शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025

आयातित आंदोलन: भारत की दिशा और दशा बदलने की साजिश

आयातित आंदोलन: भारत की दिशा और दशा बदलने की साजिश?


भारत आज एक निर्णायक मोड़ पर है। एक ओर आत्मनिर्भरता, तकनीकी क्रांति और विश्वगुरु बनने की दिशा में बढ़ता राष्ट्र है; दूसरी ओर कुछ ऐसे तत्व हैं जो इस उभरते भारत को अस्थिर करने की कोशिशों में जुटे हैं। इन कोशिशों का नया नाम है— “आयातित आंदोलन”

ये आंदोलन न भारत की मिट्टी से उपजे हैं, न भारतीय संवेदना से जुड़े हैं। ये आंदोलनों की “डिजिटल पीढ़ी” हैं— जिनकी जड़ें विदेशी थिंक टैंक, फंडिंग एजेंसियों और प्रचारतंत्र में दबी हैं। उद्देश्य साफ़ है— भारत की स्थिरता को हिलाना, युवाओं को भ्रमित करना, और लोकतंत्र को अपने स्वार्थ की प्रयोगशाला बनाना।

  विदेशी प्रभाव की नई रणनीति,21वीं सदी का युद्ध बंदूक या मिसाइल से नहीं, सूचना और भ्रम से लड़ा जा रहा है। पहले देशों पर बम गिरते थे, अब ट्वीट गिरते हैं। पहले सेनाएँ आती थीं, अब “हैशटैग” आते हैं।भारत के खिलाफ जो विचार युद्ध चल रहा है, वह किसी सीमापार देश का नहीं बल्कि एक विचारधारात्मक गठजोड़ का है। यह गठजोड़ जानता है कि भारत की सेना को हराना असंभव है, इसलिए अब उसकी “जनता” को भटकाने की कोशिश की जा रही है।इन विदेशी एजेंसियों को पता है कि भारत की युवा शक्ति ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है। इसलिए अब उनकी रणनीति है— युवा को ही युवा के खिलाफ खड़ा करना। Gen-Z की आड़ में आग,पिछले कुछ वर्षों में हमने देखा कि कैसे कुछ आंदोलनों ने अचानक सोशल मीडिया से जन्म लिया, कुछ ही दिनों में देशभर में फैल गए और फिर हिंसा या अराजकता में समाप्त हो गए।

इन सबके पीछे एक पैटर्न दिखता है—

  1. एक भावनात्मक नारा,
  2. कुछ वीडियो और पोस्ट्स जो “वायरल” किए जाते हैं,
  3. विदेशी मीडिया में भारत-विरोधी नैरेटिव,
  4. और अंत में कुछ NGO और राजनीतिक दल जो इस आग को हवा देते हैं।

यह सब संयोग नहीं, बल्कि एक सोचा-समझा “हाइब्रिड वार” है। ये “आंदोलन” युवाओं के जोश का उपयोग “राष्ट्र के खिलाफ” करने की कोशिश हैं।

 फंडिंग की अदृश्य जाल“ आयातित आंदोलन” का सबसे खतरनाक पहलू है— विदेशी फंडिंग।कई एनजीओ और संस्थाएँ जो मानवाधिकार, पर्यावरण या सामाजिक न्याय के नाम पर काम करती हैं, उनके फंडिंग स्रोत अस्पष्ट हैं। रिपोर्ट्स बताती हैं कि कई विदेशी संगठनों के पैसे भारत में “प्रचार” के रूप में आते हैं और “अराजकता” के रूप में खर्च होते हैं।ये संस्थाएँ भारतीय लोकतंत्र को “कमज़ोर” नहीं, “संशयास्पद” बनाना चाहती हैं ताकि वैश्विक मंचों पर भारत की छवि धूमिल हो।

  मनोवैज्ञानिक युद्ध और मीडिया की भूमिका,भारत के खिलाफ चल रहा यह युद्ध केवल सड़कों पर नहीं, स्क्रीन पर लड़ा जा रहा है।अंतरराष्ट्रीय मीडिया का एक वर्ग हर उस मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाता है जिससे भारत की एकता पर प्रश्न उठे।कभी “अल्पसंख्यक खतरे में”, कभी “लोकतंत्र संकट में”— यही उनकी स्थायी सुर्खियाँ हैं।लेकिन सच्चाई यह है कि भारत का लोकतंत्र दुनिया के सबसे मजबूत लोकतंत्रों में से एक है। यहाँ हर विचार को जगह मिलती है, लेकिन ग़लत सूचना और देशविरोध को लोकतंत्र का हिस्सा नहीं कहा जा सकता।

