सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का शंखनाद -वन्देमातरम (नवत्रिंशत् )
स्वदेशी आंदोलन पर ‘वंदे मातरम्’ का प्रभाव,एक गीत से आंदोलन तक,भारतीय स्वतंत्रता संग्राम केवल राजनीतिक संघर्ष नहीं था, वह भावनाओं, प्रतीकों और सांस्कृतिक चेतना का महासंग्राम था। इस महासंग्राम में यदि किसी एक शब्द, एक गीत या एक उद्घोष ने करोड़ों भारतीयों की आत्मा को एक साथ झकझोर दिया, तो वह था — “वंदे मातरम्”। यह केवल एक गीत नहीं, बल्कि स्वदेशी आंदोलन की प्राणवायु बना। जिस समय भारत राजनीतिक दासता, आर्थिक शोषण और सांस्कृतिक हीनता से जूझ रहा था, उस समय ‘वंदे मातरम्’ ने भारतीयों को यह बोध कराया कि यह भूमि केवल निवास स्थान नहीं, बल्कि माता है—और माता की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म ह ,वंदे मातरम् : उत्पत्ति और वैचारिक आधार,‘वंदे मातरम्’ की रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने 1870 के दशक में की और इसे अपने उपन्यास ‘आनंदमठ’ (1882) में स्थान दिया। यह गीत संस्कृत और बांग्ला के सम्मिश्रण से बना हुआ है, जो स्वयं में भारत की सांस्कृतिक एकात्मता का प्रतीक है।‘वंदे मातरम्’ में भारत को:शस्य-श्यामला (अन्नपूर्णा),सुजलां-सुफलां (समृद्ध),और दुर्गा रूपा शक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया।xयह गीत राष्ट्र को देवी स्वरूप प्रदान करता है, जिससे राष्ट्रभक्ति एक धार्मिक–सांस्कृतिक कर्तव्य बन जाती है। यही भाव आगे चलकर स्वदेशी आंदोलन की आत्मा बना।,स्वदेशी आंदोलन : पृष्ठभूमि,1905 में लॉर्ड कर्ज़न द्वारा बंगाल विभाजन ने भारतीय जनमानस को गहरे तक झकझोर दिया। यह विभाजन प्रशासनिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता को तोड़ने का षड्यंत्र था। इसके प्रतिरोध में जो आंदोलन खड़ा हुआ, वही था स्वदेशी आंदोलन।स्वदेशी आंदोलन के दो प्रमुख आधार थे: विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार
स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग,परंतु किसी आंदोलन को केवल आर्थिक नीति से नहीं, बल्कि भावनात्मक ऊर्जा से बल मिलता है। यही ऊर्जा ‘वंदे मातरम्’ ने प्रदान की।
वंदे मातरम् : स्वदेशी आंदोलन का घोषवाक्य
स्वदेशी आंदोलन के दौरान ‘वंदे मातरम्’:सभाओं का उद्घोष बना,जुलूसों का नारा बना,और बलिदानियों का मंत्र बना।
जहाँ भी विदेशी कपड़ों की होली जलाई जाती, वहाँ ‘वंदे मातरम्’ गूँजता।जहाँ छात्र कॉलेज छोड़ते, शिक्षक पद त्यागते, वहाँ ‘वंदे मातरम्’ उनका संबल बनता।यह गीत लोगों को यह स्मरण कराता था कि: स्वदेशी अपनाना केवल आर्थिक निर्णय नहीं, बल्कि मातृ-सेवा है।आर्थिक स्वदेशी और वंदे मातरम्
स्वदेशी आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य था ब्रिटिश आर्थिक शोषण का अंत। विदेशी कपड़े, नमक, चीनी और अन्य वस्तुएँ भारत की गरीबी का कारण बन चुकी थीं।
‘वंदे मातरम्’ ने:विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार को धार्मिक–नैतिक आधार दिया,चरखा, खादी और स्थानीय उद्योग को गौरव का प्रतीक बनाया। जब लोग ‘वंदे मातरम्’ गाते हुए विदेशी कपड़ों की होली जलाते थे, तो वह केवल विरोध नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि का अनुष्ठान बन जाता था।छात्र, युवा और वंदे मातरम्,स्वदेशी आंदोलन में छात्रों की भूमिका ऐतिहासिक रही।कॉलेजों और स्कूलों में:
