बाबरी-स्टाइल मस्जिद विवाद, ममता बनर्जी की नई राजनीति, केंद्र की भूमिका, कांग्रेस का तटस्थवाद, और 2026 के पश्चिम बंगाल चुनाव—सभी का गहन मूल्यांकन
बाबरी-स्टाइल मस्जिद की नींव, ममता का नया पैंतरा, केंद्र की ‘सावधानीभरी चुप्पी ’ और कांग्रेस का तटस्थवाद:
2026 पश्चिम बंगाल की राजनीति का उफान
आज पश्चिम बंगाल—भारत की राजनीति का वह प्रदेश, जहाँ सत्ता केवल चुनाव से नहीं बदलती, बल्कि मनोविज्ञान, सामाजिक समूहों की स्मृतियों, धार्मिक प्रतीकों और राजनीतिक घटनाओं की धड़कनों से प्रभावित होती है। 2026 का चुनाव केवल एक "राज्य चुनाव" नहीं होगा; यह बंगाल की पहचान, हिंदुत्व बनाम सेक्युलर राष्ट्रवाद की टक्कर, ममता बनर्जी की अस्तित्व-युद्ध, भाजपा की अवसर-राजनीति और कांग्रेस–वाम के तटस्थवाद का जटिल समीकरण है। इस पृष्ठभूमि में “बाबरी स्टाइल मस्जिद की नींव” का मुद्दा फिर सामने आ गया—सवाल यह है कि क्या यह महज एक धार्मिक निर्माण का विषय है, या यह 2026 से पहले बंगाल के वोट-ध्रुवीकरण का सबसे बड़ा राजनीतिक औजार बनने जा रहा है?
बाबरी-स्टाइल मस्जिद: बंगाल की राजनीति को कितना हिलाती है? 1992 की वह घटना—जो पूरे देश में सांप्रदायिक राजनीति की रीढ़ बन गई—आज 2026 में बंगाल की राजनीति के केंद्र में कैसे लौट आई? राजनीतिक उद्देश्य क्या है? तृणमूल कांग्रेस इसे "अल्पसंख्यक असुरक्षा" के राजनीतिक निर्माण के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।भाजपा इसे "हिंदू स्मृति के फ्रेम में रखकर चुनाव-पूर्व वातावरण गरम कर सकती है। कांग्रेस–वाम चुपचाप तटस्थ–अस्पष्ट रुख रखेंगे, ताकि दोनों धड़ों के क्रॉस-वोट उनसे दूर न जाएँ। बाबरी-स्टाइल मस्जिद के प्रतीक की भयावहता बंगाल में मुसलमान आबादी लगभग 27–30% है। उनके बीच बाबरी की स्मृति आज भी राजनीतिक चेतना का हिस्सा है। इसलिए मस्जिद की नींव का मुद्दा “पीड़ित भाव” को पुनर्जीवित करता है।
भाजपा का अंतर्विरोध,भाजपा इस मुद्दे पर:एक ओर राम मंदिर विजय को राष्ट्रीय उपलब्धि बताती है,दूसरी ओर बंगाल में यही मुद्दा उसे तेजी से ध्रुवीकरण का अवसर देता है।इसलिए बाबरी-स्टाइल मस्जिद का उठना भाजपा के लिए दोधारी तलवार नहीं—बल्कि एक अत्यधिक लाभकारी चुनावी कथा है।cममता बनर्जी: मुसलमान राजनीति की ‘नई नींव’, ममता बनर्जी के लिए 2026 का चुनाव “सत्ता की रक्षा” से भी अधिक—स्वयं की प्रासंगिकता की रक्षा है। उनकी राजनीतिक रणनीति तीन दिशाओं में चलती दिख रही है: अल्पसंख्यक नेतृत्व को पुनर्स्थापित करना,साल 2021 के बाद से बंगाल के मुसलमान वोटों में कुछ स्थानों पर असंतोष दिखा है—विशेषकर युवक और ग्रामीण क्षेत्रों में। इस संदर्भ में बाबरी स्टाइल मस्जिद का समर्थन या उसके पक्ष में खड़े होना: ममता को “अल्पसंख्यक-हितैषी चेहरा” बनाए रखेगा,AIMIM या स्थानीय मुस्लिम दलों की घुसपैठ रोकेगा,
