बस्ती, उत्तरप्रदेश
उत्तर प्रदेश में सहकारिता आंदोलन की नई दिशा: समीक्षा बैठक पर विश्लेषणप्रदेश की सहकारिता व्यवस्था की दिशा और दशा को लेकर आज उत्तर प्रदेश के माननीय सहकारिता मंत्री श्री जे.पी.एस. राठौर ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रदेश के सभी सहकारी बैंकों के अध्यक्षों, संयुक्त निबंधकों, उपनिबंधकों, समितियों के सचिवों तथा वरिष्ठ अधिकारियों के साथ महत्वपूर्ण संवाद किया। यह बैठक केवल प्रशासनिक नहीं, बल्कि नीतिगत रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण कही जा सकती है क्योंकि इसमें सहकारिता आंदोलन के मूल उद्देश्य, सदस्यता विस्तार, सहकारी समितियों की गुणवत्ता और किसानों तक पहुंच सुनिश्चित करने पर नए सिरे से मंथन हुआ।मंत्री जी ने अपने कठोर तेवरों में स्पष्ट संकेत दिया कि सरकार अब सहकारिता के क्षेत्र में निष्क्रियता या औपचारिकता को बर्दाश्त नहीं करेगी।
उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति या संस्था सहकारिता की सदस्यता नहीं लेगी, उन्हें खाद वितरण जैसी योजनाओं का लाभ नहीं दिया जाएगा। इसी प्रकार जिन किसानों का सहकारिता पंजीकरण नहीं होगा, उन्हें भी खाद नहीं दी जाएगी। यह निर्णय प्रशासनिक रूप से कठोर अवश्य प्रतीत हो सकता है, किन्तु नीति के दृष्टिकोण से यह सहकारिता के केंद्रीकृत विस्तार का एक सशक्त कदम है।मंत्री जी का यह भी कहना था कि यदि किसी समिति के सचिव सदस्यता विस्तार में जानबूझकर ढिलाई बरतते पाए गए तो उनके खिलाफ 10 लाख रुपए तक की व्यापारिक सुविधा को तत्काल बंद किया जा सकता है, और अनुशासनात्मक कार्यवाही भी की जाएगी।
सहकारिता विभाग के अधिकारियों पर यह संदेश सीधा है — सदस्यता विस्तार केवल आंकड़ा नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पुनर्गठन की आधारशिला है।सहकारिता का उद्देश्य और आज की चुनौतियाँसहकारिता का मूल भाव साझेदारी, समानता और सामूहिक प्रगति पर आधारित है। उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य में सहकारिता ही वह माध्यम है जो खेती, लघु उद्योग, ग्रामीण वित्त और रोजगार को एक साथ जोड़ सकता है। परंतु पिछले कुछ दशकों में यह तंत्र राजनीतिक व आर्थिक दबावों के कारण अपने मूल उद्देश्य से भटक गया था।कई सहकारी समितियाँ केवल कागजों पर संचालित हो रही थीं, जहाँ सदस्यता औपचारिक बनी रही और वास्तविक किसान या श्रमिक इससे दूर रहे। खाद वितरण और ऋण योजना जैसे कार्यों में पारदर्शिता की कमी ने किसानों के बीच अविश्वास पैदा किया। ऐसी पृष्ठभूमि में मंत्री राठौर का कठोर रुख यह संकेत देता है कि सरकार अब सहकारिता को प्रशासनिक सुविधा या राजनीतिक मंच नहीं, बल्कि एक आर्थिक संगठन के रूप में देखना चाहती है।
