अमेरिका के पतन का जिम्मेदार: एक बिगड़ैल शासक
संपादकीयआज जब दुनिया महामंदी की आहटों से कांप रही है, अमेरिका का झंडा फीका पड़ता नजर आ रहा है। एक समय विश्व का निर्विवाद स्वामी, जो लोकतंत्र का उपदेश देता और आर्थिक चमत्कार रचता था, आज अपनी ही नीतियों के जाल में उलझा हुआ है। इस पतन की कमान संभाले हुए हैं डोनाल्ड ट्रंप—एक ऐसा शासक, जो अपनी बिगड़ैल महत्वाकांक्षाओं से न केवल अमेरिका को खोखला कर रहा है, बल्कि वैश्विक व्यवस्था को भी ध्वस्त करने पर तुला हुआ है।विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार इस तथ्य को स्पष्ट रूप से उजागर करते हैं: ट्रंप की आक्रामक टैरिफ नीतियां, आप्रवासन पर कठोर रुख और विदेश नीति की अराजकता ने अमेरिका को अलग-थलग कर दिया है। यह मात्र संयोग नहीं कि 16% कच्चे तेल की कीमतों में उछाल और 66% भारतीय बाजारों पर असर के बीच ट्रंप की छवि एक लालची व्यापारी की तरह उभर रही है, जो राष्ट्र को अपनी जेब भरने का साधन बनाए हुए है।
ट्रंप का उदय अमेरिका के पतन का प्रतीक मात्र नहीं, बल्कि उसका उत्प्रेरक है। जब उन्होंने 2015 में राष्ट्रपति पद की दौड़ में कूदना शुरू किया, तब से अमेरिकी समाज में फूट पड़ गई। उनके कार्यकाल में आर्थिक वृद्धि तो दिखाई दी, लेकिन वह महज सतही थी—मध्यम वर्ग की आय में वृद्धि के बावजूद, महंगाई और कार्यबल भागीदारी में गिरावट ने असली चित्र उजागर कर दिया।ट्रंप की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति ने वैश्विक व्यापार को युद्ध का मैदान बना दिया। चीन के साथ व्यापार युद्ध ने अमेरिकी उपभोक्ताओं पर बोझ डाला, जबकि यूरोपीय सहयोगियों को धमकियां देकर नाटो जैसी संस्थाओं को कमजोर किया। परिणामस्वरूप, अमेरिका की सॉफ्ट पावर—जो कभी दुनिया को आकर्षित करती थी—आज हास्यास्पद लगने लगी है। विदेश नीति विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप की नीतियां अमेरिका को अलगाववाद की ओर धकेल रही हैं, जहां चीन और रूस जैसे प्रतिद्वंद्वी मजबूत हो रहे हैं। संलग्नक में वर्णित तेल कीमतों का उछाल इसी का प्रमाण है: ट्रंप की ईरान पर तेल प्रतिबंधों ने वैश्विक ऊर्जा बाजार को अस्थिर किया, जिसका खामियाजा भारत जैसे उभरते देशों को भुगतना पड़ रहा है।
ट्रंप को एक बिगड़ैल शासक कहना अतिशयोक्ति नहीं। उनका शासन लालच, अज्ञानता और लज्जाहीनता का मिश्रण है—वही गुण जो अमेरिका ने दशकों तक दुनिया को निर्यात किए। कोविड-19 महामारी के दौरान हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन जैसी अवैज्ञानिक सलाह से उन्होंने स्वास्थ्य प्रणाली को ध्वस्त किया, जबकि अमीरों को लाभ पहुंचाने वाली कर कटौतियों ने असमानता को चरम पर पहुंचा दिया। आप्रवासन नीति में अवैध प्रवासियों को हथकड़ी लगाकर वापस भेजना—जैसा कि संलग्नक में कोलंबिया के उदाहरण से स्पष्ट है—न केवल मानवीय संकट पैदा करता है, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी क्षति पहुंचाता है। ट्रंप की टैरिफ नीति ने खुद अमेरिका को नुकसान पहुंचाया: 10% से अधिक शुल्कों ने बाजारों को गिराया और विश्व व्यापार संगठन के नियमों का उल्लंघन किया। परिणाम? अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी की ओर अग्रसर है, जबकि चीन ने कूटनीतिक लाभ उठाया। यह नीतियां न केवल आर्थिक हैं, बल्कि सांस्कृतिक भी—ट्रंप ने नस्लवाद और विभाजन को बढ़ावा दिया, जिससे अमेरिका 'तीसरी दुनिया' जैसा लगने लगा।
भारत के संदर्भ में यह पतन चिंताजनक है। संलग्नक में उल्लिखित 66% भारतीय बाजारों पर असर ट्रंप की नीतियों का प्रत्यक्ष प्रमाण है। वह भारत को चीन-विरोधी मोर्चे पर सहयोगी मानते थे, लेकिन अब टैरिफ और व्यापार दबाव से रिश्ते खराब हो रहे हैं।ट्रंप का भ्रष्टाचार—व्यापारिक सौदों में निजी लाभ—अमेरिका की विश्वसनीयता को धूमिल कर रहा है, जिसका असर भारत जैसे देशों पर पड़ रहा है जो ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार मार्गों पर निर्भर हैं। यदि ट्रंप की यह अराजकता जारी रही, तो अमेरिका का पतन अपरिवर्तनीय हो जाएगा—एक साम्राज्य जो अपनी ही महत्वाकांक्षाओं से ढह रहा है।
ट्रंप का मंत्र 'अमेरिका को फिर से महान बनाना' खोखला है। वास्तव में, वह पतन को तेज कर रहे हैं। दुनिया को अब अमेरिका से उम्मीदें कम हैं; उभरते देश जैसे भारत को अवसर मिल सकता है, लेकिन वैश्विक अस्थिरता सबके लिए खतरा है। अमेरिकी जनता को जागना होगा—ट्रंप जैसे शासक इतिहास की भूल हैं, जिन्हें सुधारना आवश्यक है। अन्यथा, 'शाइनिंग सिटी ऑन ए हिल' एक कंकाल बनकर रह जाएगी।
संपादक

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