कफ सिरप कांड: प्रशासनिक लापरवाही की परत-दर-परत विवेचना
बस्ती/जौनपुर में केदार फार्मा से जुड़े व्यक्ति के आवास पर ईडी की ताज़ा छापेमारी ने यह साफ कर दिया है कि कोडीन युक्त कफ सिरप का अवैध कारोबार केवल तस्करों की हिमाकत नहीं, बल्कि वर्षों से चली आ रही प्रशासनिक शिथिलता, निगरानी-विफलता और संस्थागत मिलीभगत का नतीजा है। जब 2,000 करोड़ रुपये से अधिक के अनुमानित कारोबार, 128 एफआईआर और कई राज्यों–अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क (बांग्लादेश तक) सामने हों, तब सवाल सिर्फ अपराधियों पर नहीं, पूरे सिस्टम पर उठते हैं।1) लाइसेंसिंग से सप्लाई तक: “कागज़ सही, हकीकत ग़लत”मेडिकल एजेंसियों के पास वैध लाइसेंस होते हुए भी असामान्य मात्रा में खरीद–बिक्री वर्षों तक कैसे चलती रही?ड्रग कंट्रोल विभाग की नियमित ऑडिट, स्टॉक वेरिफिकेशन और बिक्री-पैटर्न विश्लेषण क्यों नहीं हुआ?जब एक ही जिले में हजारों बोतलें पकड़ी जा रही थीं, तब रियल-टाइम अलर्ट सिस्टम क्यों निष्क्रिय रहा?लाइसेंसिंग एक औपचारिकता बनकर रह गई; जोखिम-आधारित निरीक्षण शून्य रहा। CMO कार्यालयों की भूमिका: सामने रहते हुए भी अंधापन?
ईडी की कार्रवाई CMO कार्यालय के सामने स्थित आवास तक पहुँची—यह प्रतीकात्मक नहीं, चौंकाने वाला तथ्य है।क्या CMO स्तर पर खपत–आपूर्ति विसंगति की रिपोर्टिंग हुई?संदिग्ध एजेंसियों पर तत्काल निलंबन/सीलिंग क्यों नहीं? स्वास्थ्य प्रशासन की निगरानी या तो कमजोर रही या प्रभावी नहीं होने दी गई।पलिस–प्रशासन की समन्वय विफलतासो,नभद्र से शुरू होकर कई जिलों में फैले नेटवर्क के बावजूद इंटर-डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेशन देर से क्यों सक्रिय हुआ?नमकीन के ट्रक में 1.19 लाख शीशियां छिपाने जैसा पैटर्न पहले क्यों नहीं पकड़ा गय ,वित्तीय निगरानी: बैंकिंग अलर्ट क्यों नहीं बजे?इतनी बड़ी मात्रा में लेन-देन पर ट्रिगर्स समय पर क्यों नहीं उठे?फर्जी बिलिंग, शेल-एजेंसियों और राउंड-ट्रिपिंग के संकेत पहले क्यों नहीं चिन्हित हुए?वित्तीय इंटेलिजेंस का उपयोग देर से हुआ—अब ईडी की एंट्री से तस्वीर साफ़ हो रही है।
“मौत का प्रमाण नहीं”—पर सामाजिक क्षति का क्या?स्वास्थ्य विभाग कहता है कि फेन्सिडिल से मौत का प्रमाण नहीं; पर नशे के व्यापक दुरुपयोग से युवाओं, श्रमिकों और सीमावर्ती इलाकों पर पड़े प्रभाव को कौन मापेगा?पब्लिक हेल्थ सर्विलांस और पुनर्वास कार्यक्रम क्यों नदारद रहे? रोकथाम और उपचार—दोनों मोर्चों पर निष्क्रियता।
कफ सिरप कांड केवल अपराध का मामला नहीं, शासन की परीक्षा है। जब बस्ती से लखनऊ तक पूरा प्रदेश चपेट में हो, तो आधे-अधूरे बयान नहीं, निर्णायक सुधार और कठोर जवाबदेही चाहिए। ईडी की कार्रवाई ने दरवाज़ा खोला है—अब प्रशासन तय करे कि वह सफाई करेगा या पर्दा डालेगा।
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