शनिवार, 1 नवंबर 2025

भ्रष्टाचार का अंत BMW के इंजन से नहीं, भीतर के विवेक के पुनर्जागरण से होगा।

 


क्यो चाहिए "कैग " और लोकपालों को" BMW"


भ्रष्टाचार-विरोधी योद्धा और BMW: जब ईमानदारी चमकती है क्रोम में,भारत की राजनीति में ‘ईमानदारी’ अब कोई मूल्य नहीं, बल्कि एक ब्रांड है — और इस ब्रांड का प्रचार उतना ही महँगा है जितनी किसी BMW की मेंटेनेंस। जो कल तक साइकिल पर बैठकर “सिस्टम बदलने” का वादा करते थे, आज बुलेटप्रूफ बीएमडब्ल्यू में बैठकर सिस्टम के ही हिस्से बन चुके हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ क्रांति का नारा अब क्रांति नहीं, क्रांतिकारी सेल्फ़ी है। जनता के नाम पर होने वाले आंदोलन अब वही करते हैं जिनकी जेब में पॉलिटिकल कॉन्ट्रैक्ट, बिज़नेस टाई-अप और मीडिया प्रबंधन की मोटी फाइलें होती हैं।



 ईमानदारी की ब्रांडिंग और पूँजी की पॉलिश

भ्रष्टाचार-विरोध अब ‘संवेदना’ नहीं, ‘रणनीति’ है। पहले लोग सत्य के लिए जेल जाते थे, अब कैमरे के लिए जाते हैं।
ईमानदारी की बात करने वाले नेता अब अपने भाषण में ‘ट्रांसपेरेंसी’ का ज़िक्र करते हैं — और अपनी पार्टी फंडिंग में Opacity का अभ्यास करते हैं।BMW, Mercedes और iPhone अब विचारधारा के नहीं, विकास मॉडल के प्रतीक हैं।
भारत में अब ईमानदारी का नया मापदंड है — “कितनी बार तुमने भ्रष्टाचार का नाम लिया, न कि कितनी बार उससे लड़े।

 मोदी युग की विडंबना: नारे महान, नीयत अज्ञात,प्रधानमंत्री मोदी ने ‘न खाऊँगा, न खाने दूँगा’ कहा था — और जनता ने तालियाँ बजाईं। लेकिन यह नारा अब सरकारी विज्ञापन की तरह है — बार-बार बजता है, पर अर्थ खो चुका है।
भ्रष्टाचार-विरोध की यह राजनीति अब चयनात्मक है — जहाँ विपक्ष का हर सदस्य भ्रष्ट है, और अपने हर साथी ‘संघर्षरत संत’। आज सत्ता में बैठे बहुत-से नेता अपने भाषण में गांधी का उल्लेख करते हैं, पर जीवनशैली में गोल्फ कोर्स और जेट सेट क्लब से प्रेरणा लेते हैं। विपक्ष के भ्रष्टाचार को कैमरे पर दिखाया जाता है, लेकिन अपने चहेतों की गड़बड़ियाँ फ़ाइल में फ्रीज़ कर दी जाती हैं।
सत्य का नया स्वरूप: PR एजेंसी के स्लोगन में,राजनीति में अब विचार नहीं, विजुअल्स बिकते हैं। चौकीदार अब मीम है, न कि मूल्य। जो नेता पहले ‘काला धन’ के खिलाफ मंच पर गरजते थे, वे अब किसी अरबपति के बिज़नेस लाउंज में मुस्कुराते दिखते हैं। भ्रष्टाचार-विरोध का अर्थ अब ‘कौन पकड़ा गया’ नहीं, बल्कि ‘किसे पकड़ना है’ बन गया है।

 BMW और भारत का विरोधाभास,BMW केवल गाड़ी नहीं, मानसिकता है — भ्रष्टाचार-विरोध का लाइफस्टाइल वर्ज़न।
सादगी का उपदेश देते हुए विलास का उपभोग करना भारतीय राजनीति का सबसे नया पाखंड है। नेता जब गाँव में जाकर मिट्टी उठाते हैं और कैमरा बंद होते ही एयरकंडीशंड गाड़ी में लौटते हैं, तब वही क्षण असली ‘भ्रष्टाचार’ का दर्पण होता है।
भ्रष्टाचार केवल घूस नहीं — दोहरी ज़िंदगी भी भ्रष्टाचार है।

जनता अब जज नहीं, ज्यूरी बन चुकी है,जनता अब सवाल नहीं करती — वह शेयर करती है।
वह ईमानदारी की परीक्षा नहीं लेती, बस फेसबुक पर ‘जय श्री मोदी’ या ‘चोर-चोर’ लिखकर मुक्त हो जाती है।इस माहौल में नेताओं को डर नहीं लगता, क्योंकि जनता खुद भ्रम का हिस्सा बन चुकी है।

 क्रांति अब कार के भीतर से नहीं होती,ईमानदारी कोई स्टाइल स्टेटमेंट नहीं।,BMW में बैठकर भ्रष्टाचार-विरोध की बात उतनी ही खोखली लगती है, जितनी किसी पाँच सितारा होटल में भूख मिटाने की गोष्ठी। भारत को अब ऐसे नेता नहीं चाहिए जो “भ्रष्टाचार मिटाने” का भाषण दें,बल्कि ऐसे नागरिक चाहिए जो “भ्रष्टाचार को सहने” से इनकार करें। सत्य का धर्म विलासिता से नहीं निभता।भ्रष्टाचार का अंत BMW के इंजन से नहीं, भीतर के विवेक के पुनर्जागरण से होगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें