मिलावट कहां नहीं,सब्जी में,फलों में,दवाईयों में,दालों में,और तो और संबंधक्यों वर्किंग अवर में
महा मिलावट!
टीम कौटिल्य क़े साथ राजेंद्र नाथ तिवारी
मिलावट और बेईमानी भारत के हर क्षेत्र में एक व्यापक और गंभीर समस्या बन चुकी है, जिसका प्रभाव रोजमर्रा के खान-पान, दवा, औषधि निर्माण, सड़क निर्माण और अन्य निर्माण कार्यों से लेकर कार्यदायी संस्थाओं की जवाबदेही तक फैला हुआ है। इस समस्या की जड़ भ्रष्टाचार, कमजोर और अधूरी कानून व्यवस्था, तथा निरीक्षण और निगरानी में भारी कमी है। मिलावटखोर व्यापारिक लालच में उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य और आर्थिक हितों को ताक पर रख देते हैं, जिससे जनता के बीच जांच और प्रशासन से निराशा बढ़ती है।खाद्य पदार्थों में मिलावट के मामले में दूध, घी, मसाले, मिठाइयाँ, और तेल जैसे बुनियादी सामानों में घटिया या हानिकारक तत्व मिलाये जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए कैंसर, लीवर, किडनी रोग जैसे खतरनाक प्रभाव छोड़ते हैं। कई बार रंग, केमिकल, डिटर्जेंट जैसे खतरनाक पदार्थ इस मिलावट में शामिल हो जाते हैं। इसी तरह निर्माण सामग्री और सड़क निर्माण में घटिया कच्चा माल, भ्रष्टाचार और निरीक्षण प्रक्रिया में जारी है, जिससे संरचनात्मक जोखिम उत्पन्न होते हैं।
मिलावट और बेईमानी का परस्पर संबंध न केवल आर्थिक लालच से जुड़ा है, बल्कि प्रशासनिक लाचारियों, भ्रष्टाचार, और जनता में जागरूकता की कमी भी इसे बढ़ावा देती है। कार्यदायी संस्थाएं अक्सर दबाव में आती हैं या निजी स्वार्थों की पूर्ति करती हैं, जिससे ये निरंकुश हो जाती हैं। रिपोर्टिंग तथा मीडिया के माध्यम से इस समस्या को उजागर करना जन जागरूकता बढ़ाने तथा दोषियों पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाने में सहायक है।समाधान के लिए सख्त कानूनों का पालन, त्वरित और प्रभावी जांच, भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन व्यवस्था, कार्यदायी संस्थाओं की जवाबदेही और तकनीकी संसाधनों का बेहतर उपयोग अनिवार्य है। साथ ही नागरिकों को भी अपनी भूमिका समझते हुए शिकायत दर्ज कराना और जागरूकता फैलाना होगा। सरकारों को खाद्य तथा निर्माण सामग्री की सुरक्षा को “गंभीर अपराध” की श्रेणी में रखते हुए त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करनी होगी।इस समस्या से निपटना केवल कानूनी या प्रशासनिक कदमों का विषय नहीं है, बल्कि यह एक नैतिक और सामूहिक दायित्व भी है, जिसके लिए समाज के सभी वर्गों को मिलकर काम करना होगा। तभी मिलावट और बेईमानी से होने वाली हानियों को रोका जा सकता है और एक स्वस्थ, सुरक्षित समाज का निर्माण संभव होगा.

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