वन्देमातरम षट्त्रिंशत् श्रृंखला
वन्दे मातरम् राष्ट्र और धर्म का समन्वय
जहाँ आस्था राष्ट्रभक्ति बनती है और राष्ट्र धर्म का स्वरूप ग्रहण करता है!
भारत को समझने की कुंजी किसी संविधान की धाराओं में नहीं, किसी सत्ता के गलियारों में नहीं, बल्कि उस भाव में छिपी है जो पीढ़ियों से इस देश की आत्मा को जोड़ता आया है। उस भाव का सबसे सशक्त, सबसे जीवंत और सबसे संस्कारित उद्घोष है— वन्दे मातरम्।यह केवल गीत नहीं है।यह केवल नारा नहीं है।यह भारत की धार्मिक चेतना और राष्ट्रीय चेतना के समन्वय का घोष है।आज जब बार–बार यह प्रश्न खड़ा किया जाता है कि वन्दे मातरम् “धार्मिक” है या “राष्ट्रीय”, तब वस्तुतः यह प्रश्न भारत की सभ्यतागत समझ पर प्रश्नचिह्न बन जाता है।धर्म बनाम पंथ : यहीं से भ्रम शुरू होता है,भारत में धर्म का अर्थ कभी भी केवल पंथ नहीं रहा।धर्म का भारतीय अर्थ है—जो धारण करे, जो जोड़े, जो संतुलन दे।उदाहरण के लिए—सत्य बोलना धर्म है,अन्याय का विरोध धर्म है,माता–पिता की सेवा धर्म है,राष्ट्र की रक्षा धर्म है,यही कारण है कि भारत में धर्म और राष्ट्र कभी अलग–अलग खेमों में खड़े नहीं रहे। पश्चिमी “रिलीजन” की अवधारणा को भारत पर थोपने से ही यह कृत्रिम टकराव पैदा किया गया।
मनुस्मृति में कहा गया है—“धारणात् धर्म इत्याहुः”अर्थात् जो समाज को धारण करे, वही धर्म है।इस परिभाषा में राष्ट्र–सेवा स्वतः धर्म बन जाती है।मातृभूमि का भाव : धर्म से राष्ट्र की यात्रा,भारतीय संस्कृति में “माता” केवल संबंध नहीं, एक संस्कार है।धरती माता, गंगा माता, गौ माता— और मातृभूमि।जब वन्दे मातरम् मातृभूमि को माँ कहता है, तो वह किसी मूर्ति की पूजा नहीं करता, बल्कि—कृतज्ञता सिखाता है,बलिदान की प्रेरणा देता है,और कर्तव्य का बोध कराता है-किसान धरती को जोतने से पहले प्रणाम करता है,सैनिक युद्धभूमि में मिट्टी को माथे से लगाता है,स्वतंत्रता सेनानी फाँसी के तख्ते पर “वन्दे मातरम्” कहता है.यह सब धर्मभाव से उपजा राष्ट्रभाव है।वन्दे मातरम् का जन्म : गुलामी के अंधकार में प्रकाश-बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने वन्दे मातरम् उस समय लिखा, जब भारत पराधीन था, आत्मगौरव कुचला जा चुका था और राष्ट्र को “शासित भूमि” मात्र समझा जाने लगा था।वन्दे मातरम् ने पहली बार कहा“यह भूमि पूज्य है, यह माता है।”यही वह क्षण था, जब धर्म कविता बना और राष्ट्र मंत्र।1905 के बंग–भंग आंदोलन में वन्दे मातरम् जन–आंदोलन का स्वर बना,अंग्रेज सरकार ने इसे “खतरनाक गीत” बताया,कई स्थानों पर इसके गायन पर प्रतिबंध लगाया गया प्रश्न उठता है—यदि यह गीत संकीर्ण धार्मिक होता, तो विदेशी सत्ता इससे क्यों डरती?