भारत के नवनिर्माण की सही दिशा वही है जो अपनी सांस्कृतिक विरासत से संवाद करे और “अंत्योदय” के मौलिक विचार को समाज की नीति और चिंतन में केंद्रित रखे। आजादी के बाद से लेकर आज तक हमारे लिए विकास का अर्थ केवल भौतिक संसाधनों की उपलब्धता नहीं, बल्कि अंतिम व्यक्ति के कल्याण तक पहुंचना रहा है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद और उनके अंत्योदय दर्शन ने भारतीय विकास प्रक्रिया को आत्मिकता, सांस्कृतिकता और समावेशी दृष्टि दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “मन की बात” और विकसित भारत @2047 का संकल्प इसी सांस्कृतिक संवाद, अंतिम व्यक्ति की चिंता और भारतीयता के गौरव की पुष्टि है
.विरासत से संवाद का अर्थभारतीय संस्कृति में ‘विकास’ का अभिप्राय केवल नवीनता लाना नहीं है, बल्कि अपनी पारंपरिक जड़ों के साथ सक्रिय संवाद करते हुए आगे बढ़ना है। मध्यप्रदेश हो या काशी, विकास के साथ विरासत के संरक्षण को महत्ता दी जा रही है—राम वनगमन पथ, प्रयाग, अयोध्या, काशी, चित्रकूट जैसे सांस्कृतिक स्थलों के पुनरुद्धार और आधुनिक विकास-योजना का संगम इसी नीति का उदाहरण है.दीनदयाल उपाध्याय का अंत्योदय दर्शनपंडित दीनदयाल उपाध्याय ने जब अंत्योदय का विचार प्रस्तुत किया, तो उसका उद्देश्य केवल गरीब कल्याण नहीं था, बल्कि समाज की समग्र एकात्मता और अंतिम व्यक्ति के उत्थान को केंद्र में रखना था। उनका मानना था:

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