वन्दे मातरम्: अनसुनी गाथा एक राष्ट्रजागरण कीवन्दे मातरम् भारतीय स्वाधीनता संग्राम का प्रथम उद्घोष मात्र नहीं, अपितु सांस्कृतिक पुनरुत्थान का प्रतीक है। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय की कलम से ७ नवम्बर १८७५ को अक्षय नवमी के पावन दिवस पर उद्भूत यह रचना ब्रिटिश ‘गॉड सेव द क्वीन’ फरमान के विरुद्ध स्वाभिमान की प्रतीकात्मक प्रतिक्रिया थी।
संस्कृतोक्त बंगाली पद्यों में रचित यह गीत आनन्दमठ उपन्यास (१८८२) में समाहित होकर राष्ट्रचेतना का स्रोत बन उठा।रचयिता: बंकिमचन्द्र का जीवन-चरित्रबंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (२६ जून १८३८ - ८ अप्रैल १८९४) बंगाली साहित्य के पितामह एवं आधुनिक राष्ट्रवाद के प्रणेता थे। प्रेसीडेंसी कालेज से १८५७ में प्रथम भारतीय के रूपेण बी.ए. प्राप्ति के पश्चात् डिप्टी मजिस्ट्रेट एवं बंगाल सचिवालय के पद सुशोभित करते हुए उन्होंने दुर्गेश्नन्दिनी (१८६५) जैसे प्रथम बंगाली उपन्यास रचे।
रायबहादुर एवं सी.आई.ई. उपाधियों से विभूषित यह विद्वान् ब्रिटिश सेवा में रहते हुए भी मातृभूमि-भक्ति का प्रतिपादन करता रहा।प्रथम गान एवं स्वतन्त्रता संग्राम में भूमिकावन्दे मातरम् प्रथम बार १८९६ कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा संगीतमय रूपेण गीतं भूत्वा राष्ट्रवादी आन्दोलन का उद्घोष बना। १८८६ अधिवेशन में हेमचन्द्र बन्दोपाध्याय ने प्रारम्भिक दो पद गाए, किन्तु टैगोर की स्वररचना ने इसे अमर कर दिया। ब्रिटिश प्रतिबन्धों के बावजूद सुभाषचन्द्र बोस ने आ.हि.फौज का मार्चिंग सॉन्ग बनाया, क्रान्तिकारियों का नारा गढ़ा।राष्ट्रगीत का विधिवत् मान्यतासंविधान सभा ने २४ जनवरी १९५० को वन्दे मातरम् को राष्ट्रगीत का दर्जा प्रदान किया, जनगणमन के समकक्ष सम्मान सहित। १९३७ में कांग्रेस कार्यसमिति ने प्रथम दो पद ग्रहीत्वा धार्मिक संवेदनशीलता का ध्यान रखा। विष्णुदिगम्बर पलुस्कर ने १९१५ से कांग्रेस सत्रों में इसे गान कर लोकप्रियता प्रदान की।गीतार्थ एवं दार्शनिक महत्वसुजलां सुफलां मलयजशीतलां सस्यश्यामलां मातरम् — इति भारतमातरिं दुर्गा-लक्ष्मी-सरस्वती रूपेण चित्रयति। यह रचना भौगोलिक प्रेमान्तर् आध्यात्मिक भक्ति है, राष्ट्र को जीवन्त मातृरूपेण प्रतिपादयति। १५० वर्ष पूर्णत्व पर संसदीय चर्चा इसका शाश्वत् प्रासंगिकत्व दर्शयति।प्रधामंत्री ने वन्देमातरम को सहज सम्मान पुरे देश विशेषकर भावी पीढ़ी पर अपरमित उत्साह दिखाया है. वन्देमातरम एक मंत्र ही नहीं राष्ट्र जागरण क़े नव विहान की प्रेरणा की अमृत वाणी है.

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