‘वंदे मातरम्’ गाने पर प्रतिबंध लगाया गया,
छात्रों को निष्कासित किया गया।
परंतु यही प्रतिबंध ‘वंदे मातरम्’ को और शक्तिशाली बनाता गया।
छात्रों ने:राष्ट्रीय विद्यालय स्थापित किए,
स्वदेशी शिक्षा प्रणाली विकसित की।
‘वंदे मातरम्’ उनके लिए डिग्री से बड़ा आदर्श बन गया।महिला चेतना और वंदे मातरम्
स्वदेशी आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी अभूतपूर्व थी।महिलाओं ने:विदेशी कपड़ों का त्याग किया,स्वदेशी वस्त्र अपनाए,और घर को आंदोलन का केंद्र बनाया।वंदे मातरम्’ ने महिलाओं को यह अनुभूति कराई कि:राष्ट्र की रक्षा भी मातृत्व का ही विस्तार है।इसी भाव ने आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम में महिला शक्ति को संगठित किया।सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और वंदे मातरम्,स्वदेशी आंदोलन केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी था।‘वंदे मातरम्’ ने:भारतीय भाषाओं,भारतीय प्रतीकों,भारतीय इतिहास
को पुनः सम्मान दिलाया।ब्रिटिश शासन भारतीयों में जो हीनता भर रहा था, ‘वंदे मातरम्’ ने उसे आत्मगौरव में परिवर्तित कर दिया,दमन, प्रतिबंध और गीत की शक्ति
ब्रिटिश सरकार ने ‘वंदे मातरम्’ को:राजद्रोही घोषित किया,सभाओं में प्रतिबंधित किया,
और इसके गायन पर दंड दिया।पर इतिहास का सत्य यही है कि: जिस विचार से सत्ता डरती है, वही विचार सबसे शक्तिशाली होता है।‘वंदे मातरम्’ जितना दबाया गया, उतना ही वह जन-जन की वाणी बनता गया।गांधी, तिलक और वंदे मातरम्लोकमान्य तिलक ने कहा:स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।
और ‘वंदे मातरम्’ ने इस अधिकार को भावनात्मक स्वर दिया।महात्मा गांधी ने भले ही बाद में संतुलन की बात की, लेकिन स्वदेशी आंदोलन के दौर में:खादी,स्वदेशी,और आत्मनिर्भरताका जो दर्शन उभरा, उसकी जड़ में ‘वंदे मातरम्’ की चेतना थी।स्वदेशी आंदोलन से आगे : वंदे मातरम् की विरासत
स्वदेशी आंदोलन समाप्त नहीं हुआ, बल्कि:
असहयोग,सविनय अवज्ञा,भारत छोड़ो आंदोलन में परिवर्तित हुआ।हर चरण में ‘वंदे मातरम्’ एक सांस्कृतिक सूत्र की तरह उपस्थित रहा।आलोचनाएँ और उनका उत्तर
कुछ वर्गों ने ‘वंदे मातरम्’ को लेकर आपत्तियाँ भी उठाईं।पर स्वदेशी आंदोलन के संदर्भ में यह स्पष्ट है कि:यह गीत किसी समुदाय के विरुद्ध नहीं,बल्कि औपनिवेशिक दासता के विरुद्ध था।इसका लक्ष्य राष्ट्रबोध था, न कि विभाजन।स्वदेशी आंदोलन की आत्मा,यदि पूछा जाए कि स्वदेशी आंदोलन का सबसे बड़ा हथियार क्या था—तो उत्तर होगा:न तलवार,
न बंदूक,बल्कि वंदे मातरम्।इसने:आर्थिक बहिष्कार को भावनात्मक शक्ति दी,सांस्कृतिक आत्मविश्वास जगाया,और राष्ट्र को माता के रूप में प्रतिष्ठित किया।
आज जब हम आत्मनिर्भर भारत और स्वदेशी की बात करते हैं, तो हमें स्मरण रखना चाहिए कि: वंदे मातरम् केवल इतिहास नहीं, चेतना है।स्वदेशी केवल नीति नहीं
, साधना है।
वंदे मातरम्!
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