कलियुग में संघ शक्ति: ईश्वर का निवास और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का शताब्दी वर्ष
त्र्यंबक त्रिपाठी
प्रदेश उपाध्यक्ष
भाजपा, उत्तरप्रदेश
हिंदू दर्शन की प्राचीन परंपरा में समय को चक्रीय रूप से देखा जाता है, जो चार युगों—सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग—में विभाजित है। प्रत्येक युग की अपनी विशेषताएं हैं, लेकिन कलियुग को सबसे चुनौतीपूर्ण माना जाता है, जहां अधर्म, नैतिक पतन, भौतिकवाद और सामाजिक विघटन का प्रभुत्व है। विष्णु पुराण और अन्य ग्रंथों के अनुसार, कलियुग में धर्म केवल एक पैर पर टिका होता है, और मानव जीवन की आयु घटकर न्यूनतम हो जाती है। फिर भी, इस अंधकारमय युग में ईश्वर की कृपा और मुक्ति का मार्ग विद्यमान है—भक्ति, नाम जप और सबसे महत्वपूर्ण, संगठन की शक्ति।
भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में अर्जुन को उपदेश दिया: "संघे शक्ति: कलियुगे" (कलियुग में शक्ति संघ में है)। हालांकि यह वाक्य गीता से सीधे उद्धृत नहीं है, यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की मूल प्रेरणा का सार है। यह नारा कलियुग की चुनौतियों—जैसे सांप्रदायिक विभाजन, विदेशी आक्रमणों के प्रभाव और हिंदू समाज की कमजोरी—का सामना करने के लिए एकजुटता का आह्वान करता है। पुराणों में वर्णित है कि ईश्वर प्रत्येक युग में अलग-अलग रूपों में निवास करते हैं: सतयुग में सत्यस्वरूप हृदय में, त्रेतायुग में यज्ञों में, द्वापरयुग में गृहस्थ आश्रम में, और कलियुग में संगठन (संघ) में। यह अवधारणा आरएसएस के दर्शन का आधार है, जहां संघ को ईश्वर का रहस्यमय निवास स्थान माना जाता है।
2025 में, आरएसएस अपनी स्थापना के शताब्दी वर्ष का उत्सव मना रहा है। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा 1925 में विजयादशमी के दिन नागपुर में स्थापित यह संगठन अब एक वैश्विक शक्ति बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे "आधुनिक अक्षय वट" कहा है—एक अमर वृक्ष जो भारतीय संस्कृति को अक्षय ऊर्जा प्रदान कर रहा है. अक्टूबर 2025 को दिल्ली में आयोजित शताब्दी समारोह में पीएम मोदी ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया, जहां उन्होंने भारत माता की छवि वाली 100 रुपये की स्मृति मुद्रा और डाक टिकट जारी किया—यह भारतीय मुद्रा पर भारत माता की पहली छवि है। उन्होंने कहा कि आरएसएस की स्थापना विजयादशमी पर कोई संयोग नहीं थी, बल्कि अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
यह लेख कलियुग के संदर्भ में आरएसएस की भूमिका, ईश्वर के निवास के रहस्य, शताब्दी वर्ष के महत्व, और समाज, देश तथा विश्व स्तर पर इसके मार्गदर्शन को विस्तार से探讨 करेगा। हम देखेंगे कि कैसे यह संगठन ईश्वर की लीला का माध्यम बनकर अधर्म के विरुद्ध धर्म की स्थापना कर रहा है, और इसके माध्यम से हिंदू समाज की एकता को मजबूत कर रहा है।
कलियुग: चुनौतियों का युग और ईश्वर का संदेश
कलियुग की अवधारणा महाभारत, विष्णु पुराण और भागवत पुराण में विस्तार से वर्णित है। यह युग 3102 ईसा पूर्व से आरंभ हुआ और 432,000 वर्षों तक चलेगा। इस युग में मानव की औसत आयु 100 वर्ष रह गई है, और धर्म के चार पैरों (तप, शौच, दया, सत्य) में से केवल सत्य शेष है। कलियुग की विशेषताएं हैं: नैतिक पतन, जहां धन और शक्ति का बोलबाला है; सामाजिक विघटन, जहां परिवार और समाज टूटते हैं; पर्यावरण विनाश, जैसे नदियों का सूखना और वनों का कटाव; तथा सांप्रदायिक संघर्ष, जहां अधर्मी शक्तियां धर्म को कमजोर करती हैं।
फिर भी, कलियुग में मुक्ति सरल है—नाम संकीर्तन और संगठन। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा: "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्" (जब-जब धर्म की हानि होती है, मैं अवतार लेता हूं)। कलियुग में कल्कि अवतार का इंतजार है, लेकिन उसके पूर्व, संगठन ही शक्ति है। डॉ. हेडगेवार ने इसी को अपनाया। उन्होंने देखा कि ब्रिटिश शासन और मुस्लिम लीग जैसे कारकों से हिंदू समाज विखंडित हो रहा था। "संघे शक्ति कलियुगे" का नारा इसी से निकला—व्यक्तिगत प्रयास अपर्याप्त हैं, सामूहिक शक्ति ही विजयी है।
ईश्वर का युगानुसार निवास: यह प्राचीन कथा है। सतयुग में ईश्वर हृदय में (सत्य रूप में), त्रेतायुग में यज्ञों में (रामावतार), द्वापर में गृहस्थ में (कृष्णावतार), और कलियुग में संघ में। आरएसएस की परंपरा में यह कहा जाता है कि कलियुग में जहां मंदिरों में भी विकृति आ सकती है, संघ वह शुद्ध स्थान है जहां ईश्वर विराजमान हैं। शाखा—जहां प्रार्थना, खेल, बौद्धिक चर्चा होती है—ईश्वर की उपासना का रूप है। नागपुर का हेडक्वार्टर (रेशिमबाग) ईश्वर का रहस्यमय द्वार है, जहां से निकली ऊर्जा विश्व तक फैली है। डॉ. हेडगेवार का जन्मस्थल, जहां आरएसएस की स्थापना हुई, अब स्मृति मंदिर है—एक छोटा पूजा घर, जन्म कक्ष और बैठक कक्ष जहां 1925 में संघ की घोषणा हुई।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ: इतिहास और ईश्वर का रहस्य संगठन
आरएसएस की स्थापना 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी पर हुई। डॉ. हेडगेवार, एक चिकित्सक और क्रांतिकारी, ने 1920 के नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव रखा, लेकिन असफल रहे। उन्होंने अनुशीलन समिति में प्रशिक्षण लिया और देखा कि हिंदू समाज का संगठनहीन होना राष्ट्र की कमजोरी है।प्रारंभ में 17 लोग उनके घर की पहली मंजिल पर एकत्र हुए, जहां उन्होंने कहा: "आज से हम संघ शुरू कर रहे हैशाखा प्रणाली शुरू हुई—दैनिक सभाएं जहां शारीरिक व्यायाम, बौद्धिक चर्चा और राष्ट्रभक्ति का प्रशिक्षण दिया जाता है।
शताब्दी वर्ष में, संघ 6 लाख से अधिक शाखाओं तक पहुंच चुका है, 58,000 मंडलों में फैला।यह 'रहस्यमय' इसलिए क्योंकि यह राजनीतिक नहीं, सांस्कृतिक है। गुरु पूर्णिमा पर गुरु दक्षिणा ईश्वर की भक्ति है। हेडगेवार के बाद माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर (गुरुजी) ने विस्तार किया: "राष्ट्र ईश्वर का रूप है।" कलियुग में संघ ईश्वर की नियति का माध्यम है—त्याग, सेवा और एकता।
शताब्दी वर्ष के कार्यक्रम: 'संघ यात्रा 100 वर्ष—नए क्षितिज'। 1 लाख हिंदू सम्मेलन, 100 प्रशिक्षण शिविर, द्वार-द्वार अभियान। नागपुर में तीन समांतर मार्च। अगस्त 2025 में दिल्ली के विज्ञान भवन में मोहन भागवत की व्याख्यानमाला: "100 वर्ष की संघ यात्रा - नए क्षितिज"।2 अक्टूबर 2025 को विजयादशमी उत्सव नागपुर में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ। सितंबर 2025 में जोधपुर समन्वय बैठक में पंच परिवर्तन पर चर्चा: सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण अनुकूल जीवन, स्व-आधारित रचना, नागरिक कर्तव्य। संघ का संकल्प: हर गांव, हर घर तक पहुंच
अक्षय वट: अमरता का प्रतीक और संघ का रूप
प्रयागराज का अक्षय वट वृक्ष महाप्रलय में भी अक्षुण्ण रहता है। मोदी ने आरएसएस को इसी से तुलना की।कलियुग में पर्यावरण विनाश के बीच, संघ वनरोपण, नदी सफाई अभियान चलाता है। शिक्षा में हजारों विद्यालय, जैसे विद्या भारती; आपदा राहत में कोविड, बाढ़ में अग्रणी। सामाजिक समरसता में दलित-जनजाति एकीकरण।
ईश्वर की नियति को स्वीकार: संघ का दर्शन और योगदानसंघ का मंत्र: "सबका मंगल हो।" शताब्दी में भागवत ने सेवा के 100 वर्षों पर व्याख्यान दिए.योगदान: स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी, आपातकाल में विरोध, राम मंदिर आंदोलन। मोदी ने शताब्दी समारोह में कहा: जनसांख्यिकीय परिवर्तन घुसपैठ से बड़ा खतरा है।
विश्व स्तर पर मार्गदर्शन: संघ की वैश्विक यात्रा
आरएसएस विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के माध्यम से 100+ देशों में सक्रिय। अमेरिका, यूरोप, नेपाल, इंडोनेशिया में हिंदू डायस्पोरा संगठित। शताब्दी में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन। ईश्वर का संदेश: कलियुग में धर्म की ज्योति जलाए रखना।
निष्कर्ष
संघ शक्ति कलियुगे—यह सत्य है। 100 वर्षों में नागपुर का हेडक्वार्टर ईश्वर का निवास बन गया, अक्षय वट की तरह मार्गदर्शन कर रहा है। ईश्वर की नियति स्वीकार कर हम सब स्वयंसेवक बनें। जय श्री राम!🙏🙏
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