बस्ती टाउन क्लब गलत हाथों में नहीं जाने पायेगा, सरकार की सम्पत्ति, सरकार के पास ही रहेगी, जिलाधिकारी, बस्ती - कौटिल्य का भारत

Breaking News

Home Top Ad

विज्ञापन के लिए संपर्क करें - 9415671117

Post Top Ad

शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2025

बस्ती टाउन क्लब गलत हाथों में नहीं जाने पायेगा, सरकार की सम्पत्ति, सरकार के पास ही रहेगी, जिलाधिकारी, बस्ती

 

“टाउन क्लब की अरबों की संपत्ति पर असली मालिक कौन?—प्रशासन-सियासत आमने-सामने, हाईकोर्ट में होगा निर्णायक संघर्ष.
सत्तर वर्षो से अनधिकृत उपभोग कर्ता से, वसूली गई धनराशि क़ी वसूली  भी की जाय




बस्ती।
एक ओर नगर के हृदयस्थल स्थित “टाउन क्लब” की संपत्ति पर स्वामित्व का विवाद है, तो दूसरी ओर इस सम्पत्ति के पुनर्जीवन और उपयोग को लेकर राजनीतिक व प्रशासनिक हलकों में हलचल मची हुई है।लगभग 20 करोड़ रुपये के मूल्य की इस भूमि और भवन को लेकर अब प्रश्न उठ खड़ा हुआ है—आख़िर “टाउन क्लब” का असली मालिक कौन है? कई वर्षों से यह भवन, जो कभी बस्ती शहर की सामाजिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था, अब जर्जर और विवादों में घिरा पड़ा है।
बीडीए (बस्ती विकास प्राधिकरण) ने इस परिसर के आधुनिकीकरण और पुनर्निर्माण की योजना बनाई है, परंतु स्वामित्व का मामला स्पष्ट न होने के कारण कार्य अटक गया है। बीडीए भी असमंजस में — स्वामित्व का ठिकाना नहीं,प्राप्त समाचारों के अनुसार, बीडीए अधिकारियों ने टाउन क्लब परिसर की स्वामित्व स्थिति को लेकर एसडीएम सदर, तहसील प्रशासन और संबंधित विभागों से कई बार जानकारी मांगी, किंतु किसी के पास ठोस उत्तर नहीं मिला। खुद एसडीएम सदर ने बीडीए को पत्र लिखकर यह स्वीकार किया कि स्वामित्व की जानकारी उपलब्ध नहीं है।

बीडीए के अभियंता ने बताया कि उक्त परिसर में पार्किंग, भवन, कार्यालय कक्ष, मल्टीपर्पज़ हॉल, कॉन्फ्रेंस रूम और गेस्ट हाउस जैसी संरचनाएँ हैं, जिनका निर्माण कई चरणों में हुआ था। परंतु रिकॉर्ड यह नहीं बताते कि इनका कानूनी स्वामी कौन है।

इसी बीच यह बात सामने आई कि टाउन क्लब के नाम से चल रही संपत्ति को कई वर्षों पूर्व बंद करवा दिया गया था, और बाद में इस स्थान पर सरकारी योजनाएँ शुरू करने की बात चली।
 राजेंद्र नाथ तिवारी का पत्र — “विकास कार्य में बाधाएँ दूर की जाएँ

इसी बीच भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य राजेंद्र नाथ तिवारी ने 24 अक्टूबर 2025 को जिलाधिकारी बस्ती को एक विस्तृत पत्र लिखा है,
जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि “बस्ती टाउन क्लब के निर्माण कार्य हेतु चल रहे प्रयासों में कुछ बाधाएँ उत्पन्न हो रही हैं, जिन्हें दूर किया जाना चाहिए।”उन्होंने पत्र में लिखा कि यह स्थान नगर के विकास और जनोपयोगी परियोजनाओं के लिए अत्यंत उपयुक्त है। उन्होंने आग्रह किया कि विकास प्राधिकरण द्वारा तैयार ‘विस्तृत परियोजना प्रतिवेदन (DPR)’ के अनुसार निर्माण कार्य आगे बढ़ाने के निर्देश दिए जाएँ, ताकि यह जनोपयोगी स्थल शीघ्र ही बस्ती नगर के विकास में मील का पत्थर सिद्ध हो सके.




परंतु अब यह संपत्ति लंबे समय से अनुपयोगी पड़ी है और प्रशासन द्वारा इसे पुनः उपयोग में लाना जनहित में आवश्यक है। तिवारी ने यह भी कहा कि यह प्रोजेक्ट बस्ती जिले की महत्वपूर्ण जनसुविधा परियोजनाओं में से एक है, जिससे शहर के सांस्कृतिक, सामाजिक और प्रशासनिक जीवन में नई ऊर्जा आएगी।
 जिलाधिकारी रविश गुप्ता का बयान — “संपत्ति की रक्षा होगी, हाईकोर्ट में जवाब दाखिल” इस प्रकरण पर जिलाधिकारी बस्ती श्री रविश गुप्ता ने कहा है कि “टाउनक्लब की संपत्ति की रक्षा हर हाल में की जाएगी।”उन्होंने बताया कि इस संपत्ति पर कुछ व्यक्तियों ने स्वामित्व का दावा किया है,जिसके प्रत्युत्तर में प्रशासन ने उच्च न्यायालय में विस्तृत जवाब दाखिल कर दिया है। डीएम गुप्ता ने स्पष्ट किया कि “कथित दावेदारों के दावों का पुरजोर विरोध न्यायालय में किया जाएगा।”
उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला सार्वजनिक संपत्ति और जनहित से जुड़ा है,
अतः शासन का उद्देश्य इस संपत्ति को किसी निजी स्वार्थ का केंद्र नहीं, बल्कि जनोपयोगी संस्थान के रूप में विकसित करना है।

