भारत की राजनीति : पौराणिक कल्पवृक्ष या भ्रष्टाचार का बरगद - कौटिल्य का भारत

Breaking News

Home Top Ad

विज्ञापन के लिए संपर्क करें - 9415671117

Post Top Ad

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2025

भारत की राजनीति : पौराणिक कल्पवृक्ष या भ्रष्टाचार का बरगद




भारत की राजनीति : पौराणिक कल्पवृक्ष या भ्रष्टाचार का बरगद?

— वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर प्रहारात्मक संपादकीय समीक्षा —

लेखक दृष्टि :
भारत की राजनीति आज उस पौराणिक कल्पवृक्ष की तरह हो चुकी है — जो जनता से वचन तो देता है “जो माँगो वह मिलेगा”, पर वास्तविकता में केवल नेताओं और दलालों को फल देता है। यह लोकतंत्र नहीं, लोभतंत्र बन गया है।

सत्ता का जंगल और स्वार्थ की शाखाएँ

देश के सभी सदनों में लगभग ५४६३ जनप्रतिनिधि बैठे हैं — सांसद, विधायक, पार्षद और मंत्री।
इनमें से अधिकांश अब जनसेवक नहीं, बल्कि जन-शोषक बन चुके हैं।
राजनीति उनके लिए धर्म नहीं, धंधा है।
हर चुनाव उनके लिए एक व्यवसायिक निवेश है — जहाँ टिकट खरीदा जाता है, प्रचार बेचा जाता है, और जनता को सपनों के झूठे बीज दिखाए जाते हैं।

संसद और विधानसभाएँ आज लोकतंत्र के मंदिर नहीं, बल्कि विलासिता के बाजार बन चुकी हैं।
जहाँ नीति नहीं, नारा बिकता है
जहाँ विचार नहीं, वोट की गिनती चलती है
यहाँ तक कि संवैधानिक मर्यादाएँ भी अब सत्ता की सुविधा के अनुसार मोड़ दी जाती हैं। जनता : कल्पवृक्ष की भूली हुई जड़

जनता इस कल्पवृक्ष की जड़ है — वही उसे सींचती है, पर कभी फल नहीं चखती।
वह हर पाँच साल पर आशा लेकर आती है, पर लौटती है निराशा लेकर।
वोट डालने के बाद जनता की भूमिका समाप्त — फिर पाँच साल तक जनप्रतिनिधि राजा और जनता प्रजा बन जाती है।
जो कुर्सी जनता देती है, वही कुर्सी उसके खिलाफ हथियार बन जाती है।

 राजनीति : विचार नहीं, व्यापार

आज राजनीति दलों का नहीं, डीलों का खेल बन चुकी है।
हर दल “जनता की सेवा” का दावा करता है, पर असल में अपनी तिजोरी की सेवा में लगा है।
यहाँ दल-बदल कोई अपमान नहीं, बल्कि रणनीति है।
यहाँ जनता का मुद्दा नहीं, बल्कि जुबान की चालाकी चलती है।
यहाँ विचारधारा नहीं, बल्कि विज्ञापन एजेंसी की स्क्रिप्ट बोलती है।

 लोकतंत्र या लूटंत्र?

सत्ता पक्ष विकास का ढोल पीटता है, विपक्ष भ्रष्टाचार का।
दोनों ही जनता को मूर्ख बनाते हैं, और फिर पाँच साल तक मौन रहते हैं।
भ्रष्टाचार अब राजनीति का स्वाभाविक अंग बन चुका है।
जनप्रतिनिधि अब अपराधियों की पनाह बन गए हैं।
लोकतंत्र की आत्मा रोज संसद की दीवारों से टकराकर घायल होती है —
फिर भी जनता चुप है, क्योंकि उसे अब भी उम्मीद है कि कोई शाखा फल देगी।

 अंतिम चेतावनी

यदि यह “कल्पवृक्ष” यूँ ही फल-फूलता रहा,
तो आने वाले वर्षों में यह लोकतंत्र की जड़ों को भ्रष्टाचार, जातिवाद और सत्ता लोभ से पूरी तरह नष्ट कर देगा।
अब जनता को इस वृक्ष की छँटाई करनी होगी
क्योंकि अगर जड़ें सोती रहीं, तो तना ही शासन करेगा।

भारत की राजनीति का यह कल्पवृक्ष अब भी जनता की आस्था से जीवित है।
पर यदि जनता ने अब भी इसे शुद्ध नहीं किया,
तो यह “वृक्ष” एक दिन जनता की कब्र पर खड़ा बरगद बन जाएगा।😛

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Bottom Ad