रावण दस शीश था, आज का रावण सहशस्त्र शिर्षा
@कौटिल्य वार्ता
सत्येंद्र सिंह भोलू
आज का भारत एक ऐसे दौर से गुजर रहा है, जहाँ राजनीति का अर्थ “सेवा” नहीं बल्कि “स्वार्थ” बन चुका है। सत्ता पाने की भूख ने नेताओं की नीयत को इस कदर निगल लिया है कि देशहित अब सिर्फ भाषणों की शोभा बनकर रह गया है। ऐसे में जब हम इतिहास के पन्ने पलटते हैं, तो एक नाम उभर कर आता है — रावण। वही रावण, जिसे परंपरागत रूप से बुराई का प्रतीक माना गया, पर जिसने अपने देश, अपनी धरती, और अपने सिद्धांतों के साथ कभी गद्दारी नहीं की।
आज के नेताओं से उसकी तुलना करने पर यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि रावण कहीं अधिक देशभक्त, ज्ञानवान और आत्मसम्मानी था।
रावण को अक्सर “लंकाधिपति राक्षस” कहा गया। लेकिन रावण केवल एक राक्षस नहीं था — वह एक महान विद्वान, संगीतज्ञ, ज्योतिषाचार्य और शिवभक्त था। उसकी विद्वत्ता इतनी थी कि स्वयं भगवान शिव ने उसे “रावण संहिता” जैसी अमूल्य ज्ञानग्रंथ की प्रेरणा दी।
उसने लंका को सोने की नगरी बनाया, अपने राज्य को समृद्ध और सुरक्षित रखा। रावण ने न कभी अपने प्रजा से छल किया, न अपने देश को विदेशी शक्तियों के सामने झुकाया। वह अपनी धरती, अपनी संस्कृति, अपने आत्मसम्मान के लिए अंतिम क्षण तक डटा रहा।
इसके उलट, आज के कई नेता सत्ता के लिए विदेशी एजेंसियों से सांठगांठ करते हैं, देश के हितों की सौदेबाज़ी करते हैं, और जनता को सिर्फ वोट बैंक समझते हैं। अगर तुलना करें, तो रावण की हार “नीति” से हुई थी, लेकिन आज के नेताओं की हार “चरित्र” से होती है.
रावण का राष्ट्रवाद और आज की राजनीति का पतन
रावण के शासन में लंका एक शक्तिशाली और समृद्ध राष्ट्र था। वहाँ की जनता सुरक्षित थी, व्यापार फल-फूल रहा था, और न्याय व्यवस्था मजबूत थी। उसने अपने देश की एकता और गौरव को सर्वोपरि रखा।
उसने कभी अपने राज्य की सीमाएं किसी विदेशी के हाथ नहीं सौंपीं। उसने अपने दुश्मनों से भी युद्ध में नीति और मर्यादा रखी — न छल, न दगा।
आज के नेता क्या ऐसा कह सकते हैं?
आज संसद में झूठ, झगड़ा और जातीय राजनीति का बोलबाला है। एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में ये नेता देश की छवि मिट्टी में मिला रहे हैं।
रावण ने कभी अपनी शक्ति का दुरुपयोग जनता को कुचलने के लिए नहीं किया; उसने धर्म का अपमान नहीं किया — बल्कि उसके कर्म उसके स्वाभिमान से प्रेरित थे।
आज के नेता धर्म का भी इस्तेमाल वोट की राजनीति के लिए करते हैं। उनके लिए मंदिर-मस्जिद मुद्दे हैं, लेकिन भूख, बेरोज़गारी और किसान आत्महत्याएं नहीं।
रावण की नीति और नैतिकता:
रावण ने सीता का हरण अवश्य किया, परंतु उसने उनकी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया।
यह उसकी सबसे बड़ी नैतिक शक्ति थी — वह अपने दुश्मन की पत्नी का सम्मान करता रहा।
क्या आज के नेता अपने विरोधियों की बहनों, बेटियों, या परिवार की इज़्ज़त करते हैं?
