रामराज्य बनाम रिपब्लिक भारत: धर्म, संविधान और भारत का आत्मसंतुलन - कौटिल्य का भारत

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गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

रामराज्य बनाम रिपब्लिक भारत: धर्म, संविधान और भारत का आत्मसंतुलन







रामराज्य बनाम रिपब्लिक भारत: धर्म, संविधान और भारत का आत्मसंतुलन


भारत का इतिहास केवल घटनाओं का संकलन नहीं, बल्कि विचारों की निरंतर साधना है। इस साधना के दो शिखर हैं — ‘रामराज्य’ और ‘रिपब्लिक भारत’।
एक वह जो हमारे अतीत का आदर्श है, दूसरा वह जो हमारे वर्तमान का विधान है।
एक का मूल धर्म है, दूसरे का मूल संविधान। एक लोककल्याण को धर्म का परिणाम मानता है, दूसरा लोककल्याण को अधिकारों की परिणति।और आज भारत इन्हीं दो धाराओं के संगम पर खड़ा है — जहाँ नैतिकता और विधि, परंपरा और आधुनिकता, राम और गणराज्य – एक-दूसरे को पहचानने की प्रक्रिया में हैं।

 रामराज्य: शासन नहीं, साधना का प्रतिमान
‘रामराज्य’ शब्द सुनते ही भारतीय मानस में वह स्वर्णिम युग झिलमिला उठता है जहाँ न अन्याय था, न भय, न शोषण।वाल्मीकि और तुलसी दोनों ने उसे केवल शासन प्रणाली नहीं, बल्कि जीवन-दर्शन के रूप में प्रस्तुत किया। तुलसीदास लिखते हैं— दैहिक दैविक भौतिक तापा, रामराज नहिं काहुहि व्यापा। यहाँ शासन की परिभाषा ‘प्रशासनिक’ नहीं, ‘आध्यात्मिक’ है। रामराज्य में व्यवस्था का केंद्र कोई संस्था नहीं, बल्कि धर्म का आत्मबल है। राजा केवल वह माध्यम है जो लोकहित के लिए अपने सुख-दुख का त्याग करता है। राम स्वयं कहते हैं— जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।अर्थात् — राजधर्म, मातृभूमि और प्रजा का कल्याण ही सर्वोच्च है।रामराज्य की प्रमुख विशेषताएँ: धर्माधारित शासन: कानून नहीं, नीति का शासन। राजा धर्म का सेवक: राजा स्वामी नहीं, दास है धर्म का।  समानता और न्याय: वर्ण-भेद या वर्ग-भेद का उन्मूलन। लोकलाज की संवेदना: शासन का प्रत्येक निर्णय लोक-भावना से प्रेरित।
नैतिक नियंत्रण: अपराध का निवारण केवल दंड से नहीं, आत्मसंयम से।रामराज्य का सार यह है कि राजनीति का आध्यात्मिकीकरण हो।राज्य और समाज दोनों धर्म की एक ही डोर में बंधे हों।

रिपब्लिक भारत: आधुनिक गणराज्य की संवैधानिक चेतना स्वतंत्र भारत ने 26 जनवरी 1950 को जब स्वयं को “Republic of India” घोषित किया, तब उसने कहा  “We, the People of India…”यह वाक्य केवल विधिक उद्घोष नहीं था, बल्कि एक सांस्कृतिक क्रांति थी —अब राजा नहीं, जनता राजा थी।अब राजधर्म नहीं, संविधान सर्वोच्च था।रिपब्लिक भारत ने वह ढांचा दिया जिसमें जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र से ऊपर उठकर समानता, स्वतंत्रता, और बंधुता को राष्ट्र का मूलमंत्र बनाया गया।रिपब्लिक भारत की प्रमुख विशेषताएँ:
 संविधान सर्वोपरि: कोई व्यक्ति, धर्म या परंपरा उससे ऊपर नहीं।
 लोकतंत्र: सत्ता जनता के प्रतिनिधियों के माध्यम से संचालित
 धर्मनिरपेक्षता: राज्य किसी धर्म का पक्ष नहीं लेता।न्यायपालिका की स्वतंत्रता: विधि के शासन (Rule of Law) की गारंटी। मौलिक अधिकार: व्यक्ति का अस्तित्व और गरिमा सर्वोच्च।यह वह प्रणाली है जिसमें लोकमत, चुनाव, मीडिया और न्यायालय मिलकर सत्ता को सीमित करते हैं ताकि कोई “राम” या “रावण” निरंकुश न हो सके।

 धर्म बनाम विधि: दो ध्रुवों का द्वंद्व रामराज्य का आधार धर्म है, जबकि रिपब्लिक भारत का आधार विधि (Law)।धर्म आत्मा को नियंत्रित करता है, विधि शरीर को। धर्म भीतर से अनुशासन लाता है, विधि बाहर से।
धर्म के शासन में राजा नैतिकता से बंधा होता है, जबकि रिपब्लिक भारत में प्रधानमंत्री संविधान से बंधा होता है।
राम ने एक धोबी की लोकलाज को ध्यान में रखकर सीता का परित्याग किया — क्योंकि वह राजधर्म की मर्यादा थी। किन्तु रिपब्लिक भारत में यदि किसी नागरिक की प्रतिष्ठा पर प्रश्न उठे, तो न्यायालय ही अंतिम निर्णायक है, लोकमत नहीं।

एक व्यवस्था कर्तव्य पर आधारित है, दूसरी अधिकार पर। रामराज्य कहता है — “सबका कर्तव्य निभाओ, सबका कल्याण होगा।” रिपब्लिक भारत कहता है — “सबके अधिकार सुरक्षित करो, सबका विकास होगा।”

दोनों दृष्टियाँ परस्पर विरोधी नहीं, परंतु संतुलन कठिन है। जहाँ धर्म अत्यधिक होगा, वहाँ आस्था अंधकार में बदल सकती है;
जहाँ विधि अत्यधिक होगी, वहाँ मनुष्य की आत्मा बंजर हो सकती है।

दोनों के व्यावहारिक उदाहरण(क) रामराज्य के उदाहरण: सीता का वनगमन: लोकमत की मर्यादा और राजधर्म के बीच संघर्ष का उत्कृष्ट उदाहरण। शबरी और निषादराज की समानता: सामाजिक समरसता का प्रतीक। हनुमान की निष्ठा: प्रशासनिक नहीं, भावनात्मक अनुशासन का आदर्श।रपब्लिक भारत के उदाहरण:

. 1975 का आपातकाल: सत्ता जब लोकधर्म से विमुख हुई, तो जनता ने मतदान से उसे पराजित कर लोकतंत्र को पुनर्स्थापित किया। धारा 377 का उन्मूलन (2018): न्यायालय ने बहुसंख्यक परंपरा के विपरीत जाकर व्यक्ति की स्वतंत्रता को वरीयता दी। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (2019): धार्मिक विश्वास और संवैधानिक प्रक्रिया के बीच संतुलन का उदाहरण। इन घटनाओं ने दिखाया कि रिपब्लिक भारत में भी धर्म और न्याय का संवाद निरंतर जारी है।

रामराज्य की सीमाएँ और रिपब्लिक भारत की चुनौतियाँ(अ) रामराज्य की सीमाएँ:
लोकमत की अत्यधिक प्रधानता व्यक्तिगत न्याय को बाधित कर सकती है।
धर्म की व्याख्या शासक के विवेक पर निर्भर हो सकती है।वैज्ञानिकता और आधुनिकता का अभाव।

(ब) रिपब्लिक भारत की चुनौतियाँ: नैतिकता और आत्मानुशासन का अभाव,सविधान का राजनीतिक उपयोग।लोकलुभावन राजनीति से शासन का पतन।


रामराज्य में धर्म बिना विधि था,रिपब्लिक भारत में विधि बिना धर्म है।भारत को इन दोनों की समानधारा चाहिए।दार्शनिक दृष्टि: ‘राजधर्म’ से ‘संविधानधर्म’,महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर से कहा था — “राजा धर्म का पालक हो, न कि उसका स्वामी।”
रमराज्य ने इस वाक्य को व्यवहार में उतारा।रिपब्लिक भारत ने इसे संविधानिक रूप दिया — जहाँ राजा (राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री) भी कानून से ऊपर नहीं।रामराज्य का राजधर्म था — न्याय बिना भय।रिपब्लिक भारत का संविधानधर्म है — समानता बिना भेद।यदि दोनों को एक सूत्र में बाँधा जाए, तो “राजनीति” पुनः “राजनीतिज्ञता” बन सकती है।

