विवेक सिंह, बस्ती, उत्तर प्रदेशभारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष स्थान है, जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि सामाजिक एकता, सांस्कृतिक धरोहर और पर्यावरणीय संतुलन के संदेश भी देते हैं। इनमें से एक ऐसा पर्व है छठ, जो सूर्य देव की आराधना पर आधारित है। छठ महोत्सव, जिसे छठ पूजा के नाम से भी जाना जाता है, मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ भागों में मनाया जाता है। यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की छठी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तक चलने वाला चार दिवसीय उत्सव है। २०२५ में, जब हम २७ अक्टूबर को इसकी चर्चा कर रहे हैं, छठ का आगमन नवंबर के प्रारंभ में होने वाला है, जो लोगों के जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार करता है।छठ का अर्थ है 'छठा', लेकिन इसका गहरा दार्शनिक महत्व है। यह सूर्य की सात किरणों में से छठी किरण 'उष्णा' की उपासना का प्रतीक माना जाता है, जो जीवन को गति देती है। यह पर्व व्रत, पूजा, भक्ति और प्रकृति के साथ सामंजस्य का अनोखा संगम है। महिलाओं द्वारा निर्वहन किया जाने वाला यह व्रत परिवार की सुख-समृद्धि, संतान प्राप्ति और रोग निवारण के लिए किया जाता है। लेकिन छठ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सामाजिक उत्सव है, जहाँ गंगा-यमुना-कोसी जैसी नदियों के तट पर लाखों लोग एकत्र होते हैं, गीत गाते हैं और एक-दूसरे के प्रति प्रेम बाँटते हैं। इस लेख में हम छठ के इतिहास, महत्व, विधि, सांस्कृतिक आयाम और आधुनिक प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि इसकी महिमा को समझा जा सके।छठ का इतिहास और उत्पत्तिछठ महोत्सव की जड़ें प्राचीन वैदिक काल में खोजी जा सकती हैं। ऋग्वेद और महाभारत जैसे ग्रंथों में सूर्य उपासना का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि छठ की शुरुआत भगवान राम ने की थी। अयोध्या से वनवास लौटते समय, जब सीता माता गर्भवती थीं, तो उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव का व्रत रखा। यह घटना रामायण में वर्णित है, जहाँ राम ने भी इस व्रत में भाग लिया। एक अन्य कथा के अनुसार, माता सावित्री ने अपने प
ति सत्यवान को यमराज के चंगुल से मुक्त करने के लिए इसी व्रत का पालन किया।पुरातात्विक दृष्टि से, छठ की परंपरा सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ी हो सकती है। वहाँ सूर्य पूजा के प्रमाण मिलते हैं। मध्यकाल में, यह पर्व बौद्ध और जैन प्रभाव से भी समृद्ध हुआ। भगवान बुद्ध की माँ महामाया ने भी सूर्य उपासना की थी। ब्रिटिश काल में, जब बिहार के लोग पूर्वी भारत के विभिन्न भागों में मजदूरी के लिए गए, तो उन्होंने छठ को वहाँ फैला दिया। आज यह उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों जैसे गोरखपुर, देवरिया से लेकर दिल्ली, मुंबई तक पहुँच चुका है।ऐतिहासिक रूप से, छठ एक लोक-आधारित पर्व है, जो राजसी वैभव से दूर, साधारण जन की भावनाओं को प्रतिबिंबित करता है। २०वीं शताब्दी में, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, छठ ने सामाजिक एकता का प्रतीक बनाया। महात्मा गांधी ने भी प्रकृति पूजा को प्रोत्साहित किया, जो छठ के मूल में है। आज, जब जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती है, छठ का पर्यावरणीय संदेश – नदी तट पर स्नान, वृक्षारोपण और शाकाहारी भोजन – और भी प्रासंगिक हो गया है। इसकी उत्पत्ति से ही छठ ने सूर्य को जीवन का स्रोत मानकर, अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा का संदेश दिया है। छठ का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
