गुरुवार, 4 दिसंबर 2025

अन्न ही ब्रह्म है. माँ अन्नपूर्णा!इसे व्यर्थ न करें!

 अन्न ही ब्रह्म है. माँ अन्नपूर्णा!






डॉ  ऋतंभरा  की लेखनी से







मार्गशीर्ष पूर्णिमा: अन्नपूर्णा जयंती का पावन पर्व – महत्व, कथा, पूजा विधि एवं उपाय
आज, 4 दिसंबर 2025 को मार्गशीर्ष पूर्णिमा का उदय हो रहा है, जो हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र एवं फलदायी तिथि मानी जाती है। यह न केवल वर्ष की अंतिम पूर्णिमा है, बल्कि मां अन्नपूर्णा के आविर्भाव दिवस के रूप में भी जानी जाती है। मां अन्नपूर्णा, जो भगवती पार्वती का अन्न-समृद्धि प्रदान करने वाला स्वरूप हैं, इस दिन भक्तों को पोषण, समृद्धि एवं सुख की वर्षा करती है.
मार्गशीर्ष पूर्णिमा का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व
मार्गशीर्ष मास, जिसे अगहन भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग का आठवां मास है। भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं भगवद्गीता (अध्याय 10, श्लोक 35) में कहा है – "मासानां मार्गशीर्षोऽहम्" अर्थात्, मैं ही मार्गशीर्ष मास हूं। यह मास भक्ति, तपस्या एवं दान के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। मार्गशीर्ष पूर्णिमा पर चंद्रमा की पूर्ण कला उदय होता है, जो मन को शांति एवं बुद्धि को प्रखर बनाती है। यह तिथि 4 दिसंबर 2025 को सुबह 4:37 बजे से प्रारंभ होकर 5 दिसंबर को समाप्त होगी, जिससे उदया तिथि के अनुसार पूजन का विशेष महत्व है।

इस पूर्णिमा का महत्व अनेक कारणों से है। प्रथम, यह दत्तात्रेय जयंती से भी जुड़ी है, जहां भगवान दत्त (ब्रह्मा, विष्णु, महेश का संयुक्त रूप) का जन्म हुआ। द्वितीय, अन्नपूर्णा जयंती के रूप में यह अन्न की महत्ता सिखाती है। शास्त्रों में कहा गया है कि अन्न ही जीवन का आधार है; बिना इसके संसार की कल्पना असंभव। तृतीय, यह वर्ष की अंतिम पूर्णिमा होने से पापों का नाश एवं नई शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन व्रत, दान एवं सत्कर्म से मोक्ष प्राप्ति होती है। ज्योतिषीय दृष्टि से, इस तिथि पर गुरु पुष्य योग या अन्य शुभ योग बनने से धन-धान्य की वृद्धि होती है।
मार्गशीर्ष मास में सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है, जो आध्यात्मिक उन्नति का संकेत है। पुराणों में वर्णित है कि इस मास में की गई तपस्या देवताओं को भी प्रसन्न करती है। विशेष रूप से, महिलाएं इस दिन व्रत रखकर परिवार की समृद्धि की कामना करती हैं। यह पर्व हमें पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है – अन्न का अपव्यय न करें, क्योंकि मां अन्नपूर्णा की कृपा से ही यह प्राप्ति होती है।

मां अन्नपूर्णा का स्वरूप एवं इतिहास
मां अन्नपूर्णा भगवती पार्वती का एक दिव्य अवतार हैं, जिन्हें अन्न-धान्य की अधिष्ठात्री कहा जाता है। संस्कृत में "अन्न" का अर्थ भोजन एवं "पूर्णा" का अर्थ पूर्ण या भरपूर। वे "अन्नदा" (भोजन दाता) के नाम से विख्यात हैं। उनका स्वरूप लाल वर्ण का, चंद्रमा जैसे मुख वाली, तीन नेत्रों वाली एवं चार भुजाओं वाली होता है। निचली बायीं भुजा में खीर का पात्र, दायीं में सोने का लडलु, एवं अन्य भुजाओं में अभय एवं वर मुद्रा। सिर पर चंद्रमा एवं आभूषणों से सुशोभित। हिमालय की अन्नपूर्णा पर्वत श्रृंखला भी उनके नाम पर ही है, जो हिमवत राजा की पुत्री मानी जाती हैं।

इतिहास में, मां का प्रमुख मंदिर काशी (वाराणसी) में है, जहां आदि शंकराचार्य ने स्थापना की। अन्य मंदिर होरानाडु (कर्नाटक), इंदौर, गुजरात के उंझा (उमिया माता रूप) एवं नेपाल के काठमांडू में हैं। स्कंद पुराण, लिंग पुराण एवं देवी भागवत में उनका वर्णन है। कालिदास के कुमारसंभव एवं अन्य ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है। अन्नपूर्णा उपनिषद् में उन्हें ज्ञान की स्रोत कहा गया है।