आधुनिक संदर्भ में तुलनात्मक दृष्टांत,शासन का मूल धर्म और नीति संविधान और कानून,सत्ता का स्रोत राजा का त्याग और धर्म जनता का मत और इच्छा
नियंत्रण का माध्यम आत्मसंयम, मर्यादा संस्थागत प्रक्रिया,नागरिक का स्वरूप कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति अधिकारयुक्त नागरिक,न्याय की परिभाषा लोकलाज और नीति विधि और प्रक्रिया,राज्य का उद्देश्य धर्म की स्थापना सामाजिक न्याय,नीति का स्रोत वेद, मर्यादा संविधान, संसद,प्रतीक राम भारत का राष्ट्रपति,ज का भारत किस ओर झुका है?

आधुनिक भारत “रिपब्लिक” तो बन गया, पर “रामराज्य” नहीं।
यहाँ विधि है पर धर्म का आत्मबल नहीं।
यहाँ अधिकार हैं, पर कर्तव्य की चेतना दुर्लभ है।
सत्ता जनता से आती है, पर जनता का विवेक सत्ता की बंधक बन गया है।


लोकतंत्र ने हमें मताधिकार दिया, पर मतिचेतना नहीं।
संविधान ने हमें समानता दी, पर संवेदनशीलता नहीं।
इसलिए आज भारत को पुनः “रामराज्य” की आत्मा चाहिए —
जहाँ नीति, करुणा और लोकहित शासन का आधार बने।


समन्वय का मार्ग: रामराज्य + रिपब्लिक भारत = धर्म-संविधान राज्य

रामराज्य और रिपब्लिक भारत दो विपरीत नहीं, पूरक धाराएँ हैं।
रामराज्य हमें नैतिक दिशा देता है, रिपब्लिक हमें संवैधानिक संरचना देता है।
यदि संविधान की व्याख्या रामराज्य की आत्मा से की जाए, तो भारत केवल लोकतंत्र नहीं, ‘धर्मतंत्र’ बनेगा — न धार्मिक शासन, बल्कि धर्ममूलक शासन।

रामराज्य से सीखें: सत्ता सेवा है, स्वार्थ नहीं।नीति राजनीति से ऊपर है।


रिपब्लिक भारत से सीखें:कोई भी व्यक्ति या संस्था कानून से ऊपर नहीं।
विविधता में एकता — यही भारत की शक्ति है।



भारत का आत्मसंतुलन,रामराज्य और रिपब्लिक भारत का संघर्ष वास्तव में अतीत और भविष्य का नहीं, बल्कि नीति और प्रक्रिया का संवाद है एक हमें बताता है कि कैसे शासन करना चाहिए, दूसरा हमें बताता है कि किस व्यवस्था में शासन करना चाहिए।

आज आवश्यकता है —
कि हम संविधान में राम की आत्मा, और रामराज्य में संविधान की मर्यादा जोड़ दें।
क्योंकि न तो धर्म बिना विधि स्थायी है, न विधि बिना धर्म जीवित।

“रामराज्य भीतर का संविधान है, रिपब्लिक भारत बाहर का धर्म है।
जब दोनों एक होंगे, तभी भारत जगद्गुरु बनेगा।”


रामराज्य ने मनुष्य को नीति सिखाई,
रिपब्लिक भारत ने मनुष्य को अधिकार दिया।
अब समय है — नीति और अधिकार का संगम करने का।

भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि यही होगी —
यदि वह रामराज्य की आत्मा और रिपब्लिक भारत के संविधान को एकसूत्र कर सके।
तब न शासन दमनकारी रहेगा, न लोकतंत्र दिशाहीन।तब “राज्य” धर्म से संचालित होगा और “रिपब्लिक” मानवता से।
“रामराज्य बनाम रिपब्लिक भारत” — यह संघर्ष नहीं, यह भारत के आत्मा और शरीर का पुनर्मिलन है।


 

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