 विवाद की जड़ — स्वामित्व के कागज़ात लापता,बीडीए के सूत्रों के अनुसार, टाउन क्लब के नाम से दर्ज भूमि की फाइलें वर्षों पुरानी हैं और कई बार विभागीय पुनर्गठन के कारण अभिलेख तितर-बितर हो गए। पूर्व में क्लब का संचालन एक सामाजिक संगठन या समिति द्वारा कथित रूप से किया जाता था, जो अब अस्तित्व में नहीं है।
नए प्रशासनिक ढाँचे में न तो समिति का पंजीकरण है और न ही उसका उत्तराधिकारी कोई संस्थान। इस अस्पष्टता का ही परिणाम है कि वर्तमान में कोई भी विभाग या संस्था अपने को इस संपत्ति का वास्तविक स्वामी घोषित नहीं कर पा रही है।नतीजतन, बीडीए द्वारा प्रस्तावित 20 करोड़ की परियोजना पर कार्य आरंभ नहीं हो पा रहा.
जहाँ प्रशासन कानूनी प्रक्रिया की प्रतीक्षा में है, वहीं जनप्रतिनिधि चाहते हैं कि शहर के हित में निर्माण कार्य शीघ्र आरंभ हो। राजेंद्र नाथ तिवारी के पत्र को स्थानीय विकास का एजेंडा माना जा रहा है,जबकि डीएम रविश गुप्ता का बयान संविधान और कानून के अनुपालन का प्रतीक है।
 अब आगे क्या? बीडीए सूत्रों के अनुसार, यदि उच्च न्यायालय से स्थिति स्पष्ट हो जाती है और संपत्ति पर किसी निजी स्वामित्व का दावा अस्वीकार होता है,
तो यहाँ पर एक आधुनिक बहुउद्देशीय नगर परिसर (Multi-Utility Urban Complex) बनाया जाएगा, जिसमें सम्मेलन कक्ष, पुस्तकालय, नागरिक सुविधा केंद्र, और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए सभागार शामिल होंगे।नगरवासियों की उम्मीद है कि यह स्थल पुनः बस्ती की पहचान बनेगा—जहाँ नागरिक, प्रशासन और जनप्रतिनिधि एक साथ मिलकर विकास की नई दिशा तय करेंगे।

“बस्ती टाउन क्लब” का विवाद केवल भूमि का नहीं, बल्कि शासन और सरकार की भूमिका के फर्क को भी रेखांकित करता है।जहाँ शासन (प्रशासन और न्यायपालिका) नियमों और वैधता के पक्ष में खड़ा है, वहीं सरकार (जनप्रतिनिधि और राजनीतिक नेतृत्व) जनहित और त्वरित विकास की मांग कर रही है। आने वाले दिनों में उच्च न्यायालय का निर्णय यह तय करेगा कि क्या यह संपत्ति एक बार फिर बस्ती के सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बनेगी, या फिर कानूनी उलझनों में उलझी रहेगी.तिवारी ने यह भी कहा कि यह प्रोजेक्ट बस्ती जिले की महत्वपूर्ण जनसुविधा परियोजनाओं में से एक है,जिससे शहर के सांस्कृतिक, सामाजिक और प्रशासनिक जीवन में नई ऊर्जा आएगी। जिलाधिकारी रविश गुप्ता का बयान — “संपत्ति की रक्षा होगी, हाईकोर्ट में जवाब दाखिल” इस प्रकरण पर जिलाधिकारी बस्ती श्री रविश गुप्ता ने कहा है कि “टाउन क्लब की संपत्ति की रक्षा हर हाल में की जाएगी।”
उन्होंने बताया कि इस संपत्ति पर कुछ व्यक्तियों ने स्वामित्व का दावा किया है,
जिसके प्रत्युत्तर में प्रशासन ने उच्च न्यायालय में विस्तृत जवाब दाखिल कर दिया है।
डीएम गुप्ता ने स्पष्ट किया कि “कथित दावेदारों के दावों का पुरजोर विरोध न्यायालय में किया जाएगा।”उन्होंने यह भी कहा कि यह मामला सार्वजनिक संपत्ति और जनहित से जुड़ा है,अतः शासन का उद्देश्य इस संपत्ति को किसी निजी स्वार्थ का केंद्र नहीं, बल्कि जनोपयोगी संस्थान के रूप में विकसित करना है।
 विवाद की जड़ — स्वामित्व के कागज़ात लापता, बीडीए के सूत्रों के अनुसार, टाउन क्लब के नाम से दर्ज भूमि की फाइलें वर्षों पुरानी हैं और कई बार विभागीय पुनर्गठन के कारण अभिलेख तितर-बितर हो गए।
पूर्व में क्लब का संचालन एक कथित सामाजिक संगठन या समिति द्वारा किया जाता था, जो अब अस्तित्व में नहीं है।नए प्रशासनिक ढाँचे में न तो समिति का पंजीकरण है और न ही उसका उत्तराधिकारी कोई संस्थान।

इस अस्पष्टता का ही परिणाम है कि वर्तमान में कोई भी विभाग या संस्था अपने को इस संपत्ति का वास्तविक स्वामी घोषित नहीं कर पा रही है।
नतीजतन, बीडीए द्वारा प्रस्तावित 20 करोड़ की परियोजना पर कार्य आरंभ नहीं हो पा रहा।




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Bottom Ad