: शिक्षक संघ की एकजुटता या नामांकन की औपचारिकता?
बस्ती, 26 अक्टूबर 2025
उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के त्रैवार्षिक अधिवेशन में ब्लाक कुदरहा में निर्विरोध चुनाव और पदाधिकारियों की घोषणा तो हुई, लेकिन यह आयोजन कितना लोकतांत्रिक था? आनंद दुबे को संरक्षक, चंद्रभान चौरसिया को अध्यक्ष और ओमप्रकाश पाण्डेय को मंत्री बनाने का दावा सर्वसम्मति से किया गया, पर सवाल यह है कि जब किसी पद पर दो प्रत्याशी भी नामांकन नहीं भर पाए, तो यह एकजुटता है या संगठन की आंतरिक कमजोरी?
जिलाध्यक्ष उदयशंकर शुक्ल ने मंच से जोर देकर कहा कि "एकजुटता से ही लक्ष्य हासिल होंगे" और संगठन ही शिक्षकों के हितों की लड़ाई लड़ता है। यह बात सही है, लेकिन अधिवेशन की रिपोर्ट पढ़कर लगता है कि अपील के बावजूद शिक्षक नामांकन भरने से कतराए। क्या यह डर है, उदासीनता है या नेतृत्व पहले से तय था? निर्विरोध चुनाव लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक माने जाते हैं, लेकिन प्राथमिक शिक्षकों जैसे बड़े वर्ग में अगर प्रतिस्पर्धा ही न हो, तो संगठन की जीवंतता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
चंद्रभान चौरसिया ने आभार जताते हुए शिक्षकों के हित में काम करने का वादा किया, जो हर नवनिर्वाचित नेता की रस्मी बात है। लेकिन असल मुद्दे – जैसे पुरानी पेंशन बहाली, प्रमोशन की रुकावटें, स्थानांतरण नीति की समस्याएं या बढ़ते कार्यभार – पर अधिवेशन में कोई ठोस चर्चा नहीं उभरी। रिपोर्ट में "गूंजे मुद्दे" का जिक्र है, पर वे मुद्दे क्या थे? यह खामोशी बताती है कि अधिवेशन ज्यादा औपचारिकता और कम实质ी बहस का मंच बना रहा।
आने वाले अधिवेशनों (हरैया 30 अक्टूबर, नगर क्षेत्र 3 नवंबर, दुबौलिया 4 नवंबर) में अगर यही पैटर्न दोहराया गया, तो संघ की विश्वसनीयता दांव पर लग जाएगी। शिक्षक सुरक्षित तभी रहेंगे जब संगठन उनकी आवाज को सड़क से सत्ता तक पहुंचाए, न कि सिर्फ पद बांटने का जरिया बने। एकजुटता अच्छी है, लेकिन बिना प्रतिस्पर्धा और मुद्दों की गहराई के यह एकजुटता खोखली साबित हो सकती है। क्या संघ अब असली लड़ाई की तैयारी करेगा, या यही रस्मी अधिवेशन चलते रहेंगे? यह सवाल शिक्षक समुदाय को खुद से पूछना चाहिए।

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