों महत्वपूर्ण है यह फैसला?

यह फैसला खास इसलिए माना जा रहा है क्योंकि अक्सर ऐसे मामलों में महिला के मायके और ससुराल पक्ष के बीच लंबा विवाद होता है। संपत्ति को लेकर कई बार वर्षों तक मुकदमेबाजी चलती है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश ने अब स्थिति स्पष्ट कर दी है।

विशेषज्ञों की राय

कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला हिंदू उत्तराधिकार कानून की व्याख्या को और स्पष्ट करता है। वकीलों का मानना है कि इस फैसले से परिवारों में चल रहे कई विवादों का हल निकलेगा और अदालतों पर बोझ भी कम होगा।

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने साफ कर दिया है कि निसंतान हिंदू विधवा की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर अधिकार उसके पति के परिवार का होगा, न कि मायके वालों का। यह फैसला उत्तराधिकार से जुड़े कई मामलों के लिए मिसाल बनेगा।