वन्देमातरम अष्टाविंशति श्रृंखला
वंदे मातरम्, सार्वजनिक शिक्षा : पाठ्यक्रम में क्यों आवश्यक?
राष्ट्र-आत्मा का गीत::राष्ट्र केवल भूमि, जनसंख्या या शासन व्यवस्था का नाम नहीं होता; वह होती है—एक ऐसी जीवंत आत्मा, जो इतिहास, संस्कृति, भाषा, धर्म, कला, साहित्य, लोक-संस्कार और संघर्षों से निर्मित होती है। भारत की इस राष्ट्र-आत्मा को यदि एक भाव, एक मंत्र, एक ध्वनि, और एक शब्द में बांधा जाए तो वह है—“वंदे मातरम्”। यह केवल एक गीत नहीं, यह भारतीय चेतना का शंखनाद, स्वतंत्रता-संग्राम का प्रेरणास्त्रोत और मातृभूमि की पूजा का भाव है। इसलिए प्रश्न उठता है—जब यह गीत हमारी राष्ट्रीय आत्मा का प्रतिनिधि है, तो सार्वजनिक शिक्षा के पाठ्यक्रम में इसे स्थान देना क्यों आवश्यक है?
वंदे मातरम् का ऐतिहासिक महत्व : स्वतंत्रता का मंत्र,बंकिमचंद्र चटोपाध्याय ने 1875-76 के बीच जब “आनंदमठ” में वंदे मातरम् की रचना की, तब यह केवल साहित्यिक अभिव्यक्ति नहीं थी; यह गुलाम भारत की वेदना, आक्रोश और जागरण की घोषणा थी।स्वतंत्रता आन्दोलन में भूमिका 1905 का स्वदेशी आंदोलन इसी गीत के नारे से प्रारम्भ हुआ।1906 में कांग्रेस के मंच से इसे गाया गया, पूरा देश उत्तेजित हो उठा।क्रांतिकारियों के लिए यह आतंकित ब्रिटिश सत्ता का भय था; भगत सिंह, राजगुरु, आज़ाद, खुदीराम, बिस्मिल, और countless सेनानियों के लिए यह युद्धघोष।जेलों में देशभक्त इसे गाते हुए यातना सहते थे; इसलिए यह गीत एक आध्यात्मिक-देशभक्ति ऊर्जा बन गया।वंदे मातरम् से ब्रिटिश भय ब्रिटिश सरकार ने कई बार इसे सार्वजनिक रूप से गाने पर प्रतिबंध लगाया।एक गीत से किसी साम्राज्य को डर क्यों लगा? क्योंकि यह गीत व्यक्ति के भीतर की दास मानसिकता को तोड़ता था। यही वह सत्ता-भंजक शक्ति है, जिसके कारण वंदे मातरम् शिक्षा में भी आवश्यक है—क्योंकि शिक्षा का मूल उद्देश्य दास नहीं, स्वतंत्र नागरिक बनाना है।वंदे मातरम् और सार्वजनिक शिक्षा : क्यों आवश्यक? राष्ट्रीय पहचान की स्थापना,पाठ्यक्रम का अर्थ केवल भाषाएँ और विज्ञान पढ़ाना नहीं; शिक्षा का कार्य राष्ट्र का ‘इंटेलेक्चुअल चरित्र’ बनाना होता है। वंदे मातरम् इस चरित्र का निर्माण इस प्रकार करता है—यह मातृभूमि को देवी रूप में प्रस्तुत करता है।यह मातृभक्ति को नागरिक कर्तव्य से जोड़ता है।यह भारतीय पहचान को भावनात्मक आधार देता है।शिक्षित होना केवल पढ़ना नहीं, बल्कि जिम्मेदार नागरिक बनना है; वंदे मातरम् इस जिम्मेदारी को राष्ट्रीय प्रेम से जोड़ता है।
चरित्र-निर्माण और नैतिक शिक्षा::भारत की शिक्षा पर सदैव प्रश्न रहे—अंक मिलते हैं पर चरित्र नहीं बनता, डिग्रियाँ बढ़ती हैं पर कर्तव्यबोध घटता है।वंदे मातरम् इससे जोड़कर शिक्षा को नैतिक आधार देता है—बच्चे राष्ट्र को, प्रकृति को, माता के रूप में सम्मान करना सीखते हैं।समाज हित, देशभक्ति और त्याग का भाव उत्पन्न होता है।उपभोगवादी मानसिकता की जगह कर्तव्य-केन्द्रित नागरिकता विकसित होती है।इसलिए वंदे मातरम् नैतिक शिक्षा का मूल सूत्र है।
सांस्कृतिक सुरक्षा और सभ्यता का संरक्षण::शिक्षा एक पीढ़ी को नहीं, आने वाली पीढ़ियों की सभ्यता का आधार तय करती है।यदि पाठ्यक्रम में वंदे मातरम् न हो, तो अगली पीढ़ियाँ—अपने संघर्षों से अनभिज्ञ रहेंगी,देशभक्तों के बलिदानों से कट जाएंगी,मूल्यहीन वैश्विकता की शिकारहो जाएंगी। वंदे मातरम् सांस्कृतिक स्मृति का संरक्षक है।
