बस्ती, उत्तरप्रदेश
राहुल गांधी की राजनीति का रंग अब इतना चटख हो गया है कि देखकर लगता है, जैसे किसी कॉमेडी शो की रंगमंच सजाई गई हो—माइक पकड़ो, ऊँचे सुर में इल्ज़ाम ठोंक दो, और जब पर्दा उठ जाए तो स्टेज से चुपचाप माफ़ी लेकर उतर लो। ये वही ‘शहजादा’ हैं, जो हर बार लोकतंत्र के खेल में मस्त हाथ आजमाते हैं, लेकिन हकीकत का सामना होते ही भाग खड़े होते हैं।इल्ज़ामों का ‘फुल पैसा वसूल’ शो सावरकर हो या राफ़ेल, राहुल गांधी की डायलॉग डिलीवरी में कोई कमी नहीं रहती। हर बयान फिल्मी, हर इल्ज़ाम झन्नाटेदार—“चौकीदार चोर है!” जैसे नारों से माहौल गरमाते हैं, फिर सुप्रीम कोर्ट की डांट पड़ते ही ‘सॉरी’ का पॉपकॉर्न फोड़ देते हैं। और जनता? हर हफ्ते नया एपिसोड देखती है—कभी इतिहास पर तंज, कभी अदालत में जुर्माना!अदालत भी हर बार देखती है तमाशा मद्रास हाई कोर्ट ने वोट चोरी के इल्ज़ाम को “completely misconceived” कहते हुए राहुल के पेट से हवा निकाल दी, जुर्माने की फूंक मार दी ₹1,00,000 की! सोचिए, अदालत का रोल जिस कॉमेडी शो में गेस्ट अपीयरेंस जैसे बन जाए, वहाँ असली मुकाबला सिर्फ ‘शोर बनाम सबूत’ का रह जाता है।
अफ़सोस, राहुल गांधी सिर्फ शोर ही करते हैं.कांग्रेस: शर्मिंदगी का वारिस कांग्रेस पार्टी तो अब जैसे ‘माफ़ियों की दुकान’ चला रही है। एक दिन सावरकर पर पांव फिसलता है, तो दूसरे दिन सुप्रीम कोर्ट से पिटाई खाकर निकलते हैं। इतना नुकसान किसी कॉमेडियन को भी शो बंद करने को मजबूर कर दे, मगर यहाँ तो सीजन दर सीजन वही नाटक चलता है.जनता: हँसी और हताश जनता अब राहुल गांधी के एपिसोड में रोमांच नहीं, बल्कि ठगी और निराशा महसूस करती है। बार-बार इल्ज़ाम, बार-बार माफ़ी—नेतृत्व का पूरा मजाक बन चुका है। लोग पूछ रहे हैं, “राजनीति सीरियस है या ‘स्टेंड-अप कॉमेडी’ मंच?” खुद कांग्रेस भी उलझन में है कि आगे चुनावी रण में ये किस स्क्रिप्ट से उतरेंगे.
राहुल गांधी—राजनीति के मस्तीबाज राहुल गांधी ने भारतीय राजनीति को ऐसी हल्की फुलकी ‘कॉमेडी’ बना दिया है, जिसमें डायलॉग हैं, हंसी है, शोर है, मगर दमदार कहानी और सच्चे किरदार की भयंकर कमी! अब पार्टी और देश की जनता को चाहिए एक असली नेतृत्व, वरना ये कॉमेडी बहुत भारी पड़ेगी।“राहुल गांधी की पॉलिटिक्स—पहले आग, फिर माफ़ी… और अंत में ताली, हंसी और शर्मिंदगी।”और कांग्रेस? केवल ताली बजाती है अगर ताली न बजाए तो कमीडियन की गाली खाय.

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