मंगलवार, 14 अक्टूबर 2025

राष्ट्रवाद वनाम आत्मप्रचार / आलोचना राजनैतिक पलिप्सा

 


आरएसएस पर तीन प्रतिबंध लगाने के बाद आत्मदुर्गति की शिकार कांग्रेस के नासमझ नेता आत्मप्रबोधन से विरत हो अरण्य रोदन कर रहे,इसीक्रम में कर्नाटक के मंत्री प्रियंक खरगे द्वारा सरकारी संस्थानों और सार्वजनिक परिसरों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग, संगठन की दृष्टि से राजनीतिक और विचारधारात्मक विवाद का हिस्सा है। आरएसएस स्वयं को किसी राजनीतिक दल का अंग नहीं मानता, बल्कि एक सांस्कृतिक राष्ट्रवादी संगठन समझता है जिसका उद्देश्य भारतीय समाज को संगठन और अनुशासन के माध्यम से सुदृढ़ करना है।सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का आधारआरएसएस का मानना है कि उसकी शाखाएं केवल शारीरिक व्यायाम का स्थान नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण, सेवा भाव और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने का माध्यम हैं।

 संगठन के अनुसार, किसी भी शाखा में जाति, धर्म या वर्ग का भेदभाव नहीं होता, और वहां सभी वर्गों के लोग सम्मिलित हो सकते हैं।प्रतिबंध का इतिहास और जनता का समर्थनआरएसएस के दृष्टि से प्रतिबंध लगाने की कोशिशें नई नहीं हैं। 1948, 1973 और 1975 में आपातकाल के दौरान संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया था। संगठन का दावा है कि हर बार जनता और कार्यकर्ताओं के समर्थन से इन प्रतिबंधों को हटाना पड़ा। 1977 में आपातकाल समाप्त होते ही जनता ने उन नीतियों को नकार दिया जिनमें संगठन पर रोक थी।नकारात्मक विचार के आरोपप्रियंक खरगे का यह आरोप कि शाखाओं में बच्चों और युवाओं के मन में नकारात्मक विचार भरे जाते हैं, आरएसएस के अनुसार निराधार है।

 संगठन का तर्क है कि शाखाओं में देशभक्ति के गीत, नैतिक मूल्यों की शिक्षा, योग और आत्मनियंत्रण का अभ्यास कराया जाता है, जो व्यक्ति के विकास और समाज की एकता के लिए सहायक है।संविधान और एकता पर दृष्टिआरएसएस यह बार-बार स्पष्ट करता है कि उसका कार्य संविधान की मर्यादा में रहकर होता है और भारत की एकता को सुदृढ़ करने के लिए किया जाता है। संगठन मानता है कि विभिन्न सांस्कृतिक परंपराओं को सम्मान देकर ही राष्ट्रीय एकता मजबूत हो सकती है, और यही उसकी गतिविधियों का मूल है।राजनीतिक उद्देश्य का आरोपआरएसएस के विचार में, प्रतिबंध लगाने की मांग अक्सर उन दलों या नेताओं से आती है जो संगठन की जनस्वीकृति और असर से राजनीतिक असुरक्षा महसूस करते हैं। फडणवीस द्वारा उल्लेखित वंशवाद का आरोप भी इसी दृष्टि में फिट बैठता है कि यह बयान राजनीतिक प्रचार की रणनीति का हिस्सा है।निष्कर्षआरएसएस के दृष्टिकोण से प्रियंक खरगे की मांग ऐतिहासिक रूप से विफल रणनीतियों की पुनरावृत्ति है।

 संगठन का मानना है कि उसकी गतिविधियां भारत के लिए सकारात्मक, राष्ट्रवादी और सांस्कृतिक रूप से सशक्त निर्माण की दिशा में होती हैं, और इन्हें राजनीतिक चश्मे से देखना भारतीय समाज के लिए हानिकारक है।

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