गोरखपुर
योगी जी के राज में, योगी जी के जिले, योगी जी के एस डीएम को जो नहीं बक्शता वह होता है फर्जी आईएएस, तमाम लड़कियों को अपने हवस का शिकार बनाता है और कानों कान अधिकारी को पता नहीं लगता वह होता है फर्जीआईएएस, न जाने कितनों को उसने चूना लगाया होगा पर एक चुक ने उसको कारागार के अंदर.
IAS का असली सच: जब व्यवस्था ही एक व्यक्ति की एक्टिंग से परास्त हो जाए— गोरखपुर घटना पर एक तीखा गोरखपुर में पकड़े गए फर्जी IAS अधिकारी गौरव कुमार सिंह उर्फ ललित की कहानी केवल अपराध का किस्सा भर नहीं है। यह वह कड़वा सच है जो भारतीय प्रशासनिक व्यवस्था की आँखों में उंगली डालकर पूछता है—“आखिर पहचान और पद की सत्यता की रक्षा कौन करेगा?” जिस देश में प्रशासन की रीढ़ मानी जाने वाली IAS सेवा एक सामान्य ठग की चालबाज़ियों से महीनों तक धोखा खाती रहे, वह घटना केवल पुलिस फाइल का मामला नहीं, बल्कि व्यवस्था के चरित्र का गहरा प्रश्न है। एमएससी पास एक युवक, कोचिंग टीचर से फर्जी IAS बनने तक की यात्रा साधारण नहीं। यह यात्रा दिखाती है कि हमारा सिस्टम रुतबा देखकर झुकता है, सत्य देखकर नहीं। यह घटना किसी एक ठग की प्रतिभा नहीं, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं की तमाम खामियों, समाज की पद-भक्ति और तकनीकी सुरक्षा की असफलता का संयुक्त प्रमाण है।पहली विफलता: वेरिफिकेशन तंत्र की लापरवाही,यह समझ से परे है कि कोई युवक बिना UPSC, बिना कैडर, बिना नियुक्ति, बिना प्रशिक्षण—सबके बावजूद “IAS” बनकर प्रदेश के महत्वपूर्ण जिलों में घूमता रहा और किसी अधिकारी को शंका तक न हुई। क्या प्रशासनिक सेवा की पहचान सिर्फ सफारी, गाड़ी और दो सलाम ठोंकने वाले लोगों तक सीमित हो गई है?
क्या एक फोन कॉल या कैडर लिस्ट की जांच तक करने की फुर्सत हमारे जिलाधिकारियों और उप जिलाधिकारियों को नहीं? यह घटना बताती है कि हमारी वेरिफिकेशन व्यवस्था केवल कागजों में मजबूत है, जमीन पर नहीं।
यदि एक ठग सरकारी दफ्तरों में बैठकों में शामिल हो सकता है, फाइलों को देख सकता है, अफसरों पर रौब झाड़ सकता है, तो यह केवल अपराध नहीं—एक खतरनाक चेतावनी है कि हमारी प्रशासनिक सुरक्षा कितनी खोखली है। दूसरी विफलता: पद-भक्ति और ‘साहब संस्कृति’भारत में पद का मुखौटा असली योग्यता का विकल्प बन चुका है। एक व्यक्ति ने सफारी पहन ली, बोलचाल में सरकारी शब्दों का उपयोग कर लिया, एक स्कॉर्पियो किराए पर ले ली और दो-चार लोगों को डांट दिया—बस समाज झुका, प्रशासन झुका और यहां तक कि महिला-पुरुष भी झुकते गए।गौरव उर्फ ललित के 4 गर्लफ्रेंड और 3 के प्रेग्नेंट होने की कहानी यह नहीं दिखाती कि ठग कितना बड़ा था, यह दिखाती है कि हम समाज के तौर पर पद-केंद्रित अंधभक्त हैं। हम प्रश्न पूछने से डरते हैं, क्योंकि हमें बचपन से सिखाया जाता है—“साहब सामने है, चुप रहो।”यह मानसिकता ही सबसे बड़े अपराधियों के लिए दरवाज़ा खोलती है।