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नारी बने नारायणी
शारदीय नवरात्रि शक्ति की उपासना का पर्व है। यह केवल देवी पूजन तक सीमित नहीं है, बल्कि महिलाएँ खुद को “अबला” न मानकर “नारायणी” के रूप में पहचानने का संकल्प लें—यही इसकी सच्ची साधना है। शक्ति की साधना जब भीतर के आत्मस्वाभिमान को जगा देती है, तभी समाज में स्त्री शक्ति का वास्तविक उत्थान संभव है।शारदीय नवरात्रि और स्त्री का स्वरूपनवरात्रि देवी के नौ रूपों की उपासना का समय है। माँ दुर्गा केवल एक धार्मिक प्रतीक नहीं हैं, वे स्त्री के भीतर छिपी हुई शक्ति का उद्घोष हैं। इस पर्व का मूल संदेश है — “नारी में देवी का निवास है।”माँ शैलपुत्री से पर्वत जैसी दृढ़ता मिलती है।माँ ब्रह्मचारिणी से तप, धैर्य और सीखने की शक्ति।माँ चंद्रघंटा से साहस और स्वाभिमान।माँ कूष्मांडा से सृजनशक्ति।माँ स्कंदमाता से संरक्षण और मातृत्व।माँ कात्यायनी से न्याय और पराक्रम।माँ कालरात्रि से भय निवारण।माँ महागौरी से शुद्धता और आशीष।माँ सिद्धिदात्री से पूर्णता और साधना का फल।इन रूपों को आत्मसात कर स्त्रियाँ अपनी अंतर्निहित “नारायणी-शक्ति” को पहचान सकती हैं।नारी से नारायणी तकभारतीय परंपरा में नारी को केवल कोमलता का प्रतीक नहीं माना गया। वेदों, पुराणों और भक्ति साहित्य में नारी को शक्ति, विद्या और प्रेरणा के रूप में मान्यता मिली है।नारी यदि केवल सहनशीलता का रूप है, तो वह “नारी” है।किंतु जब वह अपने आत्मस्वाभिमान, न्याय और धर्म के लिए खड़ी होती है, तो वह “नारायणी” बन जाती है।महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का यह भाव नारी के इसी वीर रूप का उद्घोष करता है—“या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।”यह श्लोक दर्शाता है कि हर प्राणी में शक्ति का निवास है और स्त्रियों में यह सबसे प्रकट है।आत्मस्वाभिमान का महत्वस्त्री का पहला कवच उसका आत्मस्वाभिमान है। आत्मस्वाभिमान जगाकर ही स्त्री किसी भी अन्याय, शोषण या उपेक्षा का सामना कर सकती है।आत्मस्वाभिमान स्त्री को “निर्भरता” से “स्वावलंबन” की ओर ले जाता है।यही गर्व उसे अपने अधिकार मांगने नहीं, बल्कि उन्हें पाने का साहस देता है।आत्मस्वाभिमान स्त्री को केवल घर की “गृहलक्ष्मी” नहीं, बल्कि समाज की “दुर्गा” बनने का सामर्थ्य देता है।गीता में श्रीकृष्ण ने भी आत्मबल पर जोर दिया —
“उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।”
(मनुष्य को चाहिए कि अपने आत्मबल से स्वयं को उठाए, स्वयं को कभी गिरने न दे।)आधुनिक संदर्भ में नवरात्रि का संदेशआज की नारी को पूजन की मूर्ति से आगे बढ़कर जीवन की हर भूमिका में देवी स्वरूप धारण करना होगा।शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में सरस्वती।समाज-निर्माण और मातृत्व में अन्नपूर्णा।अन्याय के प्रतिरोध में दुर्गा।कठिनाइयों को काटने में काली।महिलाएँ जब इन आदर्शों को अपने जीवन में उतारेंगी, तब वे सचमुच “नारायणी” बनेंगी।नारी जागरण के लिए संकल्पशारदीय नवरात्रि पर स्त्रियाँ यह संकल्प लें—वे स्वयं को कभी कमजोर न मानें।अपने आत्मस्वाभिमान और अधिकार की रक्षा करें।शिक्षा और आत्मनिर्भरता को जीवन का साध्य बनाएं।समाज में अन्याय, शोषण और कुरीतियों के विरोध में खड़ी हों।मातृत्व और सृजनशीलता को शक्ति और संकल्प से जोड़ें।प्रेरणादायी श्लोक और भाव“न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति” कहने वाले मनुस्मृति के श्लोकों का उत्तर स्वयं दुर्गा के इस रूप में है—
“शक्ति बिना शिव शव हैं।”
अर्थात स्त्री के बिना पुरुष का अस्तित्व अधूरा है।महाभारत में भी स्त्री गौरव का उल्लेख मिलता है—
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता।”
जहां नारी का सम्मान होता है, वहां देवता वास करते हैं।दुर्गा सप्तशती में देवी का यह उद्घोष स्त्रीत्व का वास्तविक स्वरूप प्रकट करता है—
“अहं राष्ट्री संगमनी वसूनां, चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम्।”
अर्थात मैं ही राष्ट्र की संचालिका हूँ, वसुओं (संपत्ति) का आधार हूँ।समापनशारदीय नवरात्रि स्त्री के स्मरण मात्र का पर्व नहीं है, यह आत्मजागरण का पर्व है।
महिलाओं को यह संकल्प लेना होगा कि वे केवल नारी होकर सीमित नहीं रहेंगी, बल्कि अपने आत्मस्वाभिमान, पराक्रम, विद्या और साहस से समाज की अनिवार्य शक्ति के रूप में नारायणी बनकर जीवन जिएंगी।
इसी में इस पर्व की वास्तविक साधना और शक्ति आराधना निहित है।
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