वन्देमातरम -दक्षिण क़े क्रांति सपूत( द्वात्रिंशत्) - कौटिल्य का भारत

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बुधवार, 10 दिसंबर 2025

वन्देमातरम -दक्षिण क़े क्रांति सपूत( द्वात्रिंशत्)

द्वात्रिंशत्श श्रृंखला 





हिमालयम समारम्भ यावद इंदु सरोवरम तम देव निर्मितम देशम  हिंदूस्थानम प्रक्षते 


अर्थात हिमालय से हिंद महासागर का जो क्षेत्रफल है वह हिंदुस्तान है और हिंदुस्तान का मूल मंत्र वंदे मातरम है और वंदे मातरम ही भारत की स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों की गायत्री भी वंदे मातरम है वंदे मातरम ने उत्तर दक्षिण दोनों का भेद समाप्त किया आज हम क्रांतिकारियों का वंदे मातरम पर क्या रोल रहा दक्षिण की चर्चा इस पर करेंगे बहुत-बहुत धन्यवाद

 भारत के क्रांतिकारी कभी भी किसी आपक्ष के क्रांतिकारी विचारक पत्रकार और वंदे मातरम: राष्ट्रवादी दृष्टिकोणप्रस्तावनादक्षिण भारत के क्रांतिकारी विचारक पत्रकारों ने स्वतंत्रता संग्राम में कलम को तलवार बनाकर ब्रिटिश साम्राज्यवाद का डटकर मुकाबला किया। 'वंदे मातरम' को उन्होंने मात्र गीत नहीं, अपितु राष्ट्र जागरण का शक्तिशाली प्रतीक बनाया, जो भाषाई विविधता के बावजूद दक्षिण से उत्तर तक एकता का सूत्र बांधता रहा। मद्रास प्रेसिडेंसी में 'द हिंदू', 'स्वदेशमित्रन' जैसे पत्रों ने राष्ट्रवाद की ज्वाला प्रज्वलित की, ब्रिटिश सेंसरशिप को चुनौती दी। 

दक्षिणी राष्ट्रवादी पृष्ठभूमि18वीं शताब्दी से तमिलनाडु में स्वतंत्रता आंदोलन की जड़ें गहरी थीं। ब्रिटिश शोषण के विरुद्ध दक्षिणी पत्रकारों ने स्थानीय भाषाओं में राष्ट्रवादी विचार फैलाए। 1905 के स्वदेशी आंदोलन में 'वंदे मातरम' मद्रास की सड़कों पर गूंजा, जहां पत्रिकाओं ने इसे जन-आंदोलन का केंद्र बनाया। विविध जातियों को एकजुट कर इन पत्रकारों ने द्रविड़ संस्कृति को राष्ट्रप्रेम से जोड़ा। प्रमुख क्रांतिकारी पत्रकारदक्षिण के ये वीर पत्रकार स्वतंत्रता के प्रहरी बने।जी. सुब्रह्मण्या अय्यर: 1878 में 'द हिंदू' के संस्थापक। ब्रिटिश न्याय की आलोचना कर स्वराज्य की मांग की, राष्ट्रद्रोह के आरोप में जेल गए। 

सुभ्रह्मण्यम भारती (महाकवि): तमिल कवि-पत्रकार, 'भारत मित्रन' एवं 'इंडिया' के संपादक। 'वंदे मातरम' को तमिल में अनुवादित कर दक्षिण में क्रांति फैलाई, सामाजिक सुधारक के रूप में प्रसिद्ध। भोगराजू पट्टाभि सीतारमैया: आंध्र के प्रखर पत्रकार, स्वतंत्रता जागरण फैलाया। कांग्रेस नेता के रूप में दक्षिणी राष्ट्रवाद मजबूत किया। सीताराम शास्त्री: क्रांतिकारी पत्रकारिता के प्रणेता, जिनकी लेखनी ने स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित किया। कस्तूरी रंगन आयंगर: 'द हिंदू' के संपादक, असहयोग आंदोलन समर्थक। 'वंदे मातरम' को एकता का प्रतीक बनाया।टी. प्रकाशम: 'स्वराज्य' पत्रिका चला कर मद्रास में क्रांतिकारी साहित्य प्रसारित किया।ये पत्रकार भूमिगत प्रेस से ब्रिटिश दमन का सामना करते रहे। 

वंदे मातरम का उद्भव और दक्षिणी स्वीकृतिबंकिमचंद्र का 1882 का गीत 'आनंदमठ' से निकला 'वंदे मातरम' दक्षिण में 1905 से प्रतीकात्मक शक्ति बना। भारती ने इसे तमिल में गाया, मद्रास सभाओं में गूंजा। ब्रिटिश ने इसे 'रैडिकल राष्ट्रवाद' कहा, पर दक्षिणी पत्रिकाओं ने इसे राष्ट्रीय गान घोषित किया। पत्रकारों द्वारा प्रचार और एकता निर्माण'द हिंदू' ने संपादकीयों में 'वंदे मातरम' प्रमुख किया, तमिल-तेलुगु अनुवाद छापे। भारती की पत्रिकाओं ने इसे स्कूलों-मंदिरों तक पहुंचाया, जाति भेद मिटाए। मुस्लिम-ईसाई समुदायों ने अपनाया, राष्ट्र एकता बनी। स्वदेशी मार्चों में यह नारा बना। 

ब्रिटिश दमन का सामनाप्रेस एक्ट 1910 से दक्षिणी पत्रिकाओं जब्त हुईं। अय्यर निर्वासित, भारती निर्वासन में रचे। जेलों से पत्र चलाए, 'वंदे मातरम' पर प्रतिबंध के बावजूद गुप्त सभाओं में गाया। इनकी वीरता ने दक्षिण को आंदोलन का केंद्र बनाया। सामाजिक-राजनीतिक प्रभावपत्रकारों ने 'वंदे मातरम' से वर्गीय मतभेद पार किए। पेरियार जैसे विरोधी भी प्रभावित। दक्षिणी भाषाओं में अनुवाद ने इसे सर्वसमावेशी बनाया, स्वराज्य की नींव रखी.

 स्वतंत्र भारत में विरासतस्वाधीनताोत्तर 'द हिंदू', 'स्वराज्य' ने परंपरा जीवित रखी। 150 वर्षों में 'वंदे मातरम' राष्ट्रीय प्रतीक, दक्षिणी मीडिया राष्ट्रवाद मजबूत कर रहा। युवाओं को प्रेरणा दे रहा। ���दक्षिण के इन पत्रकारों ने 'वंदे मातरम' से भारत माता को जागृत किया, स्वतंत्रता प्राप्ति में अमूल्य योगदान दिया। उनकी विरासत राष्ट्रगौरव है। अर्थात वन्देमातरम है जहाँ राष्ट्रभक्ति है वहाँ.

वन्देमातरम क्रमशः 33वीं श्रृंखला 

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