भाजपा का हिंदुत्व नैरेटिव काटने में मदद देगा,भाजपा द्वारा “Hindu fear” निर्माण को निष्क्रिय करने की कोशिश,ममता को पता है कि भाजपा का बंगाल में मुख्य अभियान यह होगा कि—“TMC मुस्लिम appeasement करती है।”
इसलिए TMC दूसरी तरफ सॉफ्ट-हिंदू टच भी बनाए रख रही है—काली पूजा, दुर्गा विसर्जन, नाम-स्मरण, मंदिर अनुदान आदि।ममता बनर्जी का व्यक्तिगत करिश्मा
बंगाल में व्यक्तिगत नेतृत्व शक्तिशाली है।ममता चाहती हैं कि चुनाव 2026 “Didi vs Delhi” बने।
केंद्र सरकार की ‘सावधानीभरी चुप्पी ’: क्यों चुप है दिल्ली?,इस विषय पर केंद्र—विशेषकर केंद्रीय गृह मंत्रालय—साफ बोलने से बच रहा है। कारण: हिंदू–मुस्लिम प्रश्न को बंगाल की जमीन पर पकने देना चुनाव करीब हैं। केंद्र कोई बहुत मजबूत टिप्पणी करता है, तो ममता “बाहरी हस्तक्षेप” का नैरेटिव बनाएँगी,अल्पसंख्यक वोट और ज्यादा ध्रुवीकृत होंगे,इसलिए केंद्र ने रणनीतिक चुप्पी अपनाई है।
भाजपा को राजनीतिक लाभ::जब केंद्र बोलता है, तो वह “कानूनी/प्रशासनिक” रूप में बोलता है। जब वह चुप रहता है, तो राजनीतिक आग BJP के लिए बढ़ती है, उसे मैदान मिलता है। 2026–2029 का रोडमैप,भाजपा की बड़ी रणनीति है— "2029 लोकसभा में बंगाल से 30+ सीटें" इसलिए केंद्र नहीं चाहता कि अभी से TMC को “शिकार” का ठप्पा मिले।
कांग्रेस का तटस्थवाद — बंगाल में अस्तित्व बचाओ राजनीति, कांग्रेस बंगाल में 2026 के चुनाव में तीसरी या चौथी पंक्ति का खिलाड़ी है।
उसकी रणनीति है स्पष्ट पक्ष न लेनाcक्योंकि: यदि वह मुसलमानों के पक्ष में बोले, तो TMC के वोट उसे नहीं आएँगे। यदि वह भाजपा के कथन का समर्थन करे, तो उसका बचा-खुचा अल्पसंख्यक वोट भी समाप्त हो जाएगा। "नरम सेक्युलरिज़्म" की रणनीति,कांग्रेस समझती है कि बंगाल में मुसलमान TMC के साथ रहना चाहते हैं,
और हिंदू भाजपा के साथ। इसलिए वह “मध्य पट्टी” पकड़ने की कोशिश कर रही है—
लेकिन यह वोट बैंक बहुत छोटा है,नेतृत्व का संकट भी बड़ा हैं-राहुल–ममता–लेफ्ट—इन तीनों की आपसी रसायन इतनी जटिल है कि कांग्रेस अकेले ही “तटस्थ” रहकर अपनी राजनीतिक पहचान बचाने की कोशिश में है।vपरंतु 2026 में यह रणनीति राजनीतिक आत्महत्या भी साबित हो सकती है।
2026 चुनाव: क्या ध्रुवीकरण निर्णायक होगा? भाजपा का गणित,भाजपा का लक्ष्य है—ग्रामीण हिंदू वोट,मतुआ,पहाड़ी क्षेत्रों के हिंदू युवा हिंदू,उत्पीड़ित वर्ग (SC/ST/OBC) बाबरी-स्टाइल मस्जिद का मुद्दा भाजपा की दृष्टि मेंc“पश्चिम बंगाल का अयोध्या-2.0” बन सकता है। TMC का गणित,TMC को चाहिए—90% मुस्लिम वोट,60% से अधिक ग्रामीण महिला वोट (लक्ष्मी भंडार, शिक्षा, स्वास्थ्य सहायता के आधार पर),वामपंथी विभाजित वोट,यदि मुस्लिम वोट 10–15% भी टूटे,तो TMC को भारी नुकसान होगा।
कांग्रेस–वाम का खेल,उनकी भूमिका सीधे शासन में आने की नहीं—बल्कि किसेcहराना है और किसे रोकना है इसका खेल है।2026 में वे TMC को नुकसान पहुँचाएँगे,और इसका लाभ भाजपा को मिलेगा।
क्या बाबरी-स्टाइल मस्जिद बंगाल में “याद” जगाकर चुनाव पलट देगी?
