मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025

भ्र्ष्टाचार के महासागर मेँ गोता लगा रहे पैसे के भूखे भड़िये









प्रधान और सचिव की जोड़ी ने मनरेगा को बनाया निजी ठेका मंडी — नियम-कानून ताक पर, गरीबों के हक पर डाका!

बहादुरपुर/बस्ती।
विकास खण्ड बहादुरपुर में भ्रष्टाचार अब खुलेआम तांडव कर रहा है। ग्राम पंचायत सोनबरसा में मनरेगा की पवित्र योजना को लूट के जरिये में तब्दील कर दिया गया है। विकास का दावा करने वाले प्रधान और सचिव अब ठेका मजदूरों से कार्य करवा रहे हैं, जबकि गाँव के असली जॉब कार्ड धारक सिर्फ कागजों पर मजदूरी कर रहे हैं।

सचिव और प्रधान की मिलीभगत ने मनरेगा एक्ट की ऐसी धज्जियाँ उड़ाई हैं कि अब नियम-कानून इनकी जेब में कैद नजर आते हैं।

फर्जी हाज़िरी से गरीबों का हक मारा गया

ग्राम पंचायत सोनबरसा में दर्जनों जॉब कार्ड धारकों के नाम पर फर्जी हाज़िरी लगाई जा रही है। जबकि ज़मीनी स्तर पर इंटरलाकिंग कार्य बाहरी मजदूरों से कराया जा रहा है।रामकिशोर के घर से जबीउल्लाह के खेत तक, मंदिर से राम प्रताप के खेत तक और राम नेवास से शकील के घर तक इंटरलाकिंग निर्माण कार्य में गाँव के कार्डधारक तो गायब हैं, परंतु बाहरी दिहाड़ी मजदूर दिन-रात पसीना बहा रहे हैं।

“अपना भला तो जग भला” के नाम पर चल रहा खेल

प्रधान ने चुनाव के दौरान गरीबों से विकास के जो वादे किए थे, वे अब भ्रष्टाचार की आहुति में जल चुके हैं। ग्राम पंचायत अधिकारी और सचिव दोनों ने विकास को ठेका व्यवस्था में बदल दिया है, जहाँ नियम-कानून के बजाय रिश्वत और दबाव का सिक्का चलता है।

ग्राम पंचायत के तीन प्रमुख प्रोजेक्टों पर मनरेगा के तहत कार्य तो चल रहा है, मगर मजदूरी का लाभ बाहरी लोगों की जेब में जा रहा है। असली लाभार्थी — गाँव के जॉब कार्ड धारक — सिर्फ कागज पर मजदूर बनकर रह गए हैं।

उच्च अधिकारी बने “मौन दर्शक”

ब्लॉक विकास अधिकारी बहादुरपुर की चुप्पी भी अब सवालों के घेरे में है। ऐसा प्रतीत होता है कि भ्रष्टाचार की इस महासागर में वे भी गादुर पक्षी की तरह आँख बंद किए बैठे हैं। ग्राम पंचायत अधिकारी वीडिओ की भूमिका भी संदिग्ध बताई जा रही है — ग्रामीणों के अनुसार, सचिव उनके संरक्षण में मनरेगा की धांधली को खुलेआम अंजाम दे रहे हैं।

ग्रमीणों का आक्रोश और मीडिया की पड़ताल

मीडिया की धरातलीय पड़ताल में यह खुलासा हुआ कि जिन तीन परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है, वहाँ बाहरी मज़दूर काम कर रहे हैं, जबकि गाँव के असली कार्डधारक कोने में बैठे हैं।
गाँव के लोगों का कहना है —“प्रधान और सचिव की मिलीभगत से गरीबों के हक की रोटी छीनी जा रही है। अधिकारी चाहें तो सच्चाई एक दिन में सामने आ सकती है, पर सबकी मिलीभगत से भ्रष्टाचार फल-फूल रहा है।”

अब देखना है — क्या कार्रवाई होगी?

फोन पर सम्पर्क करने की कोशिश के बावजूद वीडिओ से वार्ता नहीं हो पाई। उनका पक्ष प्रकाशित किया जाएगा, लेकिन सवाल यही है 
क्या ब्लॉक प्रशासन और उच्च अधिकारी अब भी आंख मूंदे रहेंगे?
या फिर सोनबरसा पंचायत के इस खुले भ्रष्टाचार पर लगाम कसने की हिम्मत दिखाएंगे.

जब विकास की योजनाएं ठेकेदारों के हवाले हों, और अधिकारी मौन साध लें — तब लोकतंत्र नहीं, लूटतंत्र जन्म लेता है।

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