अग्रलेख
“जब भाई ही अपराधी बन जाए — समाज की आत्मा पर प्रहार
समाज की मर्यादा का क्षरण बांदा की यह घटना — जहाँ एक युवती ने रिश्ते के “भाई” द्वारा जबरन मांग भरने के बाद आत्महत्या कर ली —सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि भारतीय समाज की मर्यादा और मूल्यबोध का चरम पतन है।जिस संस्कृति में “भाई” शब्द का अर्थ रक्षा और सम्मान से जुड़ा था,वहीं आज यह पवित्र रिश्ता भी स्वार्थ, वासना और अधिकार के विकृत रूप में बदलता जा रहा है।यह प्रश्न केवल उस एक व्यक्ति का नहीं है जिसने अपराध किया,बल्कि उन सबका है जो “देखते रहे, पर बोले नहीं।”यही चुप्पी, यही मौन — हमारे सामाजिक पतन की जड़ है.
स्त्री की सहमति का प्रश्नभारत में आज भी “स्त्री की इच्छा” को समाज का विषय बना दिया गया है।जहाँ उसकी चुप्पी को ‘स्वीकृति’ और विरोध को ‘अपमान’ माना जाता है।यह मानसिकता केवल अपराध को जन्म नहीं देती —बल्कि समाज में स्त्री की आत्मा को मौन रहने की आदत डाल देती है।
“सहमति के बिना किया गया हर संबंध,चाहे वह विवाह का हो या रिश्ते का —एक छुपा हुआ अत्याचार है।”
कानूनी और नैतिक दायित्वभारतीय दंड संहिता (IPC) में ऐसे कृत्य स्पष्ट रूप से दंडनीय हैं —धारा 366 (जबरन विवाह), धारा 354 (यौन उत्पीड़न), और धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना)।परन्तु यह भी सत्य है कि कानून तब तक असहाय रहता है जब तक समाज संवेदनशील न हो।पुलिस जांच करेगी, अदालत फैसला देगी —पर उस माँ की आँखों का वह खालीपन,उस युवती के मौन का वह दर्द — क्या किसी न्याय से भरा जा सकेगा?
शिक्षा और संस्कार की पुनर्स्थापनाइस घटना से हमें यह स्वीकार करना होगा कि“संस्कार अब घरों में नहीं, किताबों में रह गए हैं।”बच्चों को कानून की नहीं, संवेदना की शिक्षा चाहिए।रिश्तों में अधिकार नहीं, कर्तव्य की भावना लौटानी होगी।“जहाँ प्रेम, मर्यादा से कट जाए,वहाँ अपराध पनपता है।”
कौटिल्य का दृष्टिकोण,आचार्य कौटिल्य ने कहा था —“राज्य की शक्ति न्याय में नहीं, नैतिकता में निहित होती है।”यदि आज समाज में स्त्री सुरक्षा केवल कानून पर निर्भर है,तो समझिए — राज्य की आत्मा कमजोर हो चुकी है।क्योंकि जहाँ स्त्री भय में जीती है, वहाँ राष्ट्र दुर्बल होता है।अंतिम चेतावनी,आज हर नागरिक, हर परिवार को आत्ममंथन करना होगा।कानून से पहले चरित्र चाहिए —और चरित्र का अर्थ केवल परहेज़ नहीं, मर्यादा का अभ्यास है।
“जब भाई अपराधी बन जाए,तब सबसे पहले समाज को आईना देखनाचाहिये

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