छठ महोत्सव: सूर्य उपासना की अनुपम परंपरा
परिचय
भारतीय संस्कृति में त्योहारों का विशेष स्थान है, जो न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं, बल्कि सामाजिक एकता, सांस्कृतिक धरोहर और पर्यावरणीय संतुलन के संदेश भी देते हैं। इनमें से एक ऐसा पर्व है छठ, जो सूर्य देव की आराधना पर आधारित है। छठ महोत्सव, जिसे छठ पूजा के नाम से भी जाना जाता है, मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ भागों में मनाया जाता है। यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की छठी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तक चलने वाला चार दिवसीय उत्सव है। २०२५ में, जब हम २७ अक्टूबर को इसकी चर्चा कर रहे हैं, छठ का आगमन नवंबर के प्रारंभ में होने वाला है, जो लोगों के जीवन में एक नई ऊर्जा का संचार करता है।
छठ का अर्थ है 'छठा', लेकिन इसका गहरा दार्शनिक महत्व है। यह सूर्य की सात किरणों में से छठी किरण 'उष्णा' की उपासना का प्रतीक माना जाता है, जो जीवन को गति देती है। यह पर्व व्रत, पूजा, भक्ति और प्रकृति के साथ सामंजस्य का अनोखा संगम है। महिलाओं द्वारा निर्वहन किया जाने वाला यह व्रत परिवार की सुख-समृद्धि, संतान प्राप्ति और रोग निवारण के लिए किया जाता है। लेकिन छठ केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक सामाजिक उत्सव है, जहाँ गंगा-यमुना-कोसी जैसी नदियों के तट पर लाखों लोग एकत्र होते हैं, गीत गाते हैं और एक-दूसरे के प्रति प्रेम बाँटते हैं। इस लेख में हम छठ के इतिहास, महत्व, विधि, सांस्कृतिक आयाम और आधुनिक प्रासंगिकता पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि इसकी महिमा को समझा जा सके। (शब्द गिनती: २८०)
छठ का इतिहास और उत्पत्ति
छठ महोत्सव की जड़ें प्राचीन वैदिक काल में खोजी जा सकती हैं। ऋग्वेद और महाभारत जैसे ग्रंथों में सूर्य उपासना का उल्लेख मिलता है। मान्यता है कि छठ की शुरुआत भगवान राम ने की थी। अयोध्या से वनवास लौटते समय, जब सीता माता गर्भवती थीं, तो उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्य देव का व्रत रखा। यह घटना रामायण में वर्णित है, जहाँ राम ने भी इस व्रत में भाग लिया। एक अन्य कथा के अनुसार, माता सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यमराज के चंगुल से मुक्त करने के लिए इसी व्रत का पालन किया।
पुरातात्विक दृष्टि से, छठ की परंपरा सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ी हो सकती है। वहाँ सूर्य पूजा के प्रमाण मिलते हैं। मध्यकाल में, यह पर्व बौद्ध और जैन प्रभाव से भी समृद्ध हुआ। भगवान बुद्ध की माँ महामाया ने भी सूर्य उपासना की थी। ब्रिटिश काल में, जब बिहार के लोग पूर्वी भारत के विभिन्न भागों में मजदूरी के लिए गए, तो उन्होंने छठ को वहाँ फैला दिया। आज यह उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों जैसे गोरखपुर, देवरिया से लेकर दिल्ली, मुंबई तक पहुँच चुका है।
ऐतिहासिक रूप से, छठ एक लोक-आधारित पर्व है, जो राजसी वैभव से दूर, साधारण जन की भावनाओं को प्रतिबिंबित करता है। २०वीं शताब्दी में, स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, छठ ने सामाजिक एकता का प्रतीक बनाया। महात्मा गांधी ने भी प्रकृति पूजा को प्रोत्साहित किया, जो छठ के मूल में है। आज, जब जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती है, छठ का पर्यावरणीय संदेश – नदी तट पर स्नान, वृक्षारोपण और शाकाहारी भोजन – और भी प्रासंगिक हो गया है। इसकी उत्पत्ति से ही छठ ने सूर्य को जीवन का स्रोत मानकर, अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा का संदेश दिया है। (शब्द गिनती: ५२०, कुल: ८००)
