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रविवार, 12 अक्टूबर 2025

नारी गरिमा पर प्रहार: अफगान मंत्री की प्रेस वार्ता और भारत की मौन कूटनीति




"जहाँ नीति मौन हो जाए, वहाँ संस्कृति को बोलना पड़ता है


 नारी गरिमा पर प्रहार: अफगान मंत्री की प्रेस वार्ता और भारत की मौन कूटनीति


— कौटिल्य का भारत संपादकीय विश्लेषण





नई दिल्ली में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस से महिला पत्रकारों को बाहर करना न केवल पत्रकारिता की स्वतंत्रता का अपमान है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक मर्यादा और संविधानिक आत्मा पर भी चोट है।
भारत की वह भूमि, जहाँ गर्गी, मैत्रेयी और सीता संवाद का प्रतीक हैं, आज विदेशी सोच के आगे भारतीय नारी की वाणी को रोक देने के अपराध की साक्षी बनी।

विदेशी अतिथि या संस्कृति पर प्रहार? यह कहा गया कि यह निर्णय ‘प्रोटोकॉल’ का हिस्सा था। पर सवाल यह है —क्या कोई प्रोटोकॉल भारत की आत्मा से बड़ा हो सकता है? भारत वह देश है जहाँ ‘अतिथि देवो भव’ की परंपरा है, परंतु यह अंधी मेहमाननवाज़ी नहीं — संस्कारपूर्वक संवाद है। यदि कोई अतिथि हमारी नारी गरिमा का सम्मान नहीं करता, तो वह अतिथि नहीं, अवांछित विचार है। “संवाद की भूमि भारत में संवाद का लिंग नहीं, विचार होता है।”

मौन सरकार, झुकी हुई कूटनीति यह घटना केवल अफगान मंत्री का व्यवहार नहीं — बल्कि भारत की सरकार की प्रतिक्रिया का अभाव अधिक चिंताजनक है।यदि विदेश मंत्रालय को इसकी पूर्व जानकारी थी तो यह नीतिगत चूक है;और यदि नहीं थी, तो यह राजनयिक अक्षमता है।सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि भारतीय भूमि पर नारी के अपमान की अनुमति किसने दी?क्योंकि मौन रहना भी अपराध है।

 “राज्य की प्रतिष्ठा उसकी नीति में नहीं, उस मर्यादा में होती है जो वह अपने नागरिकों के प्रति रखता है।” — कौटिल्य नीति सूत्र


 संविधान और संस्कृति दोनों आहत,भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1)(a) और 21 — समानता, अभिव्यक्ति और गरिमा —तीनों इस घटना में कुचले गए हैं।
यह न केवल महिला पत्रकारों के साथ अन्याय है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की उस जड़ पर प्रहार है,जिस पर हमारी “स्वतंत्र मीडिया” की नींव रखी गई थी।सांस्कृतिक दृष्टि से भी यह भारत के उस मूल वाक्य को अपमानित करता है —

 “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता
।”

जब संवाद से नारी को बाहर किया जाता है, तो वहाँ देवत्व नहीं, दासता जन्म लेती है। क्या यह भारत की नीति है या असहायता?भारत को अपने राजनयिक व्यवहार में यह स्पष्ट करना चाहिए कि नारी सम्मान किसी अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल से बड़ा मूल्य है। यदि तालिबान विचारधारा भारत की प्रेस मीटिंग में प्रभाव डालती है, तो यह भारत की कूटनीतिक विफलता का संकेत है। “भारत में महिला पत्रकारों को बाहर रखना,भारत की सभ्यता को विदेशी भय के आगे झुकाने जैसा है।”

पत्रकारिता की भी परीक्षा,मीडिया संगठनों और प्रेस यूनियनों ने भी इस प्रकरण पर केवल बयान दिए — प्रतिरोध नहीं किया।यह अवसर था कि सम्पूर्ण प्रेस एक स्वर में कहता —
“जहाँ हमारी महिला साथी नहीं, वहाँ हमारी कलम भी नहीं।”परंतु यह एक बार फिर सिद्ध हुआ कि आज मीडिया का अधिकांश भाग,सत्ता की प्रतिक्रिया से अधिक सत्ता की स्वीकृति का प्रतीक्षारत है।

भारत की नारी — कूटनीति की आत्मा,भारत की परंपरा में नारी केवल सहचरी नहीं, नीति की दिशा-निर्धारक रही है।रामायण की सीता, महाभारत की द्रौपदी, वेदों की वैदिकी महिलाएँ —सबने संवाद को दिशा दी है, सीमाएँ नहीं।यदि आज भारत की पत्रकार नारी को“विदेशी मानसिकता” के कारण प्रेस वार्ता से रोका जा सकता है,
तो यह केवल व्यक्ति नहीं, पूरे राष्ट्र की चेतना का ह्रास है।
 निष्कर्ष: स्वाभिमान की पुनर्प्रतिष्ठा,यह घटना भारत की कूटनीतिक और नैतिक स्वाभिमान की परीक्षा थी —और भारत मौन रह गया।भारत सरकार को तुरंत यह स्पष्ट नीति अपनानी चाहिए कि “भारत की भूमि पर नारी गरिमा से बड़ा कोई राजनयिक प्रोटोकॉल नहीं हो सकता।”यह केवल महिला पत्रकारों का मुद्दा नहीं,
यह भारत के आत्मसम्मान और संविधान की रक्षा का विषय है।
 
भारत को याद रखना होगा — “जो राष्ट्र अपनी नारी की आवाज़ दबा देता है,
वह अंततः स्वयं विश्व मंच पर मौन हो जाता है।”

अब समय है कि भारत बोले,नारी के सम्मान की भाषा में, नीति के साहस के स्वर में।

  कौटिल्य का भारत संपादकीय मंडल

"जहाँ नीति मौन हो जाए, वहाँ संस्कृति को बोलना पड़ता है


 

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