मानवाधिकार दिवस की रोशनी में बस्ती: जब शासन सोया रहा, एक युवा कुलदीप जगाता रहा संवेदना
बस्ती उत्तरप्रदेश
विश्व मानवाधिकार दिवस पूरे संसार में मानव गरिमा, समानता, स्वतंत्रता और न्याय के मूल आदर्शों का स्मरण कराता है। यह दिन हमें यह भी पूछने का अवसर देता है कि क्या वास्तव में हमारी सरकारें, संस्थाएँ और समाज मानवाधिकारों की रक्षा को लेकर उतने संवेदनशील हैं, जितनी अपेक्षा की जाती है? इस वर्ष का दृश्य कुछ और ही कहानी कहता है—जब शासन-प्रशासन गहरी नींद में था, न कोई औपचारिक आयोजन, न कोई संदेश, न कोई जागरूकता का स्वर; ऐसे समय में बस्ती के युवा कार्यकर्ता कुलदीप मिश्रा ने मानवाधिकार संगठन के बैनर तले एक अद्भुत पहल करके पूरे जिले को मानवीय मूल्यों का पाठ पढ़ाया।
एक स्थानीय होटल में आयोजित यह कार्यक्रम इस बात का प्रमाण बन गया कि परिवर्तन का दीपक प्रायः शासकों के दरबार से नहीं, बल्कि संवेदनशील युवाओं के हृदय से जलता है। कुलदीप मिश्रा ने जो किया, वह केवल एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि सोते हुए समाज को जगाने का एक सार्थक प्रयास था।
सम्मानित अतिथि: न्याय, बैंकिंग, पर्यावरण और प्रशासनिक सेवाओं का अनूठा संगम
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अपर जिला जज श्री अनिल कुमार थे, जिनकी उपस्थिति स्वयं में यह संदेश देती है कि मानवाधिकार केवल धरातल की समस्या नहीं, बल्कि न्यायपालिका का एक मूलभूत स्तम्भ है। विशिष्ट अतिथि के रूप में जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष श्री राजेंद्र नाथ तिवारी उपस्थित रहे—उनकी उपस्थिति आर्थिक अधिकारों की ओर संकेत करती है, जो मानवाधिकार की संरचना में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
इसके साथ ही अनेक विशिष्ट प्रतिष्ठित हस्तियाँ कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने पहुँचीं—IFS अधिकारी श्री अभय नाथ त्रिपाठी, श्री जगदीश्वर सिंह, जी राजभवन बस्ती की ओर से प्रतिनिधि श्री ऐश्वर्या राय सिंह,
श्री ओम जी उर्फ जगदीश कर प्रसाद सिंह,अर्बन बैंक अध्यक्ष अशोक कुमार पांडे, रामप्रवेश सिंह,हरिशंकर पांडे, सुभाष त्रिपाठी, अरविंद मिश्रा, अनिल त्रिपाठी, वेंकटेश शुक्ला,चिकित्सक वर्ग से डॉ. शिवा, डॉ. शालिनी सिंह (महिला थाना अध्यक्ष), डॉ. रोली सिंहपुलिस क्षेत्र से पुलिस उपाधीक्षक प्रदीप तिवारी,सामाजिक कार्यकर्ता आलोक, नीरज यादव, प्रमोद ओझा, रजनीश, विष्णु दूबे सहित अनेक प्रमुख लोग।श्री विश्वनाथ पांडे.कार्यक्रम संयोजक की सार्थक सक्रियता क़े सभी कायल थे, सफल संचालन जगदम्बा प्रसाद भाउक सराहनीय रही
इन सभी की सहभागिता ने कार्यक्रम को एक बहुआयामी रूप दिया, जिसमें न्याय, बैंकिंग, स्वास्थ्य सेवा, पर्यावरण, शिक्षा और पुलिस—सभी क्षेत्रों के प्रतिनिधि एक ही मुद्दे पर एकजुट दिखाई दिए
जब बस्ती बोला: मानवाधिकार किसी एक वर्ग की जरूरत नहीं, सबकी जिम्मेदारी
कार्यक्रम की अध्यक्षता अनूठे रूप से स्वयं युवा कुलदीप मिश्रा ने की। यह तथ्य इस कार्यक्रम को विशेष बनाता है—क्योंकि जिस मुद्दे पर सरकारें, विभाग और एजेंसियाँ उत्तरदायित्व महसूस नहीं कर पा रही थीं, उस पर एक युवा ने अपनी आवाज बुलंद की।यह दृश्य दर्शाता है कि अधिकारों की लड़ाई हमेशा बूढ़ी नहीं होती—युवा उसे नई ऊर्जा देते हैं, नया रास्ता, नई रोशनी।
मानवाधिकार: आदर्श नहीं, जीवन का आधार
कार्यक्रम में वक्ताओं ने मानवाधिकार के इतिहास, महत्व और आज की चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की। विचार-विमर्श के मुख्य बिंदु थे—
मानवाधिकार का सार,मानवाधिकार किसी सरकार का उपहार नहीं, बल्कि मनुष्य के जन्म के साथ मिलने वाला स्वाभाविक अधिकार है—जीवन का अधिकार,सम्मान का अधिकार,स्वतंत्रता,समानता,अभिव्यक्ति का अधिकार,शिक्षा और स्वास्थ्य,सुरक्षा और गरिमा,इन अधिकारों की रक्षा हर शासन का कर्तव्य है, और हर नागरिक का नैतिक दायित्व।
शासन की निष्क्रियता और सामाजिक बेहोशी,यह कटु सत्य है कि राज्य सरकारें मानवाधिकार दिवस पर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने में अक्सर उदासीन रहती हैं। प्रशासनिक औपचारिकताओं में मानवाधिकार को केवल एक “फाइल” भर समझ लिया गया है। ऐसे समय में यह समझना जरूरी है कि मानवाधिकार किसी अंतरराष्ट्रीय घोषणा से अधिक हमारे रोज़मर्रा के जीवन का हिस्सा हैं—थाने में पीड़ित की बात सुनी जाए,अस्पताल में गरीब को इलाज मिले,दलित-वंचित के साथ भेदभाव न हो,महिला को सुरक्षा और सम्मान मिले,वृद्ध, दिव्यांग और बच्चों को समान अवसर मिलें यह सब भी मानवाधिकार ही हैं।
न्यायपालिका की भूमिका-अपर जिला जज श्री अनिल कुमार ने मानवाधिकार संरक्षण में अदालतों की सक्रिय भूमिका पर प्रकाश डाला। न्यायालय सदैव मानवाधिकारों की अंतिम ढाल के रूप में खड़ा रहता है, चाहे वह महिला सुरक्षा हो, अल्पसंख्यक अधिकार हों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो या हिरासत में यातना के मामले।
आर्थिक अधिकार: बैंकिंग नेतृत्व की दृष्टि-जिला सहकारी बैंक अध्यक्ष श्री राजेंद्र तिवारी ने कहा कि आर्थिक न्याय के बिना मानवाधिकार अधूरा है। किसान को उचित मूल्य, गरीब को सस्ता ऋण, युवाओं को स्वरोजगार—ये सब मानवाधिकारों की ही विस्तारित व्याख्याएँ हैं।
पुलिस और मानवाधिकार-पुलिस उपाधीक्षक प्रदीप तिवारी एवं महिला थाना अध्यक्ष डॉ. शालिनी सिंह ने बताया कि पुलिस और मानवाधिकार विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हैं। संवेदनशील पुलिसिंग ही मानवाधिकारों की सच्ची रक्षा है।बस्ती की पहल क्यों बनी मिसाल?
इस कार्यक्रम का महत्व केवल इस बात में नहीं कि इसमें इतने बड़े-बड़े लोग आए, बल्कि इसमें है—
युवा नेतृत्व का उदय,कुलदीप मिश्रा का यह प्रयास यह संदेश देता है कि युवा सिर्फ सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं करते, बल्कि समाज में वास्तविक बदलाव भी ला सकते हैं।बहु-क्षेत्रीय सहभागिता,न्यायपालिका, पुलिस, स्वास्थ्य, बैंकिंग, सहकारिता, पर्यावरण—सभी ने एक ही मंच पर मानवाधिकार का संदेश दिया।
सरकारी उदासीनता पर गैर सरकारी सक्रियता,जब सरकार औपचारिकता निभाना भूल गई, तब समाज ने खुद इस कर्तव्य को निभाया—यह सर्वोच्च लोकतांत्रिक मूल्यों का परिचायक है।समाज में चेतना का प्रसार-कार्यक्रम में आम नागरिकों, छात्रों और महिलाओं की उल्लेखनीय उपस्थिति ने यह सिद्ध किया कि समाज मानवाधिकार को केवल सिद्धांत नहीं, बल्कि आवश्यकता समझ रहा है।
मानवाधिकार: चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा,वक्ताओं ने यह भी माना कि भारत में आज मानवाधिकार कई मोर्चों पर चुनौतियों का सामना कर रहा है—प्रशासनिक उदासीनता,पुलिस और नागरिकों के बीच अविश्वास,सामाजिक भेदभाव,महिलाओं की असुरक्षा,बच्चों पर अत्याचार,गरीबी और बेरोजगारी,पर्यावरणीय क्षरण, चुनौतियों का समाधान केवल कानूनों से नहीं, सामूहिक जागरूकता से होगा।
जब एक युवा विवेकानंद बन खड़ा होता हैं , समाज सुनता हैं है
मानवाधिकार दिवस पर जब शासन और सरकार औपचारिकता तक निभाने को तैयार नहीं थे, तब बस्ती में एक युवा सीमित संसाधनों से असीमित संदेश देने मे सफल रहा.

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