टीम कौटिल्य
‘बाबरी-स्टाइल मस्जिद’ पर प्रश्न: आस्था या राजनीतिक जोखिम?
मुर्शिदाबाद में सस्पेंड विधायक हुमायूं कबीर द्वारा ‘बाबरी-स्टाइल मस्जिद’ की नींव रखे जाने से कई सामाजिक और राजनीतिक प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं। यह संभव है कि यह कदम धार्मिक ढांचे या क्षेत्रीय विकास परियोजनाओं का हिस्सा हो, लेकिन यह भी उतना ही सम्भव है कि इससे सामुदायिक भावनाएँ अनायास प्रभावित हों।
भारत का सामाजिक ताना-बाना विशेष रूप से संवेदनशील विषयों में संयम की अपेक्षा करता है। अयोध्या विवाद का समाधान न्यायालय ने एक शांतिपूर्ण, विधिक प्रक्रिया के ज़रिए किया था। ऐसे में ‘बाबरी’ नाम का उपयोग जन-स्मृतियों में निहित संवेदनशीलता को पुनः उभार सकता है, चाहे सुनियोजित रूप से या अनजाने में।
कबीर विकास के लिए अस्पताल, कॉलेज और अन्य संरचनाएँ जोड़ने की बात कर रहे हैं—यह सकारात्मक भी हो सकता है—लेकिन विवादित ऐतिहासिक नाम का चयन स्वयं में यह संकेत देता है कि राजनीति, धर्म और भावनाएँ यहाँ एक-दूसरे को प्रभावित कर सकती हैं।
इसलिए आवश्यक है कि प्रशासन और समाज दोनों इस विषय को शांति और विवेक के साथ देखें। निर्णय चाहे जो भी हो, प्राथमिकता राष्ट्र की सामाजिक सुरक्षा, सौहार्द और संवैधानिक संतुलन को ही दी जानी चहिये.
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