आज सोशल मीडिया से लेकर संसद तक, भाषा का स्तर इतना गिर चुका है कि नैतिकता राजनीति से निर्वासित हो गई है।
रावण ने कभी भी अपने मंत्रियों को रिश्वत या डर से नहीं चलाया। उसकी सभा में विद्वानों का सम्मान होता था, चाटुकारों का नहीं। आज की सरकारों में स्थिति उलट है — जो सच्चाई बोलता है, उसे दबाया जाता है; जो चाटुकार है, उसे पद और पुरस्कार मिलते हैं। रावण ने अपने दुश्मन राम से भी कभी पीठ पीछे वार नहीं किया। उसने युद्धभूमि में आमने-सामने लड़ाई लड़ी, जबकि आज के नेता जनता के पीठ पीछे समझौते करते हैं।
सत्ता की भूख बनाम रावण का आत्मसम्मानरा,रावण जानता था कि उसका अंत निश्चित है, फिर भी उसने युद्ध स्वीकार किया।क्यों?क्यों कि उसके लिए सम्मान, राष्ट्र, और सिद्धांत सत्ता से ऊपर थे।
उसने अपने जीवन की बाज़ी लगा दी, लेकिन झुकना स्वीकार नहीं किया। आज के नेता सत्ता के लिए कुछ भी कर सकते हैं —जाति तोड़ेंगे, धर्म बेचेंगे, देश बाँटेंगे, झूठ बोलेंगे, मीडिया खरीदेंगे।
उनकी भूख अनंत है, और सिद्धांत शून्य।रावण ने अपने बेटे मेघनाद को युद्ध में भेजते समय कहा था
“धर्म की रक्षा करना, चाहे प्राण क्यों न चले जाएं।”
क्या आज कोई नेता अपने पुत्र या परिवार को देश के लिए बलिदान के लिए भेजता है?
आज तो नेता अपने बेटों को विदेश भेजते हैं, और देश को भ्रष्टाचार में डुबो देते हैं।
रावण से सीखने की ज़रूरत हम रावण की पूजा नहीं करते, लेकिन उसके कुछ गुण आज भी प्रेरणादायक हैं:
- देशप्रेम: उसने अपने राज्य के साथ कभी गद्दारी नहीं की।
- विद्वत्ता: उसने ज्ञान और विद्या को सर्वोच्च माना।
- आत्मसम्मान: उसने पराजय स्वीकार की, पर अधर्म नहीं।
- शक्ति और नीति का संतुलन: उसने शासन को भय नहीं, बुद्धि से चलाया।
आज के नेताओं को यह समझना चाहिए कि सत्ता स्थायी नहीं है। राम ने भी रावण का वध किया, परंतु उसके ज्ञान, पराक्रम और साहस का सम्मान किया। वही राम, जिन्होंने लक्ष्मण से कहा था —
“रावण जैसे विद्वान से कुछ सीखो।”
यही वह सीख है जो हमारे नेताओं को आज सबसे ज़्यादा चाहिए।
रावण की बुराइयों से इंकार नहीं किया जा सकता, पर उसके चरित्र में एक बात निर्विवाद है — वह अपने देश का गद्दार नहीं था।उसने कभी अपने स्वार्थ के लिए अपनी भूमि या जनता को नहीं बेचा।आज के नेताओं को रावण से यह सीख लेनी चाहिए कि सत्ता से बड़ा धर्म है — और धर्म से बड़ा देश का सम्मान।जब नेता रावण जैसी राष्ट्रनिष्ठा, मर्यादा और आत्मसम्मान अपनाएँगे, तभी भारत वास्तव में “रामराज्य” बन सकेगा।अन्यथा, जो हालात हैं, उनमें लगता है —“.आज के स्वार्थी नेताओं से तो बेहतर था रावण.

बहुत सुन्दर
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