दिल्ली की साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में छात्रा के साथ हुए यौन अपराध की घटना ने पूरे समाज को झकझोर दिया है। देश की राजधानी में ऐसी बर्बरता के बाद सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर यौन अपराध क्यों नहीं रुकते? क्या हमारी भारतीय दंड संहिता—चाहे वो पुरानी आईपीसी हो या नई BNS (भारतीय न्याय संहिता)—के प्रावधान प्रभावहीन सिद्ध हो रहे हैं? क्यों आधुनिक भारत में कौटिल्य की तेज दंडनीति या अहिल्या बाई के कठोर फैसलों की जरूरत महसूस होती है? अपराधियों के माथे पर गरम सरिया दागने जैसी पुरातन सज़ा न केवल चेतावनी है, बल्कि समाज में भय का भी संचार करती है। ऐसा करने से अपराध भी कम होंगे और अपराधियों का मनोबल भी टूटेगा—मानवाधिकार संगठनों के विरोध की चिंता किए बगैर मोदी सरकार को महिलाओं को अभय देना ही चाहिए।
अपराध-नियंत्रण की विफलताहाल ही की घटना यह दर्शाती है कि राज्य, न्याय-व्यवस्था और पुलिस—तीनों स्तरों पर यौन अपराध रोकने में गंभीर विफलता है।सख्त कानून बनाना पर्याप्त नहीं, उनका त्वरित और डराने वाला क्रियान्वयन जरूरी है।अपराधी निडर हैं क्योंकि उन्हें कानून या दंड का कोई भय नहीं है, पीड़िता बार-बार न्याय के लिए जूझ रही है।कौटिल्य-अहिल्या दंडनीति: क्यों जरूरी?कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में स्पष्ट किया था—‘दंड सिर्फ अपराध की सजा नहीं, बल्कि भविष्य के अपराध का भय पैदा करता है’।अहिल्या बाई ने अपने शासनकाल में महिलाओं की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी, और अपराधियों को कठोर सज़ा दी जाती थी ताकि अपराधियों का दुस्साहस टूटे।
अपराधियों के माथे पर गरम सरिया से दागना—ऐसा क्रूर लेकिन प्रभावशाली संदेश है कि समाज में महिलाएं असुरक्षित नहीं, बल्कि अपराधियों को भयभीत किया जाएगा।आधुनिक दंड संहिता: असरहीन क्यों?आईपीसी और नई BNS संहिता में प्रावधान तो सख्त हुए हैं, पर व्यावहारिक रूप से सुनवाई और सजा सालों तक लटक जाती है, अपराधियों का मनोबल बढ़ता है।अदालतों में लंबा इंतजार, गवाहों का डर, पुलिस की लचर कार्रवाई—यौन अपराधियों की सजा की दर बहुत कम है।मानवाधिकार के नाम पर अपराधियों के लिए चिंता, पर पीड़िताओं के लिए त्वरित न्याय क्यों नहीं?प्रवृतियाँ बदलें: मोदी सरकार से आग्रहमोदी सरकार को चाहिए कि दंड प्रक्रिया को और भयावह बना दें, न्यायिक प्रक्रिया को तेज एवं निष्पक्ष करें।मानवाधिकार तर्क छोड़ें, महिलाओं के लिए अभय-भावना, निर्भीकता का वातावरण आवश्यक है।अपराधी के मन में कानून नहीं, दंड का भय होना चाहिए—यानी अदालत के बाहर ही उसका सामाजिक बहिष्कार, गरम सरिया से दागना जैसे सार्वजनिक दंड की व्यवस्था बनाई जाए।
सम्पादकीय सन्देशयौन अपराधियों को डराने के लिए अब सिर्फ कानून की किताब की जरूरत नहीं, बल्कि समाज को कौटिल्य और अहिल्या बाई की दंड नीति अपनानी होगी। अपराधियों के माथे पर गरम सरिया दागने का दंड भले अमानवीय लगे, पर महिलाओं के लिए सुरक्षा और अपराधियों के मनोबल को तोड़ने का यही सही तरीका है। सरकार को चाहिए कि मानवाधिकार संगठनों की चिंता छोड़, देश की आधी आबादी को अभय-भाव से जीने का अधिकार मिले।
मोदी जी, कानून की धाराओं में फंसी निर्भया को अब और न्याय दिलाएं—कौटिल्य की नीति लागू करें, न्याय का डर लौटाएं।नोट: यह सम्पादकीय शैली का लेख है, जिसमें सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से कठोर दंड नीति का समर्थन किया गया है। वास्तविक कानूनी बदलाव और मानवाधिकारों का सम्मान आवश्यक है, परन्तु विवादों और ज्वलंत समाज-संदेश के लिए यह भाषा एवं विचार हैं।

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