अन्नपूर्णा जयंती की पौराणिक कथा
अन्नपूर्णा जयंती की कथा अत्यंत मार्मिक एवं शिक्षाप्रद है। एक बार कैलाश पर्वत पर भगवान शिव एवं मां पार्वती के बीच वाद-विवाद हुआ। शिव जी ने कहा, "यह संसार माया है, अन्न व्यर्थ है। आत्मा अमर है, भोजन का कोई महत्व नहीं।" इससे क्रोधित होकर मां पार्वती ने कहा, "यदि अन्न व्यर्थ है, तो मैं इसे गायब कर देती हूं।" तत्काल सारा अन्न पृथ्वी पर लुप्त हो गया।
परिणामस्वरूप, पृथ्वी पर भयंकर अकाल पड़ गया। देवता, मनुष्य, पशु-पक्षी सब भूख से तड़पने लगे। शिव जी के गण भी कमजोर हो गए। शिव जी स्वयं भिक्षाटन (भिक्षा मांगने) के लिए काशी पहुंचे। वहां एक छोटे से मंदिर में मां अन्नपूर्णा सिंहासन पर विराजमान थीं, लाल वस्त्राभूषित एवं अन्न से भरे पात्र लिए। उन्होंने शिव जी को भिक्षा-पात्र में अन्न भरकर कहा, "हे महादेव! अन्न माया नहीं, बल्कि ब्रह्म का ही रूप है। यह जीवन का आधार है। आपके भक्तों को भूखा न छोड़ें।" शिव जी ने भिक्षुक वेश में अन्न ग्रहण किया एवं कहा, "मैं तो निर्गुण ब्रह्म हूं, लेकिन मेरे भक्तों के लिए अन्न आवश्यक है।" 

इस घटना से शिव जी को ज्ञान हुआ कि आध्यात्मिकता के साथ-साथ भौतिक पोषण भी जरूरी है। मां ने अन्न लौटा दिया, एवं संसार हरित हो गया। यह कथा सिखाती है – अन्न का सम्मान करें, अपव्यय न करें, एवं दान से जीवन समृद्ध होता है। लिंग पुराण में वर्णित है कि व्यास जी को भी मां ने अन्न प्रदान किया था। इसी दिन मां का प्राकट्य हुआ, इसलिए मार्गशीर्ष पूर्णिमा को जयंती मनाई जाती है.

पूजा विधि: चरणबद्ध तरीका
अन्नपूर्णा जयंती पर पूजा सरल एवं फलदायी है। 2025 में ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4:19-5:10) में उठें, स्नान करें एवं स्वच्छ वस्त्र धारण करें। व्रत संकल्प लें – फलाहार या एक समय भोजन।पूजन सामग्री: मां की मूर्ति/फोटो, कलश, नारियल, आमपत्ता, लाल चुनरी, फूल, चंदन, कुमकुम, अगरबत्ती, दीपक, अन्न (चावल, दाल), फल, मिठाई (खीर/हलवा), घी, हल्दी।
चरण:कलश स्थापना: स्वच्छ स्थान पर मंडप बनाएं। कलश में जल भरें,नारियल रखें एवं आमपत्ते से सजाएं।गणेश पूजन: विघ्नहर्ता गणेश की पूजा से प्रारंभ करें।मां की स्थापना: मूर्ति को लाल आसन पर विराजमान करें। चुनरी ओढ़ाएं, चंदन-कुमकुम चढ़ाएं।मंत्र जाप: "ॐ अन्नपूर्णायै नमः" या अन्नपूर्णा स्तोत्र (आदि शंकराचार्य रचित) का 108 बार जाप। सहस्रनाम या शतनाम पाठ करें।

भोग अर्पण: खीर, हलवा, फल चढ़ाएं। गैस स्टोव या चूल्हे की पूजा करें, क्योंकि अन्नपूर्णा रसोई की देवी हैं।आरती एवं प्रदक्षिणा: घी का दीपक जलाएं, आरती उतारें। तुलसी पूजन करें।
विसर्जन: कथा सुनें एवं प्रसाद वितरण करें।
मार्गशीर्ष मास में 21 दिनों का व्रत रखने से विशेष फल मिलता है। काशी में विशेष उत्सव होते हैं, जहां प्रसाद वितरण प्रमुख है।

विशेष उपाय एवं लाभ
इस दिन कुछ सरल उपाय मां की कृपा प्राप्त करने में सहायक हैं:
हल्दी उपाय: 1 चुटकी हल्दी गंगाजल में घोलकर मां को अर्पित करें। इससे धन-समृद्धि आती है।अन्न दान: चावल, दाल, वस्त्र गरीबों को दान करें। विष्णु धर्मोत्तर पुराण में अन्नदान को सर्वोत्तम कहा गया।

रसोई पूजा: घर की रसोई साफ करें, गैस स्टोव पर तिलक लगाएं।
मंत्र सिद्धि: "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे" का जाप।
लाभ: घर में अन्न की कभी कमी न हो, स्वास्थ्य अच्छा रहे, संतान सुख मिले, एवं आर्थिक उन्नति हो। विवाह में मां की मूर्ति दान करने से गृहस्थ जीवन सुखी होता है। यह पर्व हमें सिखाता है – भोजन केवल तृप्ति नहीं, बल्कि ईश्वरीय कृपा है।

 मां की कृपा से समृद्ध जीवन
मार्गशीर्ष पूर्णिमा एवं अन्नपूर्णा जयंती हमें जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं का सम्मान सिखाती है। आधुनिक युग में, जहां भोजन की बर्बादी आम है, यह पर्व पर्यावरण एवं सामाजिक जिम्मेदारी का संदेश देता है। कल इस पावन दिन मां की आराधना करें, दान दें एवं कथा सुनें। जय मां अन्नपूर्णा! आपका जीवन अन्न-पूर्ण हो। 

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