अमेरिका भारत से बंदूक की नोक पर व्यापार समझौता नहीं करा सकता:
वैश्विक व्याख्या
राजेन्द्र नाथ तिवारी
भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल का यह बयान, "हम कभी बंदूक की नोक पर बातचीत नहीं करते," अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ का प्रतीक है। अप्रैल 2025 में इटली-भारत बिजनेस, साइंस एंड टेक्नोलॉजी फोरम में दिए गए इस बयान ने न केवल द्विपक्षीय व्यापार वार्ताओं की जटिलताओं को उजागर किया, बल्कि वैश्विक व्यापार व्यवस्था में भारत जैसे उभरते बाजारों की बढ़ती ताकत को भी रेखांकित किया।fb6445 यह बयान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए 25% पारस्परिक शुल्कों को 90 दिनों के लिए स्थगित करने के संदर्भ में आया, जो एक तरह का दबाव था कि भारत जल्दी से द्विपक्षीय व्यापार समझौता (बीटीए) पर हस्ताक्षर करे। लेकिन भारत ने साफ तौर पर कहा कि राष्ट्रीय हितों की रक्षा के बिना कोई जल्दबाजी नहीं होगी।
यह कथन केवल एक राजनयिक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि वैश्विक व्यापार की बदलती गतिशीलता का प्रतिबिंब है। जहां एक ओर अमेरिका अपनी 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के तहत शुल्कों का हथियार इस्तेमाल कर रहा है, वहीं भारत 'इंडिया फर्स्ट' के सिद्धांत पर अडिग है। इसकी वैश्विक व्याख्या व्यापार युद्धों, बहुपक्षीयता के पतन, वैश्विक दक्षिण की एकजुटता और आपूर्ति श्रृंखलाओं के पुनर्गठन जैसे मुद्दों को छूती है। इस निबंध में हम इस बयान के वैश्विक आयामों की 1500 शब्दों में गहन चर्चा करेंगे, जहां भारत की संप्रभुता न केवल आर्थिक बल्कि भू-राजनीतिक संतुलन का आधार बनेगी।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों का सफर
अमेरिका और भारत के बीच व्यापार संबंधों का इतिहास उतार-चढ़ाव भरा रहा है। 1990 के दशक में भारत की उदारीकरण नीतियों के बाद दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार तेजी से बढ़ा। 2008 का नागरिक परमाणु समझौता एक मील का पत्थर था, जिसने आर्थिक सहयोग को मजबूत किया। 2024-25 में यह व्यापार 131.84 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जहां अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।2b4e2b लेकिन ट्रंप के पहले कार्यकाल (2017-2021) में अमेरिका ने भारत को 'जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज' (जीएसपी) से बाहर कर दिया, जिससे भारतीय निर्यात प्रभावित हुए।
2025 में ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में यह तनाव फिर उभरा। जुलाई 2025 में ट्रंप ने भारत पर 25% शुल्क लगाने की धमकी दी, दावा करते हुए कि भारत के उच्च शुल्क (जैसे मोटरसाइकिल पर 100%) अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।90c757 यह 'बंदूक की नोक' वाली नीति का उदाहरण था, जहां शुल्क दबाव के रूप में इस्तेमाल हो रहे थे। भारत ने जवाब में रूस से सस्ते तेल की खरीद को बढ़ावा दिया, जो अमेरिकी प्रतिबंधों को चुनौती देता था। गोयल का बयान इसी संदर्भ में आया, जो भारत की 'रणनीतिक स्वायत्तता' को दर्शाता है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी कार्नेगी ग्लोबल टेक्नोलॉजी समिट में कहा कि अमेरिका की 'विश्व के साथ जुड़ाव' की नीति बदल गई है, जो हर क्षेत्र में प्रभाव डाल रही है।304592
यह ऐतिहासिक संदर्भ बताता है कि भारत अब कोई 'उपनिवेशिक अर्थव्यवस्था' नहीं है, बल्कि एक ऐसी शक्ति है जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं (जैसे सेमीकंडक्टर, फार्मास्यूटिकल्स) में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
वर्तमान तनाव: शुल्क युद्ध और वार्ताओं की जटिलता
2025 में अमेरिका-भारत व्यापार वार्ताएं 90-दिवसीय शुल्क स्थगन के बाद तेज हुईं। ट्रंप ने एयर फोर्स वन पर पत्रकारों से कहा कि भारत में 'पूर्ण पहुंच' असंभव है, और अमेरिका को 'घुसने' का अधिकार चाहिए।2fe7d7 लेकिन गोयल ने स्पष्ट किया कि भारत किसानों, मछुआरों और एमएसएमई की रक्षा करेगा, और कोई जल्दबाजी नहीं होगी।9daef2 जयशंकर ने जोर दिया कि दोनों पक्षों के दृष्टिकोण मेल खाने चाहिए—अमेरिका का भारत के प्रति दृष्टिकोण और भारत का अमेरिका के प्रति।
ये तनाव केवल द्विपक्षीय नहीं हैं। अमेरिका की नीति चीन के साथ व्यापार युद्ध का विस्तार है, जहां भारत को 'चाइना प्लस वन' रणनीति का हिस्सा बनाया जा रहा है। लेकिन भारत ने साफ किया कि वह किसी की 'प्लान बी' नहीं बनेगा। गोयल ने बर्लिन ग्लोबल डायलॉग में कहा कि वार्ताएं सकारात्मक हैं, लेकिन राष्ट्रीय हित प्राथमिक हैं।aae0de यह 'बंदूक की नोक' वाली धमकी वैश्विक व्यापार को अस्थिर कर रही है, जहां डब्ल्यूटीओ की बहुपक्षीयता कमजोर पड़ रही है।
भारत की मुद्रा: संप्रभुता और 'इंडिया फर्स्ट' सिद्धांत
गोयल का बयान भारत की विदेश नीति का सार है—'वसुधैव कुटुंबकम्' लेकिन स्वायत्तता के साथ। भारत ने यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ भी समान वार्ताएं की हैं, जहां जल्दबाजी से बचा। जयशंकर ने कहा कि यूएस वार्ताएं 'चुनौतीपूर्ण' हैं, लेकिन भारत तैयार है।c08ce5 यह सिद्धांत वैश्विक दक्षिण के लिए प्रेरणा है, जहां ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका जैसे देश अमेरिकी दबाव का सामना कर रहे हैं।
भारत की अर्थव्यवस्था 3.7 ट्रिलियन डॉलर की है, जो 2047 तक विकसित भारत का लक्ष्य रखती है। व्यापार समझौते में कृषि, डेयरी और आईपीआर जैसे संवेदनशील क्षेत्रों पर भारत अडिग है। गोयल ने कहा कि वैश्विक दक्षिण को एकजुट होकर व्यापार अनिश्चितताओं का मुकाबला करना चाहिए।c20c25 यह बयान भारत की बढ़ती कूटनीतिक ताकत को दिखाता है, जहां वह क्वाड और आई2यू2 जैसे मंचों पर अमेरिका के साथ सहयोग करता है, लेकिन आर्थिक दबाव स्वीकार नहीं करता।
वैश्विक प्रभाव: बहुपक्षीयता का पतन और नई गतिशीलता
इस बयान की वैश्विक व्याख्या व्यापार व्यवस्था के पुनर्गठन से जुड़ी है। पहला, डब्ल्यूटीओ कमजोर हो रहा है। अमेरिका ने 2025 में डब्ल्यूटीओ अपील बॉडी को फिर निष्क्रिय कर दिया, जिससे द्विपक्षीय सौदे बढ़े। भारत ने इसका विरोध किया, लेकिन अपनी स्थिति मजबूत की। दूसरा, ट्रंप के शुल्क वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर रहे हैं। भारत के फार्मा निर्यात (अमेरिका को 40%) पर असर पड़ेगा, लेकिन यह चीन से स्थानांतरित हो सकता है।
तीसरा, वैश्विक दक्षिण की एकजुटता। गोयल ने यूएनसीटीएडी में कहा कि विकासशील देशों को एक आवाज उठानी चाहिए।82622f अफ्रीकी संघ और आसियान जैसे ब्लॉक भारत के साथ जुड़ सकते हैं। चौथा, भू-राजनीतिक प्रभाव। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने रूसी तेल खरीदा, जिस पर गोयल ने जर्मनी-यूके की दोहरी नीतियों की आलोचना की—"भारत को क्यों निशाना बनाया?"2e4221 यह अमेरिकी प्रतिबंधों को चुनौती देता है।
पांचवां, प्रौद्योगिकी और ऊर्जा क्षेत्र। जयशंकर ने कहा कि अमेरिका और चीन प्रौद्योगिकी में प्रमुख हैं, लेकिन भारत तीसरा खंभा बन सकता है।39ff25 यदि समझौता होता है, तो 2030 तक व्यापार 500 अरब डॉलर का लक्ष्य हासिल हो सकता है।130b0e लेकिन विफलता से बहुपक्षीयता का अंतिम प्रहार होगा, जहां क्षेत्रीय समझौते (आरसीईपी) मजबूत होंगे।
विश्व प्रतिक्रियाएं: मीडिया और नेताओं की नजर
वैश्विक मीडिया ने इस बयान को सकारात्मक रूप से देखा। एनडीटीवी और हिंदुस्तान टाइम्स ने इसे भारत की मजबूती का प्रतीक बताया।bd19d9 रॉयटर्स ने अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से कहा कि मतभेद रातोंरात हल नहीं होंगे।8317c9 यूरोपीय नेता, जैसे जर्मन चांसलर, ने भारत की स्वायत्तता की सराहना की, लेकिन अमेरिकी दबाव से चिंता जताई। चीनी मीडिया ने इसे 'अमेरिकी साम्राज्यवाद' के खिलाफ बताया, जबकि ब्रिटिश अखबारों ने ब्रेक्सिट के बाद अपनी वार्ताओं से तुलना की।
वैश्विक दक्षिण में, ब्राजील के राष्ट्रपति लूला ने समर्थन दिया, कहते हुए कि विकासशील देश दबाव में झुकेंगे नहीं। अमेरिकी थिंक टैंक कार्नेगी ने चेतावनी दी कि यह तनाव इंडो-पैसिफिक स्थिरता प्रभावित करेगा। कुल मिलाकर, प्रतिक्रियाएं भारत को एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में स्थापित करती हैं।
भविष्य की संभावनाएं: संतुलन या टकराव?
भविष्य में, यदि 90-दिवसीय विंडो में समझौता होता है, तो यह वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देगा। गोयल ने कहा कि वार्ताएं 'सही ट्रैक' पर हैं।de4251 लेकिन यदि नहीं, तो भारत यूके, ईयू के साथ वैकल्पिक सौदे करेगा। वैश्विक रूप से, यह बहुपक्षीय सुधारों (जैसे डब्ल्यूटीओ में कृषि सब्सिडी) को प्रेरित करेगा। भारत की भूमिका मध्यस्थ की होगी, जहां वह अमेरिका-चीन तनाव में संतुलन बनेगा।
निष्कर्ष
पीयूष गोयल का 'बंदूक की नोक' वाला बयान एक साधारण प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि वैश्विक व्यवस्था के परिवर्तन का घोषणापत्र है। यह दर्शाता है कि 21वीं सदी में व्यापार अब केवल आर्थिक नहीं, बल्कि शक्ति संतुलन का खेल है। भारत की संप्रभुता वैश्विक दक्षिण को सशक्त बनाएगी, जबकि अमेरिका को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने को मजबूर करेगी। अंततः, यह बयान 'विकसित भारत 2047' की दिशा में एक कदम है, जहां सहयोग दबाव से ऊपर होगा।
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