उत्तर है—हाँ, बहुत हद तक।इसके कारण: स्मृति-राजनीति हिंदुओं में राम मंदिर का गर्व, मुसलमानों में बाबरी का जख्म—दोनों को राजनीतिक दल सक्रिय करेंगे।
पहचान-आधारित वोटिंग बढ़ेगी,भारत में चुनाव विकास से नहीं,
पहचान से तय होते हैं। यह मुद्दा दोनों पहचान समूहों को उभारता है।
बंगाल का राजनीतिक मानस बदल चुका है,
यह वह बंगाल नहीं रहा जहाँ कम्युनिस्ट “धर्मनिरपेक्षता” की अस्थि का ढांचा थामे हुए थे।अब मामला साफ है: TMC = मुस्लिम झुकाव,BJP = हिंदू झुकाव
चुनाव 2026 का मोटा अनुमान (Political Forecast)
राजनीतिक रुझानों, जनसांख्यिकी और मौजूदा विवादों पर आधारित)
TMC: 130–150 सीटें (यदि मुस्लिम वोट 90% यथावत रहा)
BJP: 110–125 सीटें (यदि हिंदू ध्रुवीकरण 2019 जैसे स्तर पर हुआ)
Left + Congress: 10–15 सीटें,यदि मस्जिद विवाद लंबा चलता है,
और मुस्लिम वोट 10–15% TMC से अलग हुआ,तो परिणाम उलट सकते हैं:
BJP: 140–160 सीटें,TMC: 100–120 सीटें
“बाबरी स्टाइल मस्जिद” का मुद्दा बंगाल की राजनीति को
अचानक, तेज़ और गहरे ध्रुवीकरण की ओर धकेल रहा है।
ममता इसे “अल्पसंख्यक की सुरक्षा” बताएँगी।
भाजपा इसे “हिंदू अभिमान बनाम तुष्टिकरण ” का मुद्दा बनाएगी।
केंद्र रणनीतिक चुप्पी रखेगा।
कांग्रेस तटस्थता का चोगा पहनकर भी अंतिम दौड़ में अप्रासंगिक हो जाएगी।वह लकवाग्रस्त है, 2026 का बंगाल चुनाव अब विकास बनाम पहचान नहीं,
बल्कि पहचान बनाम पहचान में बदल चुका है।और इसमें बाबरी-स्टाइल मस्जिद की नई नींव—बंगाल की राजनीति की अगली बड़ी हलचल बन चुकी है।
बंगाल मे जो कुछ भी होरहा वह सोची समझी ममता क़े रणनीति का हिस्सा है, उसे ममता की छाँव अवश्य मिलेगी.
बाबरी-स्टाइल मस्जिद की नींव, ममता का नया पैंतरा, केंद्र की ‘सावधानीभरी चुप्पी ’ और कांग्रेस का तटस्थवाद:
2026 पश्चिम बंगाल की राजनीति का उफान
आज पश्चिम बंगाल—भारत की राजनीति का वह प्रदेश, जहाँ सत्ता केवल चुनाव से नहीं बदलती, बल्कि मनोविज्ञान, सामाजिक समूहों की स्मृतियों, धार्मिक प्रतीकों और राजनीतिक घटनाओं की धड़कनों से प्रभावित होती है। 2026 का चुनाव केवल एक "राज्य चुनाव" नहीं होगा; यह बंगाल की पहचान, हिंदुत्व बनाम सेक्युलर राष्ट्रवाद की टक्कर, ममता बनर्जी की अस्तित्व-युद्ध, भाजपा की अवसर-राजनीति और कांग्रेस–वाम के तटस्थवाद का जटिल समीकरण है। इस पृष्ठभूमि में “बाबरी स्टाइल मस्जिद की नींव” का मुद्दा फिर सामने आ गया—सवाल यह है कि क्या यह महज एक धार्मिक निर्माण का विषय है, या यह 2026 से पहले बंगाल के वोट-ध्रुवीकरण का सबसे बड़ा राजनीतिक औजार बनने जा रहा है?