छठ का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
छठ सूर्य देव और छठी देवी (षष्ठी माता) की उपासना का पर्व है। हिंदू धर्म में सूर्य को आदि देव माना जाता है, जो प्राणों का पोषण करता है। आयुर्वेद के अनुसार, सूर्य की किरणें विटामिन डी प्रदान करती हैं, जो हड्डियों और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाती हैं। धार्मिक रूप से, यह व्रत पापों का नाश करता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। पुराणों में कहा गया है कि छठ व्रत करने से सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
महिलाओं के लिए यह व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। नि:संतान दंपतियों के लिए संतान प्राप्ति, विवाहितों के लिए सुखी दांपत्य और बुजुर्गों के लिए दीर्घायु का वरदान माना जाता है। पुरुष भी इसमें भाग लेते हैं, लेकिन मुख्य व्रती महिलाएँ होती हैं। यह व्रत तामसिक प्रवृत्तियों को सात्विक बनाता है। योग शास्त्र में, सूर्य नमस्कार छठ से प्रेरित है, जो सूर्य की ऊर्जा को आत्मा में समाहित करता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से, छठ ध्यान और एकाग्रता सिखाता है। चार दिनों का कठोर व्रत – जल ही जल – शरीर को शुद्ध करता है। सूर्योदय और सूर्यास्त पर अर्घ्य देकर, व्रती प्रकृति के चक्र को सम्मान देते हैं। यह पर्व वेदांत के 'तत्वमसि' (तू वही है) के सिद्धांत को जीवंत करता है, जहाँ व्यक्ति और ब्रह्मांड एक हो जाते हैं। आधुनिक मनोविज्ञान में, यह माइंडफुलनेस का रूप है, जो तनाव मुक्ति प्रदान करता है। छठ का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन दर्शन है – प्रकाश की खोज में अंधकार को पार करना। (शब्द गिनती: ४२०, कुल: १२२०)
छठ पूजा की विधि और अनुष्ठान
छठ पूजा चार दिनों का कठोर अनुष्ठान है, जो कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से सप्तमी तक चलता है। प्रत्येक दिन की अपनी विशिष्ट विधि है, जो शुद्धता और भक्ति पर आधारित है।
पहला दिन: नहाय-खाय
यह व्रत का प्रारंभ है। व्रती स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करती हैं। घर की सफाई की जाती है। भोजन में केवल गुड़, चावल, दाल और सब्जियाँ होती हैं। 'खाय' का अर्थ है भोजन, लेकिन यह सात्विक और सीमित होता है। परिवार के साथ स्नानघाट पर जाकर पवित्र जल छूते हैं। यह दिन शारीरिक शुद्धि का प्रतीक है।
दूसरा दिन: खरना
खरना या कद्दू भात का दिन। व्रती एक बार भोजन करती हैं – चावल, गुड़ की खीर और कद्दू की सब्जी। यह भोजन प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है। व्रती रात्रि से उपवास प्रारंभ करती हैं। घर में ठेकुआ (गुड़-गेहूँ की रोटी) बनाया जाता है, जो छठ का प्रमुख प्रसाद है। यह दिन मानसिक शुद्धि का है, जहाँ व्रती परिवार की भलाई के लिए प्रार्थना करती हैं।
तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य
सबसे कठिन दिन। व्रती ३६ घंटे का निर्जल उपवास रखती हैं। सूर्यास्त के समय नदी तट पर बांस की चौकी सजाई जाती है। उस पर फल, ठेकुआ, सकोर (तरबूज) आदि रखे जाते हैं। दाहिने हाथ में सूप (टोकरी) लिए व्रती सूर्य को अर्घ्य देती हैं। 'देवी सूर्यवंशं...' जैसे छठ गीत गाए जाते हैं। यह अर्घ्य प्रकृति को धन्यवाद ज्ञापित करने का माध्यम है।
चौथा दिन: उषा अर्घ्य
सूर्योदय पर अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होता है। प्रसाद ग्रहण किया जाता है। परिवार के साथ भोजन साझा होता है। यह दिन विजय का प्रतीक है, जहाँ अंधकार पर प्रकाश की जीत होती है।