साहब की कुर्सी असली हो या नकली—हमारा समाज अंतर नहीं करता।तीसरी विफलता: AI का अपराधीकरण, यह मामला AI के अंधेरे पक्ष का सबसे बड़ा उदाहरण है। दस्तावेज़, पहचान पत्र, नियुक्ति पत्र, सरकारी मेल—सब उसने AI से बनाए।यह वह भविष्य है जहां अपराधी अब हथियारों से नहीं, डिजिटल धोखाधड़ी से व्यवस्था को तोड़ेंगे।आज वह फर्जी IAS था।कल कोई फर्जी CBI अधिकारी बनकर सैकड़ों लोगों को ब्लैकमेल कर सकता है। कोई फर्जी ED अधिकारी बनकर कारोबारियों को धमका सकता है। कोई फर्जी बैंक मैनेजर बनकर करोड़ों की ठगी कर सकता है। टेक्नोलॉजी जितनी तेजी से आगे बढ़ रही है, उसके सुरक्षा इंतजाम उससे आधी रफ्तार से भी आगे नहीं बढ़ रहे। गोरखपुर की घटना केवल पुलिस की सफलता नहीं, हमारे डिजिटल सुरक्षा ढांचे की असफलता भी,चौथी विफलता: कानून का खोखलापन और प्रशासन का डर
सबसे चौंकाने वाला तथ्य है—इस तथाकथित IAS ने असली SDM को थप्पड़ मार दिया। एक ठग खुलेआम SDM को थप्पड़ मारकर निकल जाता है और तब भी किसी को उसके पद पर संदेह नहीं होता। यह Law & Order की सबसे भयावह तस्वीर है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है:
क्या हमारी व्यवस्था व्यक्ति के व्यवहार से प्रभावित होती है या पद की प्रतिष्ठा से? यदि थप्पड़ खाने वाला SDM भी उसकी असलियत न पहचान सके, तो आम जनता का क्या हाल होगा,समाज की सहमति भी अपराध को बढ़ाती है
यह भी कड़वी सच्चाई है कि अपराधी जितना दोषी है, उतनी ही दोषी वह भीड़ है जो उसे “साहब” कहकर सिर झुकाती है।
कोई भी अपराधी समाज की चुप्पी से ही ताकत पाता है।
मानव-चरित्र की कमजोरी है—जो बड़ा दिखे, उसके सामने हम प्रश्न नहीं करते। यही कारण है कि ठगों और माफियाओं के “फर्जी कद” बन जाते हैं, जबकि असली मेहनतकश युवा UPSC की किताबों में पसीना बहाता है।व्यवस्था के भविष्य के लिए खतरनाक संकेत, गोरखपुर का यह मामला दो बातें स्पष्ट करता है— अपराधी अब तकनीकी रूप से प्रशिक्षित होते जा रहे हैं। हमारी प्रशासनिक सुरक्षा मानसिक रूप से अभी भी 1990 के स्तर पर अटकी हुई है।यह अंतर जितना बढ़ेगा, देश को उतना अधिक नुकसान होगा।
एक पंक्ति में व्यवस्था पर चोट
“जहां पद की असलियत की जांच न हो और उसकी एक्टिंग पर यकीन हो जाए, वहां फर्जी IAS नहीं—फर्जी शासन चलने लगता है।”
क्या एक फोन कॉल या कैडर लिस्ट की जांच तक करने की फुर्सत हमारे जिलाधिकारियों और उप जिलाधिकारियों को नहीं? यह घटना बताती है कि हमारी वेरिफिकेशन व्यवस्था केवल कागजों में मजबूत है, जमीन पर नहीं।
