गुरुवार, 9 अक्टूबर 2025

रेडक्रॉस बस्ती में नैतिक पतन के प्रतीक: डॉ. प्रमोद चौधरी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव,

रेडक्रॉस बस्ती में सेवा नहीं, सत्ता का खेल: डॉ. प्रमोद चौधरी के अहंकार ने संस्था की आत्मा झकझोरी

@रेडक्रॉस बस्ती में नैतिक पतन का प्रतीक: डॉ. प्रमोद चौधरी विवाद पर गंभीर विश्लेषण

@कौटिल्य वार्ता


बस्ती, उत्तरप्रदेश

रेडक्रॉस जैसी पवित्र, मानवीय सेवा संस्था का नाम हमेशा समर्पण, अनुशासन और त्याग के प्रतीक के रूप में लिया जाता रहा है। परंतु बस्ती की रेडक्रॉस सोसायटी में जो घटनाक्रम सामने आया है, उसने इस प्रतिष्ठित संगठन की साख पर गहरी चोट पहुंचाई है। संस्था के दस में से सात सक्रिय सदस्यों द्वारा अपने ही कथित अध्यक्ष डॉ. प्रमोद चौधरी के विरुद्ध जिलाधिकारी बस्ती रवीश गुप्ता को अविश्वास ज्ञापन सौंपना न केवल एक प्रशासनिक कदम है, बल्कि यह एक नैतिक विद्रोह भी है — एक ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध, जो संगठन की आत्मा पर बोझ बन चुका था।

ज्ञापन में लगाए गए आरोप मामूली नहीं हैं। सदस्यों का कहना है कि डॉ. प्रमोद चौधरी अहंकार, अव्यवहारिकता और अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा पर पहुँच चुके थे। जिस संस्था का उद्देश्य पीड़ा हरना और सहयोग देना है, वहाँ उनके व्यवहार ने कटुता, असहजता और विभाजन को जन्म दिया। कहा जा सकता है कि उन्होंने रेडक्रॉस की भावना को व्यक्तिगत अहं की भेंट चढ़ा दिया।

सदस्यों में भाजपा नेता और एमएलसी प्रतिनिधि हरीश सिंह, सरदार कुलविंद्र सिंह, उमेश श्रीवास्तव, संतोष कुमार सिंह, इमरान अली, राहुल श्रीवास्तव और अशोक कुमार सिंह जैसे लोग शामिल हैं — जो स्वयं समाज सेवा से जुड़े हैं। इन सभी का एक स्वर में विरोध यह दर्शाता है कि असंतोष किसी व्यक्तिगत रंजिश का परिणाम नहीं, बल्कि एक सामूहिक चेतना का विस्फोट है।
केवल 221 दिनों में “सोने की लंका” समझे जाने वाले उनके अध्यक्षीय कार्यकाल का ध्वंस होना यह बताता है कि अत्याचार और अहंकार का शासन कभी स्थायी नहीं होता।

ज्ञापन में यह भी कहा गया है कि डॉ. प्रमोद चौधरी में “हठधर्मिता और मानसिक असंतुलन के लक्षण” तक दिखे — जो संस्था की गरिमा और अनुशासन के लिए घातक है। जिलाधिकारी को भेजे इस ज्ञापन की प्रति राज्यपाल, चिकित्सा मंत्री और उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक तक भेजी गई है, जिससे स्पष्ट है कि मामला अब सिर्फ बस्ती की सीमाओं तक सीमित नहीं रहा; यह पूरे प्रदेश में रेडक्रॉस की साख का प्रश्न बन गया है।

यह प्रकरण इस बात का प्रतीक है कि जब संस्थाएँ व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के शिकंजे में फँस जाती हैं, तो उनका नैतिक अधःपतन अनिवार्य हो जाता है। रेडक्रॉस जैसी मानवता की प्रतीक संस्था में अनुशासन और विनम्रता सबसे बड़ी पूँजी होती है। यदि नेतृत्व ही इन्हें त्याग दे, तो संस्था केवल भवन और कुर्सियों का समूह बन जाती है, आत्मा मर जाती है।

अब बस्ती प्रशासन के सामने चुनौती है — न केवल इस विवाद का समाधान करना, बल्कि रेडक्रॉस की विश्वसनीयता को पुनर्स्थापित करना। यह आवश्यक है कि संगठन से ऐसे तत्वों को अलग किया जाए जो व्यक्तिगत लाभ और सत्ता के मद में सेवा के आदर्श को कलंकित कर रहे हैं।

रेडक्रॉस का ध्येय मानवता की सेवा है, न कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा। डॉ. प्रमोद चौधरी प्रकरण इस बात की चेतावनी है कि जब अहंकार सेवा से बड़ा हो जाता है, तो संस्था की आत्मा कराह उठती है — और तब जनमानस न्याय की मांग करता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें