कर्मयोगी देशबंधु नंदा नाथ का महाप्रयाण
हिंदी, हिंदुत्व और हिंदुस्तान के पुरोधा नहीं रहे
बस्ती।
पूरे पांच दशक तक बस्ती सहित आसपास के अग्रणी जिलों में हिंदुत्व की लौ जलाकर रखने वाले कर्मयोगी देशबंधु नंदा नाथ अब हमारे बीच नहीं रहे। नाथ संप्रदाय में दीक्षित यह व्यक्तित्व किसी एक व्यक्ति का नाम नहीं, बल्कि एक संस्था, एक संघर्ष और एक विचार का प्रतीक थे।प्रशासन हो या सत्ता—अपने सिद्धांतों से समझौता करना उन्हें कभी मंजूर नहीं हुआ।विपरीत परिस्थितियों में भी लड़ जाना उनका स्वभाव था।हिंदुत्व और हिंदी की रक्षा में सदैव अग्रिम पंक्ति में— चाहे उसका मूल्य स्वयं की पीड़ा ही क्यों न हो
बस्ती की पहचान में उनकी सबसे ऊँची रेखा,अस्पताल चौराहा दुर्गा पूजा को भव्य स्वरूप देकर धार्मिक-सांस्कृतिक चेतना जगाई,प्रशासनिक मनमानी के विरुद्ध डटकर निडर प्रतिरोध का इतिहास रचा,समाज में नई सांस्कृतिक परंपराओं की स्थापना की,हिंदू स्वाभिमान को संगठित कर बस्ती को एक नई विचारधारा दी,उनके समर्थक उन्हें सम्मानपूर्वक “देशबंधु” और “लड़ाकू संत” कहकर पुकारते थे।
अंत से अनंत की यात्रा अचानक उनका खोलो उपवास शुरू होना…मानो सांसारिक अंत से अनंत की यात्रा का मौन प्रस्थान था।बस्ती जनपद के पिछले 50 वर्षों के इतिहास मेंनंदा नाथ की रेखा सबसे प्रखर और स्थायी मानी जाएगी।उनका जाना सिर्फ एक व्यक्ति का विदा नहीं—एक युग का अवसान है।
कौटिल्य का भारत परिवार की श्रद्धांजलि,हम, राजेंद्र तिवारी तिवारी एवं कौटिल्य का भारत समाचार पत्र परिवार,देशबंधु नंदा नाथ जी केविचारों, जिजीविषा और संघर्ष को सादर प्रणाम करते हैं।
ईश्वर उनकी आत्मा को चिरशांति दे।वे नक्षत्र बनकर,हिंदुत्व की दिशा में,हमारा मार्गदर्शन करते रहें।ॐ शांति।

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