रील संस्कृति बनाम ऋषि संस्कृति : मनोरंजन से मनोविज्ञान तक
(कौटिल्य का भारत – सम्पादकीय विशेषांक)
कभी ऋषि अपने मन को साधते थे, आज के मनुष्य ने मोबाइल को साध लिया है — और वही उसकी आत्मा बन गई है। जिस देश में पहले “श्रवण” साधना थी, वहाँ अब “स्क्रॉलिंग” साधना है।यह युग विचार का नहीं, व्यू का है; तप का नहीं, ट्रेंड का है।आज भारत के युवा का मस्तिष्क स्क्रीन पर है, और उसकी आत्मा रील के साउंड ट्रैक में गुम है। हमने गंगा की शांति छोड़ दी, और इंस्टाग्राम की स्टोरी पकड़ ली।सभ्यता के सूर्य से आँखें चुराकर हम रिंग लाइट में सुख खोज रहे हैं — यही आधुनिकता का भारतीय संस्करण है।
रील संस्कृति : जहां गहराई का मज़ाक और गाली का ग्लैमर,रील संस्कृति वह जगह है जहाँ ज्ञान को ‘क्रिंज’ और अज्ञान को ‘कूल’ कहा जाता है।जहाँ लोग “गीता” के श्लोक पर नहीं रुकते, पर “ट्रेंडिंग बीट” पर उछल पड़ते हैं।रील संस्कृति एक अदृश्य साम्राज्य है —जहाँ राजा है एल्गोरिद्म, प्रजा है डोपामिन की गुलाम,
और संविधान है — “देखो, दिखाओ, भूल जाओ।”कभी लोग अपने विचार लिखते थे; अब अपने होंठों की नकल करते हैं।कभी लोग सत्य खोजते थे; अब फिल्टर चुनते हैं।यह “रील राष्ट्र” का नया धर्म है — जहाँ गंभीरता अपराध है, और मूर्खता मनोरंजन।
ऋषि संस्कृति : जहां शब्द मंत्र है, मौन भी वाणी,वहीं दूसरी ओर ऋषि संस्कृति है —जो रील के ‘रैंडम साउंड’ की नहीं, ओंकार की नाद की उपज थी।जहाँ “देखना” नहीं, “देखना सीखना” था।
जहाँ कैमरा नहीं था, पर दृष्टि थी।ऋषि संस्कृति कहती थी —“अहम् ब्रह्मास्मि” — मैं ही वह सत्य हूँ।
और रील संस्कृति कहती है —“अहम् वायरलास्मि” — मैं ही वह ट्रेंड हूँ।
ऋषि संस्कृति ने मनुष्य को आत्मा का दर्पण दिया था,रील संस्कृति ने उसे सेल्फी कैमरा दे दिया।एक से आत्मबोध हुआ, दूसरे से आत्मविस्मृति।
मनोविज्ञान : रील का नशा, ऋषि की निश्चलता,रील संस्कृति ने आज के युवाओं को “डोपामिन ड्रोन” बना दिया है। हर स्क्रॉल पर दिमाग को झूठा सुख मिलता है — जैसे अफीम का कश।
सोशल मीडिया अब कोई प्लेटफॉर्म नहीं, नशाखोरी की प्रयोगशाला है।
हर ‘लाइक’ एक डोपामिन इंजेक्शन है। परंतु जब यह नशा उतरता है, तो भीतर खालीपन, बेचैनी और दिशाहीनता का रेगिस्तान रह जाता है।
इसके उलट ऋषि संस्कृति का आनंद भीतर से आता था।वह ध्यान से उत्पन्न होता था, ध्वनि से नहीं।
ऋषि जब मौन होता था, तब भी ब्रह्म बोलता था।वह अपने भीतर वह “रील” देखता था जो अनंत काल तक चलती है —आत्मा की रील, जो कभी बफर नहीं होती।
समाजशास्त्र : जनसंस्कृति बनाम लोकसंस्कृति,रील संस्कृति ने लोकसंस्कृति को निगल लिया है।
अब लोकगीत नहीं, “रीमिक्स” है;लोकनृत्य नहीं, “ट्रांज़िशन” है;लोकसंवाद नहीं, “कमेंट सेक्शन” है।
जहाँ कभी चौपालों में विवेक का संवाद होता था,वहाँ अब 15 सेकंड की हँसी है — और उतनी ही जल्दी विस्मृति भी।आज का समाज बुद्धि के बजाए बैकग्राउंड म्यूज़िक से संचालित हो रहा है।
ऋषि संस्कृति का लोक माटी से जुड़ा था,रील संस्कृति का लोक “मार्केटिंग” से जुड़ा है।ऋषि संस्कृति ने विविधता से एकता बनाई,रील संस्कृति ने एकरूपता से अस्मिता मिटजाएगी.
रील संस्कृति का ईश्वर कैमरा है —वह सब कुछ दिखाती है, पर कुछ भी नहीं सिखाती।ऋषि संस्कृति का ईश्वर दृष्टा है — जो भीतर देखता है।
रील संस्कृति का सूत्र है —“जो दिखता है वही बिकता है।”
ऋषि संस्कृति का सूत्र था —“जो नहीं दिखता, वही टिकता है।”
दृश्य का आकर्षण अस्थायी है, दृष्टि की साधना शाश्वत।इसलिए ऋषि संस्कृति टिकेगी,
रील संस्कृति थकेगी।
भारत का धर्म : तकनीक को तप में बदलो
कौटिल्य ने कहा है — “जिस साधन से राज्य बर्बाद हो सकता है, उसी से राज्य संभल भी सकता है।”यह सूत्र रील संस्कृति पर भी लागू होता है।यदि रील को हम ज्ञान का माध्यम बनाएं —संस्कृति, शास्त्र, परंपरा और राष्ट्र-चेतना का सेतु —तो यही माध्यम डिजिटल आश्रम बन सकता है।
भारत की सनातन दृष्टि हर साधन में साधना देखती है।हमने अग्नि को पूजा में , अब रील को प्रबोधन में बदलने की जिम्मेदारी हमारी है।रील को “राग” दो, “राष्ट्र” दो, “रस” दो —
तब वह ऋषि संस्कृति की उत्तराधिकारी बन सकती है।
जब सभ्यता स्क्रॉल करती है,सभ्यता तब नहीं मरती जब युद्ध होता है,वह तब मरती है जब मनुष्य सोचने की क्षमता खो देता है।आज वही हो रहा है।रील संस्कृति ने हमारे समय का स्मृति-दहन कर दिया है।जो समाज 108 उपनिषदों को संभालता था, वह अब 108 सेकंड तक ध्यान नहीं रख पाता।पर आशा शेष है —क्योंकि इस भूमि में अब भी वे लोग हैं जो जानते हैं कि“रील नहीं, ऋषि ही वास्तविक इन्फ्लुएंसर है।”
एक देश जो ‘ऋषि-मुनियों’ से बना था,यदि वही ‘रील-मेकर्स’ से चलने लगे,तो समझो कि सभ्यता ने स्वयं को लॉगआउट कर दिया।
अब भारत को फिर से लॉगइन करना है —रील में नहीं, ऋषि के रसायन में।
व्यूज़ से नहीं, विवेक से।और यही “कौटिल्य का भारत” का संकल्प है —
रील की रोशनी में भी ऋषि की ज्योति जगाना।

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