बस्ती में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुली,
‘रेडक्रॉस’ सोसायटी के चेयरमैन का अस्पताल ‘मेडीवर्ल्ड’ बिना अनुमति चल रहा था, लाइसेंस निरस्त, कथित अस्पताल पर भी ताला, अर्जित किया था शार्टकट सम्मान!, अस्पताल के बगल ही उसका अभ्यारण्य!
बस्ती। जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की नाक के नीचे वर्षों से चल रही स्वास्थ्य व्यवस्था की लापरवाही आखिरकार उजागर हो ही गई। रेडक्रॉस सोसायटी के चेयरमैन और चर्चित चिकित्सक डॉ. प्रमोद कुमार चौधरी का मेडीवर्ल्ड अस्पताल बिना मान्यता के संचालित होता रहा और विभाग सोता रहा। अब जब मामला तूल पकड़ गया तो आनन-फानन में लाइसेंस निरस्त करने का ढोंग रचकर जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा जा रहा है।
जिला प्रशासन और स्वास्थ्य महकमा कटघरे में
- सवाल यह है कि जिस अस्पताल में रोजाना सैकड़ों मरीज भर्ती होते रहे, सर्जरी होती रही, करोड़ों का कारोबार चलता रहा, वहां वर्षों तक विभागीय टीमों की आंखें बंद क्यों रहीं?
- क्या आम गरीबों से वसूली गई मोटी रकम का हिस्सा ‘ऊपर’ तक पहुंचता रहा, इसलिए कार्रवाई दबाई गई?
- एकाएक नोटिस और लाइसेंस निरस्ती की कार्यवाही अब महज ‘औपचारिकता’ नहीं तो और क्या है?
लाइसेंस के नाम पर खुला खेल
भाजपा नेता हरिश सिंह ने 20 मार्च को ही नोटिस जारी कर दिया था, लेकिन अस्पताल आराम से चलता रहा। 29 दिन बाद भी जवाब न मिलने पर आखिरकार लाइसेंस निरस्त कर दिया गया। सवाल यह है कि यदि सब कुछ गैरकानूनी था तो अस्पताल को इतने दिनों तक खुला रखने का जिम्मेदार कौन है?
सत्ता-प्रभाव का संरक्षण!
डॉ. प्रमोद चौधरी रेडक्रॉस सोसायटी के चेयरमैन हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकारी पद और राजनीतिक रसूख की आड़ में स्वास्थ्य व्यवस्था के नियमों की धज्जियां उड़ाई गईं। बिना मान्यता के अस्पताल का निर्माण और संचालन ‘साफ-साफ अपराध’ है। लेकिन कार्रवाई के नाम पर सिर्फ कागजी खानापूर्ति की जा रही है।
जनता से धोखा, मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़
जिस अस्पताल से मरीज इलाज और भरोसा खरीद रहे थे, वहां उनकी जिंदगी दांव पर लगी थी। बिना मान्यता का अस्पताल चलाना सीधे-सीधे मरीजों की जान से खिलवाड़ है। सवाल है – अगर इलाज के दौरान कोई हादसा हो जाता तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेता?
व्यवस्था के लिए कड़ा संदेश जरूरी
यह मामला सिर्फ एक अस्पताल का नहीं है, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की सड़ी-गली व्यवस्था का आईना है। सरकार और स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि सिर्फ लाइसेंस निरस्त करने की दिखावटी कार्रवाई न कर, जिम्मेदार अधिकारियों और संरक्षकों पर भी मुकदमा दर्ज करे। वरना जनता यही मानेगी कि यह पूरा खेल ‘सत्ता संरक्षण’ में चल रहा था और क्या आगे भी अभय मिलेगा?

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