संपादकीय: “ऑपरेशन 37” और अफवाहों के युग में सच की जिम्मेदारी
भारतीय समाज आज सूचनाओं के विस्फोट के युग में है। मोबाइल के एक क्लिक पर लाखों संदेश हमारी स्क्रीन पर आते हैं — कुछ तथ्यात्मक, तो बहुत से भावनात्मक। हाल में सोशल मीडिया पर “ऑपरेशन 37” नाम से चल रही एक कथा तेजी से वायरल हो रही है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि विदेशी ताकतें, विशेषकर अमेरिका और उसकी एजेंसियां, भारत की चुनी हुई सरकार को गिराने की साजिश रच रही हैं।
यह कहानी जितनी सनसनीखेज है, उतनी ही अप्रमाणित भी है। न तो किसी सरकारी एजेंसी, न किसी अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीय संस्था ने इस तरह की किसी योजना के अस्तित्व की पुष्टि की है। न ही इसके समर्थन में कोई ठोस दस्तावेज़ या तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं। यह दावा केवल सोशल मीडिया पोस्टों, यूट्यूब वीडियो और राजनीतिक झुकाव वाले ब्लॉगों तक सीमित है।
इस तरह की अपुष्ट कहानियां दोहरा नुकसान करती हैं। पहला — वे जनता में भय और विभाजन का माहौल बनाती हैं। दूसरा