स्वतंत्रता संग्राम : जहाँ धर्म और राष्ट्र एक थे-भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन केवल सत्ता परिवर्तन नहीं था। यह नैतिक और सांस्कृतिक संघर्ष था।संन्यासी क्रांतिकारी राष्ट्र के लिए शस्त्र उठाते हैं,विद्यार्थी स्कूल छोड़कर आंदोलन में कूदते हैं,किसान और मजदूर “वन्दे मातरम्” के साथ जेल जाते हैं,यह नारा—मंदिरों में गूंजता है,गुरुद्वारों में प्रतिध्वनित होता हैऔर सार्वजनिक सभाओं में एकता का स्वर बनता है,यह सिद्ध करता है कि वन्दे मातरम् किसी एक धर्म का नहीं, राष्ट्रधर्म का उद्घोष था।
धर्मनिरपेक्षता : शब्द सही, व्याख्या गलत-स्वतंत्रता के बाद धर्मनिरपेक्षता को इस तरह प्रस्तुत किया गया मानो—संस्कृति से दूरी ही प्रगतिशीलता हो,और राष्ट्रभाव संकीर्णता हो,जबकि विश्व के उदाहरण कुछ और कहते हैंअ
अमेरिका के राष्ट्रगीत में ईश्वर का उल्लेख,ब्रिटेन का चर्च–आधारित सांस्कृतिक गौरव,फ्रांस का अपने राष्ट्रीय प्रतीकों पर गर्व,फिर भारत से ही क्यों अपेक्षा कि वह अपनी सांस्कृतिक आत्मा से कट जाए?
वन्दे मातरम् पर विवाद : धर्म नहीं, राजनीति कारण
वन्दे मातरम् पर खड़े किए गए विवादों का विश्लेषण बताता है कि—ये विवाद चुनावी समय में तेज़ होते हैंइनका उद्देश्य वोट–समूहों का ध्रुवीकरण होता है,धार्मिक तर्क केवल आवरण बनते हैं,यदि भावनाओं की ही चिंता है, तो—क्या सीमा पर खड़े सैनिकों की भावना नहीं है?क्या शहीदों के परिवारों की भावना नहीं है?
राष्ट्र के बिना धर्म असुरक्षित, धर्म के बिना राष्ट्र दिशाहीन
इतिहास बताता है—जहाँ राष्ट्र धर्मविहीन हुआ, वहाँ नैतिक पतन हुआ,जहाँ धर्म राष्ट्रविहीन हुआ, वहाँ वह असुरक्षित हुआ,भारत ने दोनों का संतुलन साधा।वन्दे मातरम् उसी संतुलन का सांस्कृतिक घोष है।
आज का भारत : आत्मविश्वास और आत्मपहचान
पनी जड़ों की ओर लौट रहा है,अपनी संस्कृति पर गर्व कर रहा हैऔर विश्व को अपनी पहचान दिखा रहा है,ऐसे समय में वन्दे मातरम् को लेकर संकोच नहीं, स्पष्टता चाहिए।विद्यालयों में राष्ट्रभाव के लिए वन्दे मातरम्सैन्य कार्यक्रमों में इसकी धुनअंतरराष्ट्रीय मंचों पर इसकी प्रस्तुति
विवाद नहीं, समाधान
वन्दे मातरम् को धर्म बनाम राष्ट्र के चश्मे से देखना ऐतिहासिक भूल है।
यह तो—धर्म को राष्ट्रसेवा में रूपांतरित करने वाला मंत्र है।
भारत में—राष्ट्र सेवा ही धर्म हैऔर धर्म का सर्वोच्च रूप राष्ट्र के प्रति कर्तव्य है
वन्दे मातरम् किसी को बाँटता नहीं,
वह जोड़ता है।
वह याद दिलाता है कि भारत में
धर्म राष्ट्र से टकराता नहीं,
राष्ट्र को आत्मा देता है।
वन्दे मातरम्।

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