पूजा सामग्री में कोई रंगीन या कृत्रिम वस्तु नहीं होती। सब कुछ प्राकृतिक – बाँस, मिट्टी का दीया, मौसमी फल। व्रत के दौरान नमक, मसाले निषिद्ध हैं। यह विधि न केवल धार्मिक, बल्कि स्वास्थ्यवर्धक भी है, क्योंकि उपवास detox करता है। (शब्द गिनती:
सांस्कृतिक और सामाजिक आयाम
छठ एक सांस्कृतिक उत्सव है, जो लोकगीतों, नृत्य और कला से भरपूर है। छठ गीत – 'हो सजन हो...', 'काहे तोहार गर्व होय' – बिहारी संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। ये गीत प्रेम, विरह और भक्ति से ओतप्रोत हैं। महिलाओं के समूह में गाए जाने वाले ये गीत सामूहिकता सिखाते हैं।
सामाजिक रूप से, छठ जाति-धर्म की सीमाओं को तोड़ता है। नदी तट पर सभी एक साथ खड़े होते हैं – अमीर-गरीब, ऊँच-नीच का भेद मिट जाता है। यह महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है, क्योंकि व्रत महिलाएँ ही रखती हैं, जो परिवार की धुरी हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में, ठेकुआ और फलों का बाजार फलता-फूलता है।
क्षेत्रीय विविधताएँ रोचक हैं। बिहार के भागलपुर में कोसी नदी पर विशाल मेले लगते हैं, जबकि झारखंड के रांची में आदिवासी तत्व जुड़ते हैं। उत्तर प्रदेश में यह 'सूर्य षष्ठी' कहलाता है। प्रवासी बिहारियों ने मुंबई के जुहू बीच पर छठ मनाना शुरू किया, जो अब राष्ट्रीय पहचान बन गया।
पर्यावरणीय और स्वास्थ्य लाभ
छठ पर्यावरण संरक्षण का संदेश देता है। नदी तट पर स्नान जल संरक्षण सिखाता है। शाकाहारी भोजन और मौसमी फल जलवायु अनुकूल हैं। व्रत से डिटॉक्स होता है, इम्यूनिटी बढ़ती है। सूर्य स्नान से विटामिन डी मिलता है।
आधुनिक संदर्भ और चुनौतियाँ
आज छठ वैश्विक हो गया है। सोशल मीडिया पर लाइव प्रसारण होते हैं। लेकिन प्रदूषण, नदियों का अतिक्रमण चुनौतियाँ हैं। सरकारें छठ घाट विकसित कर रही हैं। युवा पीढ़ी इसे पर्यावरण दिवस के रूप में देख रही है।
छठ सूर्य की किरणों सा उज्ज्वल पर्व है, जो जीवन को नई दिशा देता है। यह परंपरा, भक्ति और एकता का संगम है। आइए, हम सब इसे अपनाएँ, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इस धरोहर को संजोएँ। जय छठ माता! जय सूर्य देव!
छठ सूर्य देव और छठी देवी (षष्ठी माता) की उपासना का पर्व है। हिंदू धर्म में सूर्य को आदि देव माना जाता है, जो प्राणों का पोषण करता है। आयुर्वेद के अनुसार, सूर्य की किरणें विटामिन डी प्रदान करती हैं, जो हड्डियों और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाती हैं। धार्मिक रूप से, यह व्रत पापों का नाश करता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करता है। पुराणों में कहा गया है कि छठ व्रत करने से सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
महिलाओं के लिए यह व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। नि:संतान दंपतियों के लिए संतान प्राप्ति, विवाहितों के लिए सुखी दांपत्य और बुजुर्गों के लिए दीर्घायु का वरदान माना जाता है। पुरुष भी इसमें भाग लेते हैं, लेकिन मुख्य व्रती महिलाएँ होती हैं। यह व्रत तामसिक प्रवृत्तियों को सात्विक बनाता है। योग शास्त्र में, सूर्य नमस्कार छठ से प्रेरित है, जो सूर्य की ऊर्जा को आत्मा में समाहित करता है।आध्यात्मिक दृष्टि से, छठ ध्यान और एकाग्रता सिखाता है। चार दिनों का कठोर व्रत – जल ही जल – शरीर को शुद्ध करता है। सूर्योदय और सूर्यास्त पर अर्घ्य देकर, व्रती प्रकृति के चक्र को सम्मान देते हैं। यह पर्व वेदांत के 'तत्वमसि' (तू वही है) के सिद्धांत को जीवंत करता है, जहाँ व्यक्ति और ब्रह्मांड एक हो जाते हैं। आधुनिक मनोविज्ञान में, यह माइंडफुलनेस का रूप है, जो तनाव मुक्ति प्रदान करता है। छठ का महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन दर्शन है – प्रकाश की खोज में अंधकार को पार करना।