पर्यावरण-चेतना का राष्ट्रीय रूप::वंदे मातरम् केवल राष्ट्र-भक्ति नहीं; यह प्रकृति-भक्ति भी है। सिंधु, नदियाँ, खेत, हरियाली, वायु, जल, वसुंधरा—सब माता का रूप हैं। इस दृष्टि से वंदे मातरम् शिक्षा में पर्यावरण को संस्कृति से जोड़ता है।भारत में प्रकृति संरक्षण कानूनों से नहीं, संस्कारों से होता है।
संविधान और “राष्ट्रीय सम्मान”:यद्यपि जन-गाण-मन राष्ट्रीय गान है, पर वंदे मातरम् को राष्ट्रीय गीत का संवैधानिक सम्मान प्राप्त है।अर्थात इसे सार्वजनिक शिक्षा में स्थान देना संवैधानिक कर्तव्य भी है—संविधान का अनुच्छेद 51(A) नागरिकों को राष्ट्र-चिन्हों का सम्मान करने का निर्देश देता है।वंदे मातरम् शिक्षा में न पढ़ाना इस कर्तव्य से विमुख होना है।
आधुनिक शिक्षा और वंदे मातरम् : प्रासंगिकता::आज की शिक्षा ‘सूचना-प्रधान’ हो गई, किंतु ‘संस्कार-हीन’।तकनीक, विज्ञान, गणित शिक्षा के महत्वपूर्ण अंग हैं, लेकिन मूल्य-आधारित चेतना के बिना इनका उपयोग विनाशकारी भी हो सकता है।आज क्यों आवश्यक है? समाज में बढ़ती स्वार्थपरता,जातीय/धार्मिक विभाजन,पर्यावरण संकट,नागरिक कर्तव्यहीनता,लोकतांत्रिक मर्यादा का पतन,इन रोगों का उपचार सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से पोषित शिक्षा ही कर सकती है, और वंदे मातरम् इस राष्ट्रवाद का अमृत-बीज है।
पाठ्यक्रम में कैसे शामिल किया जाए? प्राथमिक स्तर,काव्य-पाठ और भावानुवाद,देश, प्रकृति और माता के प्रति प्रेम की कहानियाँ माध्यमिक स्तर,वंदे मातरम् का साहित्यिक, ऐतिहासिक अध्ययन,स्वदेशी आन्दोलन से जोड़कर अध्यापन,चित्रांकन, नाटक, वाद-विवाद प्रतियोगिता
उच्च शिक्षा::राष्ट्रवाद, लोकतंत्र, भारतीय सभ्यता के संदर्भ में शोध भारतीय राजनीतिक-सांस्कृतिक आंदोलनों में वंदे मातरम् की भूमिका का अध्ययन
आपत्तियाँ और समाधान::कुछ समूह इसे धार्मिक आधार पर विवादित करते हैं।परंतु—वंदे मातरम् किसी देवी/देवता की पूजा नहीं, यह मातृभूमि का स्तवन है। इसमें किसी धर्म-विशेष का उल्लेख नहीं, यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का गीत है। राष्ट्रवाद किसी धर्म का नहीं होता; राष्ट्र सबका है।इसलिए वंदे मातरम् को शिक्षा में शामिल करना धर्म नहीं, नागरिकता का पाठ है।
शिक्षा का स्वाधीन स्वर::एक राष्ट्र तभी जीवित रहता है जब उसकी नई पीढ़ियाँ अपनी जड़ों से जुड़ी हों। वंदे मातरम् वह ध्वनि है जो—भारतीयों को भारतीय होने का गर्व देती है,शिक्षा को मूल्य और आत्मा प्रदान करती है,विज्ञान और तकनीक को संस्कार के साथ जोड़ती है,स्वाधीनता-संग्राम की स्मृति को भविष्य की मार्गदर्शिका बनाती है।इसलिए सार्वजनिक शिक्षा में वंदे मातरम् का स्थान वैकल्पिक नहीं, अनिवार्य होना चाहिए।
यदि शिक्षा मातृभूमि के प्रति सम्मान नहीं जगा पाए, तो वह केवल नौकरी पैदा करती है, नागरिक नहीं।
वंदे मातरम् शिक्षा को नागरिक-निर्माण, संस्कृति-सुरक्षा और नैतिक राष्ट्रवाद से जोड़ता है।
यही कारण है—वंदे मातरम् पाठ्यक्रम में आवश्यक है, अनिवार्य है, और शिक्षा की आत्मा है।
वंदे मातरम 🙏
क्रमशः----

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