संपादकीय:
मिलावटी सामग्री से बन रही सड़कें- अस्पताल- पुल: देश खुद को खुद ही खोखला कर रहा है.
भारत आज दुनिया की सबसे तेज़ गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। हम 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का सपना देख रहे हैं, लेकिन जिस नींव पर यह इमारत खड़ी होनी है, वह नींव ही मिलावटी सीमेंट, घटिया सरिया, नकली पेंट और मिलावटी बिटुमिन से बन रही है। सड़कें बनते ही धंस जा रही हैं, पुल बनते ही ढह रहे हैं, अस्पतालों की दीवारें प्लास्टर उखड़ने से पहले ही दरारें खा रही हैं। यह सिर्फ़ इंजीनियरिंग की विफलता नहीं, यह देश की नैतिकता और प्रशासन की विफलता है।
हर मानसून में हम देखते हैं कि नई-नई सड़कें गड्ढों में बदल जाती हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान – कोई राज्य इससे अछूता नहीं। NHAI की रिपोर्ट बताती है कि पिछले 5 साल में 40% से ज़्यादा हाईवे प्रोजेक्ट्स में इस्तेमाल हुई सामग्री सब-स्टैंडर्ड पाई गई। मोरबी पुल हादसा (2022) इसका सबसे दर्दनाक उदाहरण है – 135 लोग मारे गए क्योंकि रखरखाव के नाम पर घटिया तार और नकली पेंट का इस्तेमाल हुआ। हाल ही में दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस-वे के कुछ हिस्सों में भी सीमेंट में ज़्यादा राख मिलाकर ताकत घटाने के मामले सामने आए हैं।
लेकिन सबसे खतरनाक खेल तो सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों के निर्माण में हो रहा है। AIIMS जैसे संस्थानों के नए ब्लॉक में भी घटिया सरिया और कम ग्रेड का कंक्रीट पकड़ा गया। जिस देश में हर साल भूकंप, बाढ़ और चक्रवात आते हों, वहाँ भवन निर्माण में मिलावट जानबूज़कर लोगों की जान से खिलवाड़ है। एक आंकड़ा चौंकाने वाला है – CAG की 2023-24 की रिपोर्ट में कहा गया कि 63% सरकारी निर्माण परियोजनाओं में इस्तेमाल सामग्री IS मानकों पर खरी नहीं उतरी।
यह सब हो कैसे रहा है?ठेका-प्रथा की लूट: सबसे कम बोली लगाने वाला ठेकेदार चुन लिया जाता है। वह लागत बचाने के लिए मिलावटी सामग्री लाता है।भ्रष्ट इंजीनियर और अधिकारी: तीसरे पक्ष की गुणवत्ता जाँच (Third Party Quality Audit) को कागज़ पर पूरा दिखाकर मोटी रिश्वत लेते हैं।मिलावट का कारोबार: उत्तर प्रदेश-राजस्थान बॉर्डर पर चलने वाली ‘रेत माफिया’, गुजरात में नकली सीमेंट की फैक्ट्रियाँ, हरियाणा-पंजाब में घटिया सरिये की मिलें – यह अरबों का अंडरवर्ल्ड है।सज़ा का अभाव: पिछले 10 साल में मिलावटी सामग्री सप्लाई करने के कितने मामलों में सज़ा हुई? शून्य के करीब।अब समय है ठोस कदम उठाने का:हर प्रोजेक्ट में अनिवार्य रूप से ब्लॉकचेन आधारित मटेरियल ट्रेसेबिलिटी सिस्टम लगाया जाए – सीमेंट की बोरी से लेकर सरिये तक QR कोड के ज़रिए पूरी सप्लाई चेन ट्रैक हो।थर्ड पार्टी क्वालिटी टेस्टिंग को पूरी तरह स्वतंत्र एजेंसियों (जैसे IIT या विदेशी लैब) से कराया जाए, सरकारी इंजीनियरों की मिलावट सर्टिफाइड करने की बजाय सिर्फ़ निगरानी करें।
मिलावटी सामग्री सप्लाई करने वालों के खिलाफ NSA और गैंगस्टर एक्ट लगे। कंपनी को जीवन भर सरकारी टेंडर से बैन किया जाए।सड़कें-पुल-अस्पताल जैसे प्रोजेक्ट्स में ‘ज़ीरो टॉलरेंस ऑन क्वालिटी’ नीति बने। एक भी सैंपल फेल हुआ तो पूरा ठेका रद्द, ठेकेदार जेल।जनता को भी जागरूक करना होगा। हर नागरिक को अधिकार होना चाहिए कि वह अपने इलाके की सड़क या सरकारी भवन की सामग्री की जाँच RTI से माँग सके।हम अंतरिक्ष में चंद्रयान भेज रहे हैं, लेकिन ज़मीन पर सड़कें नहीं बना पा रहे। यह विडंबना नहीं, शर्मनाक है। अगर हमने अभी नहीं चेता तो जिस ‘विकसित भारत’ का सपना हम देख रहे हैं, वह मिलावटी नींव पर खड़ा एक खोखला महल साबित होगा जो पहली ही आँधी में ढह जाएगा।
मिलावट करने वाले सिर्फ़ सामग्री नहीं, देश के भविष्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। अब समय है कि देश जवाब माँगे – और सख्त जवाब।
सम्पादक

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