शनिवार, 8 नवंबर 2025

कैसी देशभक्ति यह, जो वंदेमातरम् से डरती है?एक

कैसी देशभक्ति यह, जो वंदेमातरम् से डरती है?




कैसी देशभक्ति यह, जो वंदेमातरम् से डरती है?बयान आया—"मातृभूमि के लिए जान दे सकते हैं, पर वंदेमातरम् नहीं कहेंगे!" यह शब्द नहीं, राष्ट्र की आत्मा पर प्रहार हैं। यह उन शहीदों की कुर्बानियों पर प्रश्नचिह्न है जिन्होंने भारत माता के नाम पर हंसी-हंसी फाँसी का फंदा चूमा था। जब आस्था का नाम लेकर राष्ट्रभक्ति को मापने की कोशिश होती है, तो भारत की आत्मा तिलमिला उठती है।वंदेमातरम् कोई गीत नहीं, यह क्रांति का गर्जन है। इसकी ध्वनि में आज़ादी के दीवाने भगत सिंह, खुदीराम बोस, चंद्रशेखर आज़ाद और नेताजी की प्रतिध्वनि गूंजती है। इस गीत ने वो ज्वाला जलाई जिससे ब्रितानी साम्राज्य की नींव हिल गई। जिसने इसे गाया, उसने सिर्फ़ गीत नहीं गाया—उसने भारत की आत्मा को पुकारा। 

अबू आजमी जैसे लोग जब कहते हैं कि वे वंदेमातरम् नहीं गाएंगे, तो वे केवल एक वाक्य नहीं बोलते, वे इतिहास का अपमान करते हैं। क्या यह वही भारत नहीं, जहाँ एक मुसलमान मौलाना हसरत मोहनी ने "इंकलाब जिंदाबाद" का नारा दिया? जहाँ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने विज्ञान से लेकर राष्ट्रपति भवन तक भारतमाता का मस्तक ऊँचा किया? और अब जब यही धरती उन्हें समान सम्मान देती है, तो वंदेमातरम् कहने से क्या डर है?यह वही धरती है जहाँ हर इंच मिट्टी माँ कहलाती है। इस भूमि के प्रति निष्ठा का प्रतीक शब्द है – वंदेमातरम्।

 यह शब्द धर्म नहीं माँगता, केवल समर्पण चाहता है। जो इस पर हिचकिचाता है, वह मातृभूमि से नहीं, बल्कि अपनी आत्मा से विश्वासघात करता है। राष्ट्र में जीकर, राष्ट्र के दिए अधिकार लेकर, राष्ट्रगान या राष्ट्रगीत से परहेज़ कैसा?राजनीति जब राष्ट्रप्रेम से बड़ी हो जाए, तो ऐसे ही बयान निकलते हैं। नेताओं को समझना होगा कि धर्म की राजनीति भारत की जड़ें नहीं बचा सकती, केवल उसका क्षरण कर सकती है। वंदेमातरम् हिंदू या मुसलमान का नहीं—यह भारतीय का नारा है, यह उस मिट्टी की आवाज है जहाँ गंगा-यमुना संगम बनकर बहती हैं।

आज जब कोई सांसद संसद में बैठकर वंदेमातरम् कहने में झिझकता है, तो वह केवल अपनी कुर्सी पर नहीं, बल्कि देश की भावनाओं पर बोझ बन जाता है। ये वही भावनाएँ हैं जिनसे आकाश में तिरंगा लहराता है, और सैनिक बर्फीली चोटियों पर वंदेमातरम् की प्रतिध्वनि के साथ मर-मिटते हैं।देशभक्ति की असली परख गोली खाने में नहीं, दिल से बोलने में है – "माँ, तुझे प्रणाम!" जिसने यह कहने का साहस खो दिया, उसने भारत का सम्मान खो दिया।

 वंदेमातरम् न कह पाना शर्म की बात नहीं, राष्ट्रीय अपराध है।भारत कोई ज़मीन का टुकड़ा नहीं – यह भावना है, यह अस्तित्व है, यह माँ है। और जो अपने अस्तित्व को प्रणाम करने में झिझके, उसकी देशभक्ति पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है।

अबू आजमी क्षमा क़े नहीं, इनका अपराध संज्ञेय है.

कौटिल्य टीम 

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