बाबरी-स्टाइल मस्जिद: बंगाल की राजनीति को कितना हिलाती है? 1992 की वह घटना—जो पूरे देश में सांप्रदायिक राजनीति की रीढ़ बन गई—आज 2026 में बंगाल की राजनीति के केंद्र में कैसे लौट आई? राजनीतिक उद्देश्य क्या है? तृणमूल कांग्रेस इसे "अल्पसंख्यक असुरक्षा" के राजनीतिक निर्माण के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।भाजपा इसे "हिंदू स्मृति के फ्रेम में रखकर चुनाव-पूर्व वातावरण गरम कर सकती है। कांग्रेस–वाम चुपचाप तटस्थ–अस्पष्ट रुख रखेंगे, ताकि दोनों धड़ों के क्रॉस-वोट उनसे दूर न जाएँ। बाबरी-स्टाइल मस्जिद के प्रतीक की भयावहता बंगाल में मुसलमान आबादी लगभग 27–30% है। उनके बीच बाबरी की स्मृति आज भी राजनीतिक चेतना का हिस्सा है। इसलिए मस्जिद की नींव का मुद्दा “पीड़ित भाव” को पुनर्जीवित करता है।
भाजपा का अंतर्विरोध,भाजपा इस मुद्दे पर:एक ओर राम मंदिर विजय को राष्ट्रीय उपलब्धि बताती है,दूसरी ओर बंगाल में यही मुद्दा उसे तेजी से ध्रुवीकरण का अवसर देता है।इसलिए बाबरी-स्टाइल मस्जिद का उठना भाजपा के लिए दोधारी तलवार नहीं—बल्कि एक अत्यधिक लाभकारी चुनावी कथा है।cममता बनर्जी: मुसलमान राजनीति की ‘नई नींव’, ममता बनर्जी के लिए 2026 का चुनाव “सत्ता की रक्षा” से भी अधिक—स्वयं की प्रासंगिकता की रक्षा है। उनकी राजनीतिक रणनीति तीन दिशाओं में चलती दिख रही है: अल्पसंख्यक नेतृत्व को पुनर्स्थापित करना,साल 2021 के बाद से बंगाल के मुसलमान वोटों में कुछ स्थानों पर असंतोष दिखा है—विशेषकर युवक और ग्रामीण क्षेत्रों में। इस संदर्भ में बाबरी स्टाइल मस्जिद का समर्थन या उसके पक्ष में खड़े होना: ममता को “अल्पसंख्यक-हितैषी चेहरा” बनाए रखेगा,AIMIM या स्थानीय मुस्लिम दलों की घुसपैठ रोकेगा,
भाजपा का हिंदुत्व नैरेटिव काटने में मदद देगा,भाजपा द्वारा “Hindu fear” निर्माण को निष्क्रिय करने की कोशिश,ममता को पता है कि भाजपा का बंगाल में मुख्य अभियान यह होगा कि—“TMC मुस्लिम appeasement करती है।”
इसलिए TMC दूसरी तरफ सॉफ्ट-हिंदू टच भी बनाए रख रही है—काली पूजा, दुर्गा विसर्जन, नाम-स्मरण, मंदिर अनुदान आदि।ममता बनर्जी का व्यक्तिगत करिश्मा
बंगाल में व्यक्तिगत नेतृत्व शक्तिशाली है।ममता चाहती हैं कि चुनाव 2026 “Didi vs Delhi” बने।
केंद्र सरकार की ‘सावधानीभरी चुप्पी ’: क्यों चुप है दिल्ली?,इस विषय पर केंद्र—विशेषकर केंद्रीय गृह मंत्रालय—साफ बोलने से बच रहा है। कारण: हिंदू–मुस्लिम प्रश्न को बंगाल की जमीन पर पकने देना चुनाव करीब हैं। केंद्र कोई बहुत मजबूत टिप्पणी करता है, तो ममता “बाहरी हस्तक्षेप” का नैरेटिव बनाएँगी,अल्पसंख्यक वोट और ज्यादा ध्रुवीकृत होंगे,इसलिए केंद्र ने रणनीतिक चुप्पी अपनाई है।
भाजपा को राजनीतिक लाभ::जब केंद्र बोलता है, तो वह “कानूनी/प्रशासनिक” रूप में बोलता है। जब वह चुप रहता है, तो राजनीतिक आग BJP के लिए बढ़ती है, उसे मैदान मिलता है। 2026–2029 का रोडमैप,भाजपा की बड़ी रणनीति है— "2029 लोकसभा में बंगाल से 30+ सीटें" इसलिए केंद्र नहीं चाहता कि अभी से TMC को “शिकार” का ठप्पा मिले।
कांग्रेस का तटस्थवाद — बंगाल में अस्तित्व बचाओ राजनीति, कांग्रेस बंगाल में 2026 के चुनाव में तीसरी या चौथी पंक्ति का खिलाड़ी है।