यदि एक ठग सरकारी दफ्तरों में बैठकों में शामिल हो सकता है, फाइलों को देख सकता है, अफसरों पर रौब झाड़ सकता है, तो यह केवल अपराध नहीं—एक खतरनाक चेतावनी है कि हमारी प्रशासनिक सुरक्षा कितनी खोखली है। दूसरी विफलता: पद-भक्ति और ‘साहब संस्कृति’भारत में पद का मुखौटा असली योग्यता का विकल्प बन चुका है। एक व्यक्ति ने सफारी पहन ली, बोलचाल में सरकारी शब्दों का उपयोग कर लिया, एक स्कॉर्पियो किराए पर ले ली और दो-चार लोगों को डांट दिया—बस समाज झुका, प्रशासन झुका और यहां तक कि महिला-पुरुष भी झुकते गए।गौरव उर्फ ललित के 4 गर्लफ्रेंड और 3 के प्रेग्नेंट होने की कहानी यह नहीं दिखाती कि ठग कितना बड़ा था, यह दिखाती है कि हम समाज के तौर पर पद-केंद्रित अंधभक्त हैं। हम प्रश्न पूछने से डरते हैं, क्योंकि हमें बचपन से सिखाया जाता है—“साहब सामने है, चुप रहो।”यह मानसिकता ही सबसे बड़े अपराधियों के लिए दरवाज़ा खोलती है।साहब की कुर्सी असली हो या नकली—हमारा समाज अंतर नहीं करता।तीसरी विफलता: AI का अपराधीकरण, यह मामला AI के अंधेरे पक्ष का सबसे बड़ा उदाहरण है। दस्तावेज़, पहचान पत्र, नियुक्ति पत्र, सरकारी मेल—सब उसने AI से बनाए।यह वह भविष्य है जहां अपराधी अब हथियारों से नहीं, डिजिटल धोखाधड़ी से व्यवस्था को तोड़ेंगे।आज वह फर्जी IAS था।कल कोई फर्जी CBI अधिकारी बनकर सैकड़ों लोगों को ब्लैकमेल कर सकता है। कोई फर्जी ED अधिकारी बनकर कारोबारियों को धमका सकता है। कोई फर्जी बैंक मैनेजर बनकर करोड़ों की ठगी कर सकता है। टेक्नोलॉजी जितनी तेजी से आगे बढ़ रही है, उसके सुरक्षा इंतजाम उससे आधी रफ्तार से भी आगे नहीं बढ़ रहे। गोरखपुर की घटना केवल पुलिस की सफलता नहीं, हमारे डिजिटल सुरक्षा ढांचे की असफलता भी,चौथी विफलता: कानून का खोखलापन और प्रशासन का डर
सबसे चौंकाने वाला तथ्य है—इस तथाकथित IAS ने असली SDM को थप्पड़ मार दिया। एक ठग खुलेआम SDM को थप्पड़ मारकर निकल जाता है और तब भी किसी को उसके पद पर संदेह नहीं होता। यह Law & Order की सबसे भयावह तस्वीर है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है:
क्या हमारी व्यवस्था व्यक्ति के व्यवहार से प्रभावित होती है या पद की प्रतिष्ठा से? यदि थप्पड़ खाने वाला SDM भी उसकी असलियत न पहचान सके, तो आम जनता का क्या हाल होगा,समाज की सहमति भी अपराध को बढ़ाती है
यह भी कड़वी सच्चाई है कि अपराधी जितना दोषी है, उतनी ही दोषी वह भीड़ है जो उसे “साहब” कहकर सिर झुकाती है।
कोई भी अपराधी समाज की चुप्पी से ही ताकत पाता है।
मानव-चरित्र की कमजोरी है—जो बड़ा दिखे, उसके सामने हम प्रश्न नहीं करते। यही कारण है कि ठगों और माफियाओं के “फर्जी कद” बन जाते हैं, जबकि असली मेहनतकश युवा UPSC की किताबों में पसीना बहाता है।व्यवस्था के भविष्य के लिए खतरनाक संकेत, गोरखपुर का यह मामला दो बातें स्पष्ट करता है— अपराधी अब तकनीकी रूप से प्रशिक्षित होते जा रहे हैं। हमारी प्रशासनिक सुरक्षा मानसिक रूप से अभी भी 1990 के स्तर पर अटकी हुई है।यह अंतर जितना बढ़ेगा, देश को उतना अधिक नुकसान होगा।
एक पंक्ति में व्यवस्था पर चोट
“जहां पद की असलियत की जांच न हो और उसकी एक्टिंग पर यकीन हो जाए, वहां फर्जी IAS नहीं—फर्जी शासन चलने लगता है।”

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें