रविवार, 2 नवंबर 2025

कौटिल्य क़े पथ पर, विचारों का अखंड प्रवाह!







 






सम्पादकीय – “कौटिल्य का भारत : वैचारिक यात्रा के सत्रहवें पड़ाव 

समय की नदी कितनी भी वेगवान क्यों न हो, वह अपने तटों की पहचान कभी नहीं भूलती। ठीक उसी भांति, "कौटिल्य का भारत" ने 16 वर्षों की निरंतर लोकयात्रा में कई उतार-चढ़ावों के बीच अपने सिद्धांतों की शुचिता और राष्ट्रहित के प्रति निष्ठा को अक्षुण्ण रखा है। आज जब हम सत्रहवें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, यह केवल समय का बीतना नहीं—यह हमारे अस्तित्व, हमारी प्रतिबद्धता और हमारी वैचारिक कर्मठता की विजय का दिन है।

यह किसी एक व्यक्ति की उपलब्धि नहीं, बल्कि पाठकों, शुभचिंतकों, विज्ञापनदाताओं, संवाददाताओं, लेखकों, विचारकों और समाज के सजग प्रहरी नागरिकों का सामूहिक उत्सव है, जिन्होंने सदैव हमारे मिशन को प्रोत्साहन और संरक्षण दिया।

सत्रहवाँ वर्ष मात्र एक पड़ाव है… गंतव्य अभी दूर तक फैला है। विचारों की प्रखरता और पत्रकारिता की सच्चाई,पत्रकारिता यदि केवल सूचना देने तक सीमित रह जाए तो वह यंत्र है। परंतु जब सूचना के साथ मूल्य, नैतिकता, चरित्र, राष्ट्रभावना और बौद्धिक संपदा का समावेश हो—तो वही पत्रकारिता लोकशक्ति की धुरी बनती है।

हमने आरंभ से यह सुनिश्चित किया कि— सत्य को उसकी संपूर्णता में रखें,राष्ट्रहित सर्वोपरि रहे

 समाज की आवाज़ निर्भीक रूप से प्रकाशित हो, पक्ष नहीं — सत्य का पक्ष लें

हमारे पन्नों पर सिर्फ खबरें नहीं छपतीं—यहाँ विचार भी साँस लेते हैं। 

लघु प्रयास, विराट संकल्प,जिस प्रकार कोई माली वर्षों तक प्रतीक्षा करता है कि आम का पौधा बड़ा होकर मीठे फलों से लद जाए, उसी भाँति हमारा यह विनम्र प्रयास भी निरंतर जारी रहा।

जिस बीज को हमने बोया
—उसमें निष्ठा थी
—उसमें राष्ट्र प्रेम था
—उसमें जनसंवाद की गहरी जड़ें थीं

आज वह पौधा वृक्ष बनने की राह पर है…क्योंकि आप सब उसकी जड़ें सींचते रहे।

 पूर्वी उत्तर प्रदेश में अपनी अलग पहचान,बाजारमुखी मीडिया के इस युग में जहाँ विचारधारा को अक्सर लाभ-हानि की तुला पर तोला जाता है,

वहाँ कौटिल्य का भारत ने अपने सिद्धांतों को बाज़ार की हवाओं के आगे झुकने नहीं दिया।

आज पूर्वी उत्तर प्रदेश में हमारी पहचान है—

# राष्ट्रवादी विचारों का साहसी मंच
#ग्राम से महानगर तक हर स्वर का प्रहरी
# सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक विसंगतियों का प्रखर विश्लेषक
# बौद्धिक विमर्श की धरोहर

हम संघर्ष करते रहे…
हम लिखते रहे…
हम जनता की आँख बने रहे…

क्योंकि लोकतंत्र की असली शक्ति जनता है
और जनता की शक्ति—सत् पत्रकारिता।

 चुनौतियों के बीच अडिग सफ़र

इन 16 वर्षों में हमने देखे—

• राजनीतिक दबाव
• आर्थिक संकट
• डिजिटल मीडिया की प्रचंड प्रतिस्पर्धा
• संस्थागत उपेक्षाएँ
• सत्य बोलने की कीमतें

परंतु पत्रकारिता का धर्म हमें सदैव प्रेरित करता रहा—
“अडिग रहो, समर्पित रहो, निष्पक्ष रहो।”

हम डरे नहीं—
क्योंकि आप हमारे पीछे खड़े थे।

 विचारधारा जो जोड़ती है, तोड़ती नहीं

हमारे यहाँ—
♦ संप्रदाय नहीं, समरसता की बात होती है
♦ वाद नहीं, संवाद को प्राथमिकता मिलती है
♦ जाति नहीं, मनुष्यत्व की प्रतिष्ठा होती है
♦ विभाजन नहीं, राष्ट्र सर्वोपरि होता है

हमारे लिए पत्रकारिता केवल व्यवसाय नहीं—
यह व्रत है, यह साधना है।

 सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वासय,ह नारा हमारे लिए राजनीतिक नहीं—यह सम्पादकीय सिद्धांत है।

हम हर उस मुद्दे को उठाते रहे जो— गरीब की आशाओं से जुड़ा होकि,सान की पीड़ा दर्शाता हो ,युवाओं की संभावनाओं को स्वर देता हो,मातृशक्ति के सशक्तिकरण के रास्ते खोलता हो ,सामाजिक विषमताओं और भ्रष्टाचार पर चोट करता हो

क्योंकि हम मानते हैं—“समाज बदले बिना राष्ट्र का विकास संभव नहीं

 लोकतंत्र में मीडिया का आत्मसम्मानमी,डिया चौथा स्तंभ है—प,र जब यह स्तंभ ही कमजोर हो जाएतो,लोकतंत्र डगमगाने लगता है।

इसलिए हमारी लड़ाई है—

• सत्य पर स्थापित आत्मसम्मान की• कलम की स्वतंत्रता की• पत्रकार के जीवन-सम्मान की और यह लड़ाई हम हमेशा लड़ते रहेंगे।

 सत्रहवें वर्ष का संकल्प,अब जब हम इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर खड़े हैं—

हमारा संकल्प है—

 तथ्य आधारित प्रखर पत्रकारिता को और मजबूत करना,तकनीकी परिवर्तन के साथ डिजिटल विस्तार
शोधपत्रकता और गहन विश्लेषण पर विशेष ध्यान,युवा पत्रकारों को मंच देना दूरदराज़ क्षेत्रों की आवाज़ को सशक्ति प्रदान करना, जनसरोकार और राष्ट्रहित को सर्वोच्च प्राथमिकता

यह केवल हमारा नहीं—आपका संकल्प है,आप आमंत्रित हैं,प्रिय पाठक,हमारी यात्रा अकेले की यात्रा नहीं हो सकती—आपकी सदाश्यता आपका सुझाव,

आपकी सहभागिताही कौटिल्य का भारत का वास्तविक बल है।हम आपको सादर आमंत्रित करते हैं—

 इस विचारधारा के सहयात्री बनें, इस राष्ट्रनिर्माण अभियान का अंग बनें, अपने समाचारपत्र को अपना परिवार बनाएं अंत में…

कृतज्ञता शब्द छोटा है,पर हृदय की भावना असीम।आपके विश्वास, स्नेह और संरक्षण कोहम नमन करते हैं।

सत्रहवाँ वर्षहम सबका वर्ष है—लोकशक्ति, लोकतंत्र और लोकमंगल का वर्ष।

सम्पादक 

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