नेहा सिंह राठौर प्रकरण : अभिव्यक्ति बनाम जिम्मेदारी
सत्येंद्र सिंह भोलू
सुप्रीम कोर्ट द्वारा लोक गायिका नेहा सिंह राठौर की याचिका खारिज किए जाने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” भी सीमाओं से परे नहीं जा सकती। नेहा पर देशद्रोह और राष्ट्रविरोधी पोस्ट करने के आरोप हैं, जिन पर अदालत ने हस्तक्षेप से इनकार किया। यह फैसला केवल एक गायिका से जुड़ा नहीं, बल्कि उस व्यापक प्रश्न से जुड़ा है कि क्या कोई कलाकार अपनी लोकप्रियता का उपयोग राष्ट्र की गरिमा को ठेस पहुंचाने के लिए कर सकता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि विचार प्रकट करना अपराध नहीं, पर अदालत ने कहा — जांच एजेंसियों को अपना कार्य करने दें। यह टिप्पणी संकेत देती है कि स्वतंत्रता और जिम्मेदारी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
लोककला का उद्देश्य जनभावना को स्वर देना है, पर जब वही स्वर राजनीतिक आरोपों और वैमनस्य का माध्यम बन जाए, तो समाज में भ्रम और विभाजन पैदा होता है।
नेहा का मामला हमें याद दिलाता है कि लोकतंत्र विचारों का मंच है, लेकिन इस मंच की दीवारें राष्ट्र की एकता और सम्मान से बनी हैं।
स्वतंत्रता का अर्थ निरंकुशता नहीं — और यही इस निर्णय का सार है।

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