शनिवार, 1 नवंबर 2025

केंद्र, राज्य सरकारों से शिक्षकों का एक ही सवाल, शिक्षक ही निशाने पर हमेशा क्यों?, उदय शकर शुक्ल






 बस्ती यह आंदोलन केवल प्रशासनिक मांगों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें राज्य और केंद्र की शिक्षा नीतियों के प्रति गहरी असहमति और शिक्षा व्यवस्था की जमीन से जुड़ी समस्याओं की ओर भी इशारा है। शिक्षकों द्वारा ऑनलाइन हाजिरी और टेट अनिवार्यता के विरुद्ध यह विरोध प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था और शिक्षक अधिकारों के बीच गहरे टकराव को उजागर करता है.

आलोचनात्मक विश्लेषणनीतिगत प्रश्न: ऑनलाइन उपस्थिति और टेट अनिवार्यता दोनों शिक्षक समाज की व्यावहारिक समस्याओं का समाधान करने के बजाय एकतरफा ‘ई-नियम’ थोपने की कोशिश हैं। जिला स्तर के प्रधानाचार्य तक इसे अव्यवहारिक और अविश्वास का प्रतीक बता रहे हैं, क्योंकि संसाधनों की कमी और तकनीकी दिक्कतें पहले ही शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित कर रही हैं.

शिक्षक असंतोष: वेतन काटने, अनुशासनात्मक कार्रवाई और ऊपर से नीचे तक दबाव बनाने की शैली ने शिक्षकों में जबरदस्त असंतोष और असुरक्षा की भावना पैदा की है। यह सिर्फ माँग पत्र और हस्ताक्षर अभियान तक सीमित नहीं है, बल्कि काली पट्टी बांधकर शिक्षण और लगातार चरणबद्ध आंदोलन दर्शाते हैं कि गहरी नाराजगी व्याप्त है।शिक्षा का वास्तविक संकट: सरकारी आदेशों और अदालत के निर्देशों की आड़ में शिक्षकों के प्रति व्यवस्था का अविश्वास उनके मनोबल और स्कूलों के संचालन, दोनों के लिए नुकसानदेह है। 

बच्चों की पढ़ाई, स्कूलों की तकनीकी कमज़ोरी, ग्रामीण इलाकों की कमजोर डिजिटल पहुँच आदि व्यावहारिक पहलुओं की चर्चा या समाधान कम ही दिखता है, जो इस पूरे उपक्रम को सरकार बनाम शिक्षक का संघर्ष बना देता है।सामूहिकता: यह आंदोलन व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामूहिक स्वरूप का है—हस्ताक्षर अभियान, पैदल मार्च, ज्ञापन, काली पट्टी, धरना सब मिलकर नीति की खामियों के विरुद्ध शिक्षा जगत की एकजुटता दिखा रहे हैं।निष्कर्षसरकार को चाहिये कि शिक्षकों की जमीनी समस्याओं और व्यवहारिक कठिनाइयों को समझते हुए किसी भी नीति या आदेश पर संवाद और सहमति की प्रक्रिया अपनाए। एकतरफा, अव्यवहारिक और अविश्वासी निर्णय से शिक्षा व्यवस्था को दीर्घकालीन नुकसान होने की पूरी संभावना है।

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