सदस्यता आधार का पुनर्गठनबैठक में यह बात विशेष रूप से उभरकर सामने आई कि सहकारी संस्थाओं की असली शक्ति उनके सदस्य हैं। जिस क्षेत्र में जितने अधिक सक्रिय सदस्य होंगे, वहां की समिति उतनी ही सशक्त होगी। मंत्री जी ने कहा कि सहकारिता के सभी अधिकारी अपने जिलों में सदस्यता अभियान को प्राथमिकता दें, सदस्यों से संवाद बढ़ाएं और युवाओं को भी इसमें जोड़ें।यह बात सही भी है कि नए भारत में सहकारिता केवल खेती तक सीमित नहीं रह सकती। अब यह किसान उत्पादक संगठन, दुग्ध संघ, ग्रामीण उद्योग, महिला स्व-सहायता समूह और डिजिटल सेवाओं तक फैली हो चुकी है। सदस्यता के विस्तार के साथ-साथ डिजिटल प्रणाली के उपयोग से पारदर्शिता, जवाबदेही और दक्षता में उल्लेखनीय सुधार संभव है।मिशन 2047: सहकारिता से आत्मनिर्भरताश्री राठौर ने अपनी समीक्षा बैठक के दौरान मिशन 2047 का उल्लेख करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश का आत्मनिर्भर भविष्य सहकारिता के बिना संभव नहीं है। भारत के स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक यदि ग्राम्य अर्थव्यवस्था को सशक्त करना है, तो हमें प्रत्येक ब्लॉक और पंचायत स्तर पर सहकारिता की मजबूत जड़ें स्थापित करनी होंगी।इस दृष्टिकोण से, सहकारी बैंकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है।
वे केवल ऋण वितरक नहीं, बल्कि ग्रामीण निवेश, कृषि नवाचार और स्थानीय उद्योग के संरक्षक बनने की दिशा में अग्रसर हैं। यदि इनके माध्यम से युवाओं को प्रशिक्षण, किसानों को तकनीकी सहायता और महिलाओं को लघु उद्यम की सुविधाएँ दी जाएँ, तो सहकारिता वास्तविक रूप में ‘लोक-आधारित विकास मॉडल’ बन सकती है।अनुशासन और पारदर्शिता की आवश्यकताबैठक में मंत्री जी का यह संदेश भी स्पष्ट था कि सहकारिता में अब किसी भी प्रकार की लापरवाही या भ्रष्ट आचरण के लिए शून्य सहनशीलता नीति अपनाई जाएगी। सचिवों और अधिकारियों से अपेक्षा की गई कि वे सदस्यता में पारदर्शिता बनाए रखें, भ्रष्टाचार मुक्त वातावरण सुनिश्चित करें और किसी भी राजनीतिक दबाव से ऊपर उठकर कार्य करें।पिछले वर्षों में कई समितियों पर पदाधिकारियों द्वारा अनियमितताओं की रिपोर्ट मिलती रही हैं। इन पर नियंत्रण तभी संभव होगा जब प्रत्येक समिति अपने आंतरिक लेखा परीक्षण को नियमित करे और सहकारी बैंक भी अपने नेटवर्क का ऑडिट डिजिटल माध्यम से सुनिश्चित करें।सहकारिता का भविष्य और सामूहिक विकासमंत्री जी ने अपने समापन वक्तव्य में कहा कि सहकारिता बैंकों और समितियों का सामूहिक विकास तभी संभव है जब हर जिले, हर क्षेत्र में सहकारी सदस्य सक्रिय हों।
सहकारिता की मजबूती का अर्थ है ग्रामीण समाज की आर्थिक आत्मनिर्भरता, वितरण की समानता और स्थानीय उत्पादन का सम्मान।यदि सहकारिता को केवल सरकारी योजनाओं का माध्यम नहीं, बल्कि समाज सुधार और स्थानीय विकास का औजार माना जाए, तो उत्तर प्रदेश मिशन 2047 के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सबसे आगे होगा।इस बैठक से यह स्पष्ट झलकता है कि राज्य सरकार धीरे-धीरे प्रशासनिक नियंत्रण से हटकर सहभागी शासन की ओर बढ़ रही है। जहाँ जनता स्वयं अपनी प्रगति की संरचना बनेगी और सरकारी संस्थाएँ उसके सहयोगी के रूप में कार्य करेंगी।

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