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शनिवार, 18 अक्टूबर 2025

साला शव्द: पौराणिक स्नेह से लोकव्यंग्य तक, दीपावली पर "साला " को प्रसन्न करिये, लक्ष्मी खुश होंगी


 साला: पौराणिक स्नेह से लोकव्यंग्य तक

भारतीय भाषा और संस्कृति का आकर्षण उसकी गहराई में छिपा है, जहाँ शब्द न केवल अर्थ रखते हैं, बल्कि इतिहास, मिथक और सामाजिक परिवर्तन की परतें भी। "साला" शब्द इसका एक रोचक उदाहरण है—एक ऐसा संबोधन जो मूलतः सम्मान और स्नेह का प्रतीक था, लेकिन समय के साथ व्यंग्य और अपमान का पर्याय बन गया। यह शब्द हमें पौराणिक कथाओं से जोड़ता है, जहाँ समुद्र मंथन की कहानी में लक्ष्मी और शंख के सहोदर संबंध से इसकी जड़ें मिलती हैं। आइए, इसकी यात्रा पर एक नजर डालें।

पौराणिक जड़ें: समुद्र मंथन का रहस्य


पुराणों में वर्णित समुद्र मंथन की कथा देवताओं और दानवों के सहयोग की कहानी है, जिसमें चौदह रत्न निकले। इनमें लक्ष्मी (धन और समृद्धि की देवी) और शंख प्रमुख हैं। विष्णु पुराण और पद्म पुराण के अनुसार, लक्ष्मी समुद्र की पुत्री हैं और शंख उनका सहोदर भाई। जब मंथन से लक्ष्मी प्रकट हुईं, तो शंख को "साला" (बहन का भाई) कहकर संबोधित किया गया। लोककथाओं में यह प्रसंग कुछ इस प्रकार जीवंत है: "अब देखो, लक्ष्मी का भाई साला शंख आया है।"

शंख स्वयं में शुभता का प्रतीक है। भगवान विष्णु के हाथ में "पांचजन्य शंख" विजय और ऊर्जा का वाहक है। शास्त्रों में कहा गया है, "यत्र शंखः तत्र लक्ष्मीः"—जहाँ शंख है, वहाँ लक्ष्मी का वास। घरों में शंख की पूजा धनागमन का सूचक मानी जाती है। इस प्रकार, "साला" मूलतः समृद्धि और मंगल से जुड़ा है।

सामाजिक रूपांतरण: सम्मान से व्यंग्य तक

भारतीय परिवारों में पत्नी को "गृहलक्ष्मी" कहा जाता है। इस दृष्टि से, उसका भाई "साला" लक्ष्मी का भ्राता है—यानी स्नेह और समृद्धि का संकेत। लोकमान्यता है कि "साला" को प्रसन्न रखना घर में सुख-शांति बनाए रखने जैसा है; मतभेद होने पर लक्ष्मी (समृद्धि) का विचलन हो सकता है। प्राचीन काल में यह "साले साहब" या "सालाजू" जैसे सम्मानसूचक रूपों में प्रयुक्त होता था।

किंतु भाषा की गतिशीलता ने इसे बदल दिया। रिश्तों की घनिष्ठता में ठिठोली और व्यंग्य घुल गया, और "साला" गाली का रूप ले बैठा। यह भारतीय संस्कृति का एक सामान्य पैटर्न है, जहाँ महत्वपूर्ण रिश्ते व्यंग्यात्मक हो जाते हैं—जैसे "जीजा-साली" की नोंकझोंक। आज यह शब्द कभी स्नेह, कभी कटाक्ष में इस्तेमाल होता है, लेकिन इसका मूल अपमानजनक नहीं है।

 स्नेह का लोक-प्रतीक

"साला" शब्द हमें याद दिलाता है कि भाषा जीवंत है—यह मिथकों से निकलकर लोकजीवन में बदलती रहती है। जो शंख विष्णु के हाथों में शोभित है, वह लक्ष्मी का भाई है और शुभता का दूत। यदि "साला" प्रसन्न है, तो समझिए लक्ष्मी मुस्कुरा रही हैं! यह विवेचना न केवल भाषिक विकास को दर्शाती है, बल्कि हमें अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ती है।


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