“ईमानदार करदाता का पैसा, बेईमान तंत्र की बलि!”
विद्यालय भवन घोटाला : दो प्रधानाध्यापक निलंबित, पर तंत्र मौन क्यों?
बस्ती।
शिक्षा-विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही ने एक बार फिर साबित कर दिया कि नीतियाँ बनती हैं जनहित में, खर्च होती हैं स्वार्थ में। हरैया ब्लॉक के दो विद्यालयों में भवन-निर्माण कार्यों में की गई गंभीर अनियमितताओं पर दो प्रधानाध्यापकों को निलंबित कर दिया गया है। पर सवाल है — क्या सिर्फ़ दो शिक्षकों को बलि का बकरा बना देने से पूरी व्यवस्था पाक-साफ़ हो जाएग.प्राथमिक विद्यालय गौरसा और जालापुर में कंपोजिट ग्रांट व भवन-निर्माण कार्यों के नाम पर बिना कार्य के खाते से धन निकाल लिया गया। बीईओ की जाँच में पाया गया कि खिड़कियाँ गायब हैं, दीवारें अधूरी हैं और भुगतान पूरा! अर्थात् “ईमानदार करदाता की जेब से निकला धन, लापरवाह अफ़सरों की थाली में।”
गोरखपुर-बस्ती मंडल में शिक्षा-ढाँचा सुधारने के नाम पर हर साल करोड़ों रुपये खर्च होते हैं,पर नतीजा वही — टूटी छतें, गिरी दीवारें, और फाइलों में बने महल।नियंत्रण-तंत्र में बैठे अफ़सर “जाँच-समिति” बनाकर औपचारिकता निभा देते हैं, और अगले साल वही खेल दोहराया जाता है। “सिस्टम नहीं बदला, सिर्फ़ हस्ताक्षर बदले हैं”
जब विद्यालयों में बच्चों को बैठने के लिए बेंच नहीं, दीवारों पर प्लास्टर नहीं,और फिर भी भुगतान पूरा दिखाया जाता है, तो दोष सिर्फ़ प्रधानाध्यापक का नहीं, बल्कि उस पूरी श्रृंखला का है जिसमें बीआरसी, एबीएसए और लेखाधिकारी तक की मिलीभगत झलकती है। क्या कभी किसी इंजीनियर या लेखा-अधिकारी पर कार्रवाई हुई? क्या विभाग यह बताने को तैयार है कि ऐसे भवन-निर्माणों की तकनीकी स्वीकृति किसने दी?
“बाल शिक्षा के नाम पर आर्थिक अपराध” ये प्रकरण महज़ अनियमितता नहीं, बल्कि बाल शिक्षा के नाम पर आर्थिक अपराध हैं। बच्चे आज भी खुले आसमान के नीचे पढ़ रहे हैं, rऔर सरकारी रिकॉर्ड में वे “स्मार्ट क्लास” के विद्यार्थी दिखाए जाते हैं। अब जनता पूछे — जवाबदेही किसकी?सरकार शिक्षा सुधार की घोषणाएँ करती है,पर जब धरातल पर सत्य सामने आता है, तो ज़िम्मेदारी एक-दो व्यक्तियों पर डालकर तंत्र को बचा लिया जाता है।यदि शासन वास्तव में पारदर्शिता चाहता है,तो प्रत्येक विद्यालय-निर्माण कार्य की ऑनलाइन मॉनिटरिंग,और स्थानीय समुदाय की सोशल ऑडिट समिति बनाना आवश्यक है।
“सज़ा व्यक्तियों को नहीं, व्यवस्था को मिले”निलंबन दिखावटी उपचार है, मूल रोग व्यवस्था की निष्ठुरता है।जब तक शिक्षा-तंत्र में “लोक-जवाबदेही” नहीं जोड़ी जाएगी,
तब तक हर नया विद्यालय-भवन पुरानी बेईमानी की नींव पर ही खड़ा होगा।
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