वन्देमातरम और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (32) - कौटिल्य का भारत

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मंगलवार, 9 दिसंबर 2025

वन्देमातरम और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (32)

 वन्देमातरम और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विचारोत्तेजक आलेख,,


जब-जब भारत ने अपने हृदय की धड़कनों को शब्दों में ढाला है, तब-तब एक मंत्र ने उसकी आत्मा को झकझोर कर जगाया है—“वन्देमातरम!” यह मात्र एक पंक्ति नहीं, राष्ट्र-जीवन में संचारित शाश्वत ऊर्जा है। बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की कलम से निकला यह गीत किसी ‘भूमि’ की प्रशंसा नहीं, बल्कि माता-रूपेण राष्ट्र की स्तुति है। इसी मातृभाव की ज्वाला, आगे चलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के चरित्र और चिंतन में संस्कार बनकर प्रवाहित होती है।भारत की मातृ-चेतना और वन्देमातरम::भारत में राष्ट्र भावनाओं का विषय है, गणित का नहीं; यहाँ देश केवल सीमा-रेखाओं का समूह नहीं बल्कि देवी-स्वरूप मातृभूमि है। वन्देमातरम में यह आराधना स्पष्ट है—“श्यामलां सुपर्णां, सुवर्णभूमि… वन्दे मातरम्!”यहाँ भारत ‘धरा’ नहीं, स्वयं देवी है। डॉ. हेडगेवार जब इस मंत्र से प्रेरित क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय थे, तब मातृभूमि को देवी मानने की यह चेतना उनके व्यक्तित्व में समाई। यही चेतना आगे चलकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आत्मा बनी।स्वतंत्रता आंदोलन की ज्वाला से संगठन के संस्कार तक,1905 का स्वदेशी आंदोलन और 1925 में स्थापित RSS, दोनों की जड़ एक ही है—राष्ट्र-समर्पण।वन्देमातरम ने क्रांतिकारियों के रक्त में उबाल भरा, तो संघ ने उसी उर्जा को चरित्र-निर्माण और संगठन-शक्ति में रूपांतरित किया।जहाँ स्वतंत्रता सेनानी इस मंत्र के साथ फांसी के तख्ते पर चढ़ रहे थे, वहीं संघ इसी मंत्र को जीवन-शैली और अनुशासन में ढाल रहा था।क्रांति के जो भाव थे, संघ ने उन्हें जीवन-साधना बना दिया।

RSS में ‘भारत माता’ : वन्देमातरम का जीवंत रूप,संघ की प्रार्थना, ध्वज-नमस्कार, सेवा और अनुशासन—सभी वन्देमातरम का ही विस्तार हैं। यहाँ भारत माता है, और स्वयंसेवक उसके सपूत।संघ प्रार्थना में गूंजती पंक्तियाँ—“परम् वैभवम् नेतुम् एतत् स्वराष्ट्रम :”वन्देमातरम के भू-देवी वैभव को पुनर्स्थापित करने का संकल्प है।संघ का स्वयंसेवक राष्ट्र के लिए केवल नारा नहीं लगाता, निष्ठा जीता है, जिम्मेदारी निभाता है, त्याग करता है। यही वंदेमातरम का सच्चा पालन है,कठिन समय में संघ : मंत्र से कर्म तकजब देश संकट में पड़ा, तब वन्देमातरम केवल गीत नहीं रहा; वह सेवा कर्म में बदल गया।

काल / युद्ध कर्म वन्देमातरम का अर्थ,1962 सीमाओं पर सहायता, रक्तदान “माँ की रक्षा”1971 शरणार्थियों की सेवा “दुख में मातृ-सेवा”1999 कारगिल सैनिक परिवारों की सहायता “वीरों की मातृभूमि”संघ ने सिद्ध किया कि राष्ट्रभक्ति केवल कंठ में नहीं, कर्म में उतरनी चाहिए।वन्देमातरम = भावना, RSS = साधना,पहलू वन्देमातरम संघदर्शन मातृभूमि देवी मातृभूमि सेवा-धर्म,प्रेरणा क्रांति, बलिदान अनुशासन, संगठन,उद्देश्य स्वाधीनता स्वाभिमान, राष्ट्रनिर्माण,रूप मंत्र जीवन-शैलीआज की आवश्यकता : नारा नहीं, आचरण,आज वन्देमातरम ‘कार्यक्रमों’ तक सीमित नहीं होना चाहिए, न भावुकता तक।इसे पढ़ा नहीं जाना चाहिए—जिया जाना चाहिए।आज भारत को आवश्यकता है—स्वदेशी संस्कारों की,सेवा की,एकता की,दृढ़ चरित्र की,और यही वह बिंदु है जहाँ वन्देमातरम और RSS एक हो जाते हैं—भावना और साधना एक हो जाती हैं।न्देमातरम वह ज्वाला है, जिसने भारत को जगाया।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ वह साधना है, जो भारत को गढ़ रहा है।एक ने स्वतंत्रता की राह दिखाई,दूसरा स्वाभिमान, संगठन और राष्ट्र-निर्माण की दिशा दे रहा है।भारत माता केवल गाई नहीं जाती,सेवित होती है, संरक्षित होती है, और गौरव के शिखर पर स्थापित की जाती है।


वन्दे मातरम्!

🇮🇳 भारत माता की जय! 🙏


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