उसकी रणनीति है स्पष्ट पक्ष न लेनाcक्योंकि: यदि वह मुसलमानों के पक्ष में बोले, तो TMC के वोट उसे नहीं आएँगे। यदि वह भाजपा के कथन का समर्थन करे, तो उसका बचा-खुचा अल्पसंख्यक वोट भी समाप्त हो जाएगा। "नरम सेक्युलरिज़्म" की रणनीति,कांग्रेस समझती है कि बंगाल में मुसलमान TMC के साथ रहना चाहते हैं,
और हिंदू भाजपा के साथ। इसलिए वह “मध्य पट्टी” पकड़ने की कोशिश कर रही है—
लेकिन यह वोट बैंक बहुत छोटा है,नेतृत्व का संकट भी बड़ा हैं-राहुल–ममता–लेफ्ट—इन तीनों की आपसी रसायन इतनी जटिल है कि कांग्रेस अकेले ही “तटस्थ” रहकर अपनी राजनीतिक पहचान बचाने की कोशिश में है।vपरंतु 2026 में यह रणनीति राजनीतिक आत्महत्या भी साबित हो सकती है।
2026 चुनाव: क्या ध्रुवीकरण निर्णायक होगा? भाजपा का गणित,भाजपा का लक्ष्य है—ग्रामीण हिंदू वोट,मतुआ,पहाड़ी क्षेत्रों के हिंदू युवा हिंदू,उत्पीड़ित वर्ग (SC/ST/OBC) बाबरी-स्टाइल मस्जिद का मुद्दा भाजपा की दृष्टि मेंc“पश्चिम बंगाल का अयोध्या-2.0” बन सकता है। TMC का गणित,TMC को चाहिए—90% मुस्लिम वोट,60% से अधिक ग्रामीण महिला वोट (लक्ष्मी भंडार, शिक्षा, स्वास्थ्य सहायता के आधार पर),वामपंथी विभाजित वोट,यदि मुस्लिम वोट 10–15% भी टूटे,तो TMC को भारी नुकसान होगा।
कांग्रेस–वाम का खेल,उनकी भूमिका सीधे शासन में आने की नहीं—बल्कि किसेcहराना है और किसे रोकना है इसका खेल है।2026 में वे TMC को नुकसान पहुँचाएँगे,और इसका लाभ भाजपा को मिलेगा।
क्या बाबरी-स्टाइल मस्जिद बंगाल में “याद” जगाकर चुनाव पलट देगी?
उत्तर है—हाँ, बहुत हद तक।इसके कारण: स्मृति-राजनीति हिंदुओं में राम मंदिर का गर्व, मुसलमानों में बाबरी का जख्म—दोनों को राजनीतिक दल सक्रिय करेंगे।
पहचान-आधारित वोटिंग बढ़ेगी,भारत में चुनाव विकास से नहीं,
पहचान से तय होते हैं। यह मुद्दा दोनों पहचान समूहों को उभारता है।
बंगाल का राजनीतिक मानस बदल चुका है,
यह वह बंगाल नहीं रहा जहाँ कम्युनिस्ट “धर्मनिरपेक्षता” की अस्थि का ढांचा थामे हुए थे।अब मामला साफ है: TMC = मुस्लिम झुकाव,BJP = हिंदू झुकाव
चुनाव 2026 का मोटा अनुमान (Political Forecast)
राजनीतिक रुझानों, जनसांख्यिकी और मौजूदा विवादों पर आधारित)
TMC: 130–150 सीटें (यदि मुस्लिम वोट 90% यथावत रहा)
BJP: 110–125 सीटें (यदि हिंदू ध्रुवीकरण 2019 जैसे स्तर पर हुआ)
Left + Congress: 10–15 सीटें,यदि मस्जिद विवाद लंबा चलता है,
और मुस्लिम वोट 10–15% TMC से अलग हुआ,तो परिणाम उलट सकते हैं:
BJP: 140–160 सीटें,TMC: 100–120 सीटें
“बाबरी स्टाइल मस्जिद” का मुद्दा बंगाल की राजनीति को
अचानक, तेज़ और गहरे ध्रुवीकरण की ओर धकेल रहा है।
ममता इसे “अल्पसंख्यक की सुरक्षा” बताएँगी।
भाजपा इसे “हिंदू अभिमान बनाम तुष्टिकरण ” का मुद्दा बनाएगी।
केंद्र रणनीतिक चुप्पी रखेगा।
कांग्रेस तटस्थता का चोगा पहनकर भी अंतिम दौड़ में अप्रासंगिक हो जाएगी।वह लकवाग्रस्त है, 2026 का बंगाल चुनाव अब विकास बनाम पहचान नहीं,
बल्कि पहचान बनाम पहचान में बदल चुका है।और इसमें बाबरी-स्टाइल मस्जिद की नई नींव—बंगाल की राजनीति की अगली बड़ी हलचल बन चुकी है।
बंगाल मे जो कुछ भी होरहा वह सोची समझी ममता क़े रणनीति का हिस्सा है, उसे ममता की छाँव अवश्य मिलेगी.
राजेंद्र नाथ तिवारी-टीम कौटिल्य

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