राम जन्मभूमि और आतंकवाद : सभ्यता, कानून और वैश्विक सुरक्षा के बीच भारतीय दृष्टि का अंतरराष्ट्रीय विश्लेषण
21वीं सदी का विश्व उस चौराहे पर खड़ा है जहाँ सभ्यतागत आत्मसम्मान, धार्मिक-ऐतिहासिक न्याय और वैश्विक सुरक्षा तीनों एक-दूसरे से गहरे जुड़े हुए हैं। भारत में राम जन्मभूमि का प्रश्न इसी त्रिकोण में स्थित है— यह केवल एक धार्मिक आस्था का विषय नहीं, बल्कि क़ानून, इतिहास, पुरातत्व, न्याय और राष्ट्र की सांस्कृतिक आत्म-चेतना का विषय है। इसी प्रकार आतंकवाद आज केवल सुरक्षा चुनौती नहीं, बल्कि मानवाधिकार, संप्रभुता और वैश्विक व्यवस्था के लिए अस्तित्वगत संकट बन चुका है। इस लेख का उद्देश्य भावुकता या नारेबाज़ी नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय शोध-स्तर की तर्कशील विवेचना है, जो निम्न तथ्यों पर आधारित है:
राम जन्मभूमि: एक आस्था नहीं—सभ्यतागत इतिहास का सत्य(क) पुरातत्व एवं ऐतिहासिक प्रमाण
अंतरराष्ट्रीय शोध-पद्धतियों के अनुसार किसी भी विवादित स्थल का तीन आधार पर परीक्षण किया जाता है—. पुरातत्व, प्रलेखन,. जन-सांस्कृतिक स्मृति।
राम जन्मभूमि का प्रश्न इन तीनों कसौटियों पर पूर्णत: स्पष्ट है: ASI की 200 से अधिक पृष्ठों की रिपोर्ट तथा 90+ पुरातात्विक प्रमाणों ने स्पष्ट किया कि मंदिर के अवशेष मस्जिद के नीचे मौजूद थे। विदेशी यात्रियों—फाह्यान, अलबरूनी, जोसेफ टिफ़ेंथलर—के विवरण इसकी दीर्घकालीन सांस्कृतिक निरंतरता को प्रमाणित करते हैं।लाखों लोगों की अखंड यात्री-स्मृति इस स्थल की पवित्रता को उसी तरह सिद्ध करती है जैसे येरूशलम, वेटिकन या मक्का की स्मृतियाँ अपनी-अपनी सभ्यताओं के लिए करती हैं।इसलिए राम जन्मभूमि का पुनर्निर्माण केवल धार्मिक कार्य नहीं, बल्कि ऐतिहासिक न्याय की पुनर्स्थापना है,भारतीय संविधान एवं सर्वोच्च न्यायालय: वैश्विक न्यायशास्त्र का अद्भुत उदाहरण:
विश्व के अनेक देशों में धार्मिक विवाद सशस्त्र संघर्ष में बदल जाते हैं—
इजरायल–फिलिस्तीन,
तुर्की–आर्मेनियन चर्च,
नाइजीरिया,
सूडान,
म्यांमार—
लेकिन भारत ने 500 वर्षों के सबसे संवेदनशील विवाद को न्यायिक प्रक्रिया, साक्ष्यों और शांतिपूर्ण समाधान से हल किया।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: शतप्रमाणो पर आधारित,किसी समुदाय के प्रति अनादर से रहित,
और विश्व न्यायशास्त्र का आदर्श मॉडल है—जहाँ भावनाओं और तथ्यों को संतुलित करके समाधान खोजा गया।इस निर्णय ने दुनिया को संदेश दिया:
“भारत एक संवैधानिक राष्ट्र-राज्य है, धार्मिक साम्राज्य नहीं।. राम मंदिर: सांस्कृतिक टकराव नहीं—वैश्विक बहुलवाद का उदाहरण
कई पश्चिमी विश्लेषकों ने इसे धार्मिक पुनरुत्थान के रूप में समझा, पर वास्तविकता इससे विपरीत है।
राम मंदिर का पुनर्निर्माण वह उदाहरण है जहाँ—
किसी समुदाय को बेदखल नहीं किया गया,
किसी धार्मिक स्थल को बलपूर्वक नहीं हटाया गया,
बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने पूर्ण संवैधानिक प्रक्रिया द्वारा वैकल्पिक भूमि देकर समाधान किया।
यह मॉडल दुनिया में अत्यंत दुर्लभ है।
आतंकवाद के विरोध में भारतीय दृष्टिकोण: अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अनिवार्य भारत पिछले 40 वर्षों से आतंकवाद का सबसे बड़ा पीड़ित राष्ट्र रहा है।
लेकिन भारत ने हमेशा राष्ट्र-राज्य की वैधता, अंतरराष्ट्रीय कानून, और मानवाधिकार की मर्यादा को बनाए रखा।
(क) भारत की नीति अंतरराष्ट्रीय मानकों पर क्यों सर्वोच्च है?भारत ने किसी समुदाय को आतंकवाद से कभी नहीं जोड़ा। यहाँ आतंकवाद से लड़ाई धर्म से नहीं, अपराध और वैचारिक हिंसा से है।भारत ने संयुक्त राष्ट्र में CRPF, NIA, और FATF के मानकों पर कठोर कार्ययोजना लागू की है।(ख) भारत आतंकवाद-विरोधी विश्व नेतृत्व की क्षमता क्यों रखता है?जनसंख्या आकार – विश्व के 1/6 मानवों की सुरक्षा भारत की जिम्मेदारी।भौगोलिक स्थिति – दक्षिण एशिया आतंकवाद का सबसे जटिल भू-राजनीतिक क्षेत्र लोकतांत्रिक ढाँचा – आतंकवाद-विरोधी शक्तियों में भारत एकमात्र विशाल लोकतंत्र। टेक्नोलॉजी और खुफिया क्षमता – वैश्विक मानकों पर शीर्ष-स्तर।
भारत न केवल स्वयं सुरक्षित हुआ है, बल्कि उसने नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, मालदीव और अफ्रीका के कई देशों की आतंकवाद-विरोधी क्षमता बढ़ाई है।
राम जन्मभूमि बनाम आतंकवाद: सभ्यता और हिंसा का अनिवार्य अंतर राम जन्मभूमि का संघर्ष — सभ्यतागत स्मृति का संघर्ष था।आतंकवाद — मानवता-विरोधी हिंसा का प्रोजेक्ट है।राम मंदिर सत्य, न्याय, और संवैधानिक प्रक्रिया पर आधारित है।आतंकवाद अंधविश्वास, वैचारिक विषाक्तता और अराजकता पर आधारित।राम जन्मभूमि ने न्याय की राह दिखाई;आतंकवाद कानून, समाज और राष्ट्र-राज्य को चुनौती देता है।इसलिए दोनों को कभी एक ही पैमाने पर नहीं देखा जा सकता।
भारत का संदेश विश्व को:भारत बताता है कि—
सभ्यताएँ संघर्ष से नहीं, संवाद से जीवित रहती हैं।
ऐतिहासिक न्याय न्यायपालिका से प्राप्त होता है, हिंसा से नहीं।आस्था का समाधान संवैधानिक तरीकों से ही संभव है।आतंकवाद का उत्तर वैचारिक स्पष्टता, मजबूत राज्य, और अंतरराष्ट्रीय सहयोग है।
एक ओर राम जन्मभूमि है—जो सभ्यता, इतिहास, न्याय और शांति का प्रतीक है।दूसरी ओर आतंकवाद है—
जो अराजकता, भय, और मानवता-विरोधी हिंसा का साधन है।राम मंदिर का पुनर्निर्माण भारत की सभ्यतागत आत्मा की पुनर्स्थापना है।आतंकवाद का समूल उन्मूलन मानवता का सार्वभौमिक कर्तव्य।
भारत आज विश्व को यही संतुलित संदेश देता है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें