ऋषि देव मिश्रा, ब्लॉगर
कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से वैर सदियों पुराना नहीं है, लेकिन स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह वैमनस्य्य एक कड़वी सच्चाई बन चुका है। अक्सर इसे 'एलर्जी' कहा जाता है – जैसे कोई एलर्जन शरीर में घुसते ही प्रतिक्रिया पैदा कर दे। लेकिन सच्चाई यह है कि यह एलर्जी नहीं, बल्कि गहरी घबराहट और अस्तित्व का संकट है। कांग्रेस को आरएसएस से डर लगता है क्योंकि संघ न तो वोट बैंक की राजनीति करता है, न ही तुष्टिकरण का खेल। यह एक विचारधारा है जो हिंदू समाज को एकजुट करने, राष्ट्रवाद को मजबूत करने और सांस्कृतिक जड़ों को सींचने का काम करती है। और यही कांग्रेस के लिए खतरा है।
इस में हम इसी पर चर्चा करेंगे: कांग्रेस की यह 'एलर्जी' आखिर क्यों? क्या यह अल्पसंख्यक वोट के भय से उपजी है? जब-जब कांग्रेस ने संघ पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की, तब-तब उसकी सरकारें उखड़ गईं – 1948, 1975, 1992 के उदाहरण चीख-चीखकर चेतावनी देते हैं। कर्नाटक में भी यही हो रहा है: सिद्धारमैया सरकार की विफलताओं को ढकने के लिए आरएसएस को निशाना बनाया जा रहा है। और अगर यही सिलसिला चला, तो कांग्रेस हमेशा के लिए बंगाल की खादी में जड़कर रह जाएगी – अर्थात, राजनीतिक रूप से मिट्टी में मिल जाएगी।
कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से वैर सदियों पुराना नहीं है, लेकिन स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह वैमनस्य्य एक कड़वी सच्चाई बन चुका है। अक्सर इसे 'एलर्जी' कहा जाता है – जैसे कोई एलर्जन शरीर में घुसते ही प्रतिक्रिया पैदा कर दे। लेकिन सच्चाई यह है कि यह एलर्जी नहीं, बल्कि गहरी घबराहट और अस्तित्व का संकट है। कांग्रेस को आरएसएस से डर लगता है क्योंकि संघ न तो वोट बैंक की राजनीति करता है, न ही तुष्टिकरण का खेल। यह एक विचारधारा है जो हिंदू समाज को एकजुट करने, राष्ट्रवाद को मजबूत करने और सांस्कृतिक जड़ों को सींचने का काम करती है। और यही कांग्रेस के लिए खतरा है।
इस में हम इसी पर चर्चा करेंगे: कांग्रेस की यह 'एलर्जी' आखिर क्यों? क्या यह अल्पसंख्यक वोट के भय से उपजी है? जब-जब कांग्रेस ने संघ पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की, तब-तब उसकी सरकारें उखड़ गईं – 1948, 1975, 1992 के उदाहरण चीख-चीखकर चेतावनी देते हैं। कर्नाटक में भी यही हो रहा है: सिद्धारमैया सरकार की विफलताओं को ढकने के लिए आरएसएस को निशाना बनाया जा रहा है। और अगर यही सिलसिला चला, तो कांग्रेस हमेशा के लिए बंगाल की खादी में जड़कर रह जाएगी – अर्थात, राजनीतिक रूप से मिट्टी में मिल जाएगी।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: प्रतिबंधों का काला इतिहास और कांग्रेस की हार
आरएसएस की स्थापना 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी, जब कांग्रेस गांधीजी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन चला रही थी। लेकिन स्वतंत्रता के बाद, जब हिंदू समाज को एकजुट करने की जरूरत थी, कांग्रेस ने संघ को दुश्मन ठहरा लिया। पहला झटका 1948 में पड़ा, जब महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने संघ पर प्रतिबंध लगा दिया। गांधीजी ने खुद 1947 में संघ को "सांप्रदायिक संगठन" कहा था, जो 'टोटलिटेरियन आउटलुक' वाला है। लेकिन पटेल का फैसला राजनीतिक था – नेहरू की लाइन पर चला। संघ पर आरोप लगे कि उसके सदस्यों ने हत्या में हाथ है, लेकिन जांच में कुछ साबित नहीं हुआ। फिर भी, प्रतिबंध लगा। परिणाम? संघ भूमिगत चला गया, लेकिन मजबूत होकर उभरा। पटेल ने बाद में प्रतिबंध हटा लिया, क्योंकि वे जानते थे कि संघ के स्वयंसेवक देशभक्त हैं – उनकी 'उत्साह और अनुशासन' को सही दिशा में मोड़ना चाहिए।
दूसरा प्रयास 1966 में हुआ, जब गौ-हत्या बंदी के खिलाफ हिंसा भड़की। कांग्रेस ने फिर संघ को निशाना बनाया, लेकिन यह कोशिश भी नाकाम रही। फिर 1975 में इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई और संघ पर फिर प्रतिबंध ठोंका। लाखों स्वयंसेवक जेल गए, लेकिन संघ ने ही इमरजेंसी के खिलाफ जनता का आंदोलन चलाया। परिणाम? 1977 में कांग्रेस की करारी हार। इंदिरा गांधी सत्ता से उखड़ गईं। तीसरा प्रयास 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद हुआ – नरसिम्हा राव सरकार ने संघ, वीएचपी, बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाया। लेकिन ट्रिब्यूनल ने इसे खारिज कर दिया। हर बार, प्रतिबंध लगाने की कोशिश ने कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाया।
यह पैटर्न क्यों? क्योंकि आरएसएस कांग्रेस की 'सॉफ्ट हिंदुत्व' वाली राजनीति का दुश्मन है। नेहरू युग से कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता का ढोंग रचा – असल में अल्पसंख्यक तुष्टिकरण। संघ कहता है: हिंदू एक हो, राष्ट्र मजबूत हो। कांग्रेस डरती है कि अगर हिंदू जागे, तो उसका वोट बैंक टूट जाएगा। X पर हालिया पोस्ट्स में भी यही दिखता है – यूजर @singhc5191 ने लिखा, "यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर RSS पर प्रतिबंध की मांग की।" और @1bharatidea ने तंज कसा, "अजय राय जी, आपको क्या तकलीफ़ है RSS से? क्या इसलिए कि यह संगठन 'भारत माता की जय' बोलना सिखाता है?" यह एलर्जी नहीं, घृणा है।
अल्पसंख्यक भय: वोट बैंक की राजनीति और कांग्रेस का पतन
कांग्रेस की 'एलर्जी' का मूल कारण अल्पसंख्यक वोट का भय है। 1950 के दशक से कांग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण को अपना हथियार बनाया। शाह बानो केस (1985) में सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं को भरण-पोषण का अधिकार दिया, लेकिन राजीव गांधी ने मुस्लिम वोट बचाने के लिए कानून उलट दिया। संविधान फाड़ना, फैसला बदलना कांग्रेस क़ी फ़ितरत में है. मनमोहन सिंह ने कहा, "अल्पसंख्यकों का संसाधनों पर पहला हक है।"
आरएसएस ने हमेशा इसका विरोध किया – यह 'स्यूडो-सेकुलरिज्म' है, जो हिंदू बहुमत को दबाता है। आरएसएस की शाखाएं हिंदू समाज को जागृत करती हैं – कोई तुष्टिकरण नहीं, सिर्फ सेवा। प्राकृतिक आपदाओं में स्वयंसेवक सबसे आगे होते हैं। लेकिन कांग्रेस को लगता है कि अगर हिंदू एकजुट हुए, तो मुस्लिम वोट पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। X पर @RavinderKapur2 ने लिखा, "RSS is a Terrorist Organisation! I fully support to ban the RSS in Karnataka!"9cf73f लेकिन जवाब में @SibughoshGhosh ने कहा, "कांग्रेस शासित राज्य आर.एस.एस बैन होने वाला है। क्या बीजेपी की कठपुतली TMC पश्चिम बंगाल में RSS पर प्रतिबंध लगाएगी?" यह भय कांग्रेस को अंधा बना देता है।
और परिणाम? 2014 से कांग्रेस का पतन। हिंदू वोटर जागे, आरएसएस-भाजपा को फायदा हुआ। कांग्रेस अब 'माइनॉरिटी अपीजमेंट' का आरोप झेल रही है। अमित शाह ने कहा, "कांग्रेस का अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, जबकि मोदी आदिवासियों, दलितों, गरीबों के लिए काम करते हैं।" डिग्विजय सिंह जैसे नेता कहते हैं, "मुस्लिम आबादी घट रही है, भाजपा का प्रोपगैंडा झूठा है।" लेकिन यह बचाव है – असल में कांग्रेस जानती है कि उसका फॉर्मूला फेल हो चुका।
कर्नाटक का काला अध्याय: प्रतिबंध की कोशिश और सरकार का पतन
और परिणाम? 2014 से कांग्रेस का पतन। हिंदू वोटर जागे, आरएसएस-भाजपा को फायदा हुआ। कांग्रेस अब 'माइनॉरिटी अपीजमेंट' का आरोप झेल रही है। अमित शाह ने कहा, "कांग्रेस का अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, जबकि मोदी आदिवासियों, दलितों, गरीबों के लिए काम करते हैं।" डिग्विजय सिंह जैसे नेता कहते हैं, "मुस्लिम आबादी घट रही है, भाजपा का प्रोपगैंडा झूठा है।" लेकिन यह बचाव है – असल में कांग्रेस जानती है कि उसका फॉर्मूला फेल हो चुका।
