"वन्देमातरम" भारतीय स्वाभिमान की "गायत्री " - कौटिल्य का भारत

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मंगलवार, 11 नवंबर 2025

"वन्देमातरम" भारतीय स्वाभिमान की "गायत्री "






भारतीय स्वतंत्रता संग्राम केवल राजनीतिक लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह एक अदम्य राष्ट्रीय चेतना, सांस्कृतिक अस्मिता और स्वाभिमान की मुहिम थी। इस चेतना को स्वर देने वाला जो गीत करोड़ों भारतीयों की आत्मा का नारा बना—
वह था “वन्देमातरम्”

यह गीत मात्र दो शब्दों का नारा नहीं, बल्कि मातृभूमि-आराधना, देश-भक्ति और त्याग-भावना का उद्गार था। वन्देमातरम् ने भारत में संघर्ष को जन-आन्दोलन में रूपांतरित किया। ब्रिटिश सत्ता के लिए यह उतना ही भयावह था, जितना जनमानस के लिए प्रेरक।


वन्देमातरम् का जन्म

1870-1880 के दशक में बंगाल पुनर्जागरण अपनी चोटी पर था।
इसी काल में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 1875-76 के बीच यह गीत लिखा, और 1882 में अपनी कृति आनंदमठ में सम्मिलित किया।

गीत की रचना के केंद्र में थी —
 भारतमाता की मूर्ति — पोषक-प्रकृति का स्वरूप
एकात्म भाव — राष्ट्र ही मां, और लोग ही उसके पुत्र
 सांस्कृतिक आदर्श — शक्ति, समृद्धि, ज्ञान, करुणा

आनंदमठ और क्रांति का बीज

उपन्यास सन्यासी विद्रोह (1770) की पृष्ठभूमि पर आधारित था—
जहाँ साधु अंग्रेजी दमन के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे।
इस कथा में वन्देमातरम् वह धार्मिक-देशभक्ति मंत्र है, जो दासता के विरुद्ध आह्वान करता है।

गीत लिखते समय बंकिमचंद्र का लक्ष्य —

जन-मानस में यह विश्वास जगाना कि भारत माता भोग्या नहीं, पूज्या है — और उसकी मुक्ति ही राष्ट्रधर्म है।

 

स्वतंत्रता आंदोलन में वन्देमातरम् का उदय

1896— भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने पहली बार सुर में गाया।
यही वह क्षण था जब यह गीत आन्दोलन का प्राण बन गया।

1905 में बंग-भंग के विरोध में यह गीत ज्वालामुखी बनकर फूटा।
बंगाल की गलियों में हर क्रांतिकारी के होंठ पर वही स्वर —

वन्देमातरम्!यह गीत क्यों खतरनाक था अंग्रेज़ों के लिए?

क्योंकि —


  • यह दृष्टि और दिशा देता था
  • यह भय को जलाकर साहस पैदा करता था
  • यह व्यक्ति को सेनानी बनाता था

ब्रिटिश सरकार ने कई बार इस गीत को बैन किया:
 जुलूसों में गाने पर प्रतिबंध
 स्कूलों-कॉलेजों में रोक
 इसे ‘विद्रोही’ साहित्य घोषित किया

लेकिन प्रतिबंध जितना बढ़ा —
उतना ही वन्देमातरम् जन-जन में रचा-बसा।

महान सेनानियों के लिए मन्त्र

यह गीत क्रांतिकारियों का युद्ध-गायत्री बन गया।

प्रसिद्ध तथ्य —

  • खुदीराम बोस को फांसी पर चढ़ते समय अंतिम नारा — वन्देमातरम्!
  • लाला लाजपत राय ने इसे राष्ट्रधर्म कहा
  • अरविंद घोष ने इसे भारत की शक्ति बताया
  • आज़ादी की हर सभा में यह घोष वाक्य बना

यह गीत अहिंसा और क्रांति, दोनों धारा के सेनानियों को समान रूप से प्रेरित करता रहा।

धार्मिक विवाद? एक ऐतिहासिक सच

गीत के दूसरे भाग में दुर्गा के स्वरूप का वर्णन है।
कुछ मुस्लिम नेताओं को लगा —

एक धार्मिक प्रतीक पर आधारित राष्ट्रीय गीत सबका कैसे होगा?

मगर तत्कालीन मुस्लिम क्रांतिकारी और उलेमा —
इसे देशभक्ति का गीत मानते थे, धर्म का नहीं।
वे इसके पहले दो छंदों को सर्वस्वीकार्य मानते थे।

इस सच्चाई को स्वीकारते हुए —
संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को निर्णय लिया —
वन्देमातरम् भारत का राष्ट्रीय गीत होगा
▶ इसके प्रथम दो छंद ही औपचारिक रूप से मान्य

वन्देमातरम् और गांधी

महात्मा गांधी ने स्पष्ट कहा —

“यह गीत हमारे स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा है।”

उनके लिए यह भक्ति और बलिदान का संकल्प था।
गांधीजी ने इसे इज्जत का गीत कहा —
जिसे सुनते ही आत्मा जागृत होती है।

वन्देमातरम् : प्रतीकात्मक संदेश

इस गीत की प्रत्येक पंक्ति में भारत के भूगोल, संस्कृति और अध्यात्म का साक्षात चित्र है—

  • हरी-भरी धरा — समृद्धि
  • शुभ जल, मधुर फल — जीवनदायिनी
  • शस्य-श्यामला — अन्नदायिनी
  • दुर्गा — शक्ति और सुरक्षा

यह गीत भारत को केवल भूमि नहीं, मां की तरह देखने का दृष्टिकोण देता है।

 

वन्देमातरम् एक आंदोलन : जन से जन तक

स्वतंत्रता संग्राम के 90 वर्षों में कोई ऐसा चरण नहीं
जहाँ यह गीत मौजूद न रहा हो —

  • जुलूसों में
  • गिरफ्तारी के क्षणों में
  • फांसी के तख्त पर
  • सत्याग्रहियों के गीतों में
  • गुप्त सभाओं और क्रांतिकारी पर्चों में

यह गीत भारतीय आत्मा की पहचान बन गया।

स्वतंत्रता के बाद का सफर

स्वतंत्र भारत में —

  • यह गीत राष्ट्र उत्सवों का हिस्सा
  • युवा पीढ़ी के जोश का स्रोत
  • बॉर्डर पर सैनिकों का उत्साह

लेकिन एक सच यह भी —
कि यह गीत जितना अतीत में जीवित रहा
उतना वर्तमान में गाया नहीं जाता

यही कारण है कि आज
वन्देमातरम् को फिर
जन-मानस और शैक्षिक-सांस्कृतिक जीवन में जीवित करने की जरूरत है

वन्देमातरम् —

  • स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा
  • राष्ट्रवाद का प्रामाणिक घोष
  • भारतीय संस्कृति का गौरव गीत

यह गीत हमें याद दिलाता है:
 भारत सिर्फ सीमाओं का नाम नहीं
 यह मां है — जिसकी रक्षा हमारा धर्म है

वन्देमातरम् गाकर हमने गुलामी की जंजीरों को तोड़ा।
अब इसे गर्व से गाकर
राष्ट्रीय चरित्र को मजबूत करना हमारी जिम्मेदारी है।समापन संदेश

जहां-जहां वन्देमातरम् की ध्वनि गूंजती है,
वहां-वहां स्वतंत्र भारत की आत्मा प्रस्फुटित होती है।


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