 युवाओं को समझना होगा खेल,भारत का Gen-Z यानी नई पीढ़ी समझदार है, लेकिन उसके सामने सूचना का विस्फोट है।हर दिन लाखों वीडियो, ट्वीट, पोस्ट उसके मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं।उसे यह जानना होगा कि कौन-सी जानकारी सही है और कौन-सी “डिजिटल जहर”।

जो शक्तियाँ भारत को कमजोर देखना चाहती हैं, वे जानती हैं कि जब तक युवा देशभक्त है, भारत अजेय है। इसलिए वे “देशभक्ति” को “अंधराष्ट्रवाद” और “कर्तव्य” को “कट्टरता” कहकर भ्रम फैलाती हैं।यह वैचारिक विष धीरे-धीरे युवा मन को खोखला करता है। इसलिए जरूरी है कि हर भारतीय युवा यह पहचाने कि असली आज़ादी वही है जो भारत के संविधान और संस्कृति के अनुरूप हो— न कि विदेशी एजेंडा से प्रेरित।

 राष्ट्रवाद ही उत्तर है,भारत की एकता का मूल मंत्र है— विविधता में एकता।जो शक्तियाँ इसे तोड़ना चाहती हैं, वे कभी जाति, कभी धर्म, कभी भाषा का इस्तेमाल करती हैं।लेकिन हर बार भारत ने यह साबित किया है कि वह किसी “बाहरी ठेकेदार” की डोर पर नहीं नाचेगा।राष्ट्रवाद कोई नारा नहीं, यह भारत के अस्तित्व की आत्मा है।जब कोई आंदोलन देश के संविधान और समाज की मर्यादा को पार कर “विदेशी हितों” के लिए काम करने लगे, तो वह आंदोलन नहीं, आयातित अशांति है।

 भारत की सुरक्षा—सिर्फ सीमाओं पर नहीं, विचारों में भी,सेना हमारी सीमाओं की रक्षा करती है, लेकिन विचारों की रक्षा हम सबको करनी है।भारत के खिलाफ अब युद्ध दिमाग़ों में लड़ा जा रहा है— सोशल मीडिया पर, कॉलेज कैंपसों में, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर।अगर आज हम सतर्क नहीं हुए, तो कल यह “विचार युद्ध” हमारी आंतरिक स्थिरता को तोड़ देगा।इसलिए यह समय है कि भारत का हर नागरिक “सूचना का सिपाही” बने।हर अफवाह से पहले तथ्य की जांच करे, हर आंदोलन से पहले उसके उद्देश्य को समझे।

 नया भारत—आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी और अडिग,आज का भारत किसी बाहरी स्क्रिप्ट पर नहीं चलता।यह भारत अपने स्वदेशी विवेक से निर्णय लेता है, अपनी जनता के विश्वास से चलता है।यह वह भारत है जो एक ओर डिजिटल क्रांति का नेतृत्व कर रहा है और दूसरी ओर संस्कृति और अध्यात्म का प्रहरी बना हुआ है।यह भारत न झुकेगा, न टूटेगा।क्योंकि इसकी जड़ें इस धरती में हैं— उन ऋषियों, वीरों और किसानों के पसीने में जिन्होंने इसे सींचा है।

 आयातित आंदोलन चाहे कितने भी सुन्दर नारे लेकर आएँ—वो भारत की आत्मा को नहीं हिला सकते।भारत का भविष्य विदेशी भाषणों से नहीं, भारतीय युवाओं की मेहनत से तय होगा।यह देश न किसी “ठेकेदार” का है, न किसी “प्रायोजक” का— यह देश हम सबका है।और जब तक भारत की जनता जागरूक है,जब तक युवा अपने विवेक से सोचता है,तब तक कोई विदेशी विचार, कोई डिजिटल एजेंडा,भारत की दिशा और दशा नहीं बदल सकता।

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