कर्नाटक का काला अध्याय: प्रतिबंध की कोशिश और सरकार का पतन
कर्नाटक में कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने 2023 चुनाव जीता – 135 सीटें, वोट शेयर: कांग्रेस 43%, भाजपा 36%। लेकिन अब? विफलताएं घुटनों पर ला रही हैं। बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार – और ऊपर से आरएसएस पर हमला। प्रियांक खड़गे (मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे, आईटी मंत्री) ने स्कूलों में आरएसएस कार्यक्रमों पर रोक लगाने का पत्र लिखा. कहा, "आरएसएस संविधान बदलना चाहता है।" और अब सरकारी कर्मचारियों को संघ की शाखाओं से दूर रखने के आदेश।
यह वही कर्नाटक है जहां आरएसएस ने लिंगायत समाज को एकजुट किया। भाजपा की हार का कारण? आंतरिक कलह। लेकिन अब कांग्रेस का यह कदम उल्टा पड़ेगा। X पर @Girishvhp ने लिखा, "A PDO who took part in the RSS Pathasanchalan at Lingasaguru is now suspended... Karnataka is now witnessing a second emergency." भाजपा विधायक वाई. भारत शेट्टी ने कहा, "यह इमरजेंसी जैसा है।" प्रियांक खड़गे ने कहा, "ये भाजपा-आरएसएस का SOP है।" लेकिन सच्चाई? कांग्रेस की असफलताओं को ढकने का बहाना।
कर्नाटक में आरएसएस 100 सालों से सेवा कर रहा है – शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा राहत। प्रतिबंध लगाने से क्या होगा? हिंदू समाज और जागेगा। 2028 चुनावों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ। मध्य प्रदेश के मंत्री इंदर सिंह परमार ने कहा, "कांग्रेस ने गांधी हत्याकांड के समय भी RSS पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की, लेकिन संघ समाप्त नहीं हुआ।" कर्नाटक में भी यही होगा – कांग्रेस का पतन।
बंगाल की खादी में : कांग्रेस का अंतिम संस्कार
अगर कर्नाटक में यह सिलसिला चला, तो कांग्रेस बंगाल की खादी में जड़ जाएगी – अर्थात, राजनीतिक रूप से मिट्टी में मिल जाएगी। बंगाल में कांग्रेस का अस्तित्व खतरे में है। 2021 विधानसभा में 0 सीटें। लोकसभा 2024 में 1। रणनीति? अल्पसंख्यक तुष्टिकरण। लेकिन आरएसएस बंगाल में फैल रहा है – शाखाएं बढ़ीं, हिंदू जागे। ममता बनर्जी ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को आम-मिठाई भेजी, लेकिन कांग्रेस? सोमन मित्रा ने कहा, "ममता की माइनॉरिटी अपीजमेंट पॉलिसी ने भाजपा-आरएसएस को बढ़ावा दिया।"
2026 बंगाल चुनावों में भाजपा 123 सीटें लेगी, टीएमसी कांग्रेस? शून्य। अगर कर्नाटक जैसा कदम बंगाल में उठाया, तो अल्पसंख्यक भी अलग हो जाएंगे। X पर @Muhamma ने कहा, "कानून-व्यवस्था चरमरा गई है, लेकिन कांग्रेस आरएसएस के पीछे पड़ी है।"कांग्रेस का अंत? बंगाल की खादी – नेहरू की विरासत – मिट्टी में मिल जाएगी।
जागो कांग्रेस, वरना इतिहास खुद लिखेगा तुम्हारा अंत
कांग्रेस की आरएसएस एलर्जी अल्पसंख्यक भय से उपजी है, लेकिन यह आत्मघाती है। जब-जब प्रतिबंध लगाया, तब-तब हारी। कर्नाटक में यही हो रहा – विफलताओं से ध्यान भटकाने का हथियार। X पर @The_Social_Xray ने लिखा, "Congress is trying to ban RSS... But WHY? Answer is simply that it can unite Hindus." अगर यही चला, तो कांग्रेस बंगाल की खादी में जड़ जाएगी – हमेशा के लिए।
सुझाव? कांग्रेस को आईना देखना चाहिए। नेहरू का स्यूडो-सेकुलरिज्म छोड़ो, गांधी का असली धर्मनिरपेक्षता अपनाओ। आरएसएस दुश्मन नहीं, राष्ट्र का साथी है। वरना, 2028 में कर्नाटक, 2026 में बंगाल – सब हारोगे। जनता जाग चुकी है। आरएसएस 100 सालों से खड़ा है, कांग्रेस? इतिहास के कूड़े में। जागो, वरना सोते ही रह जाओ।
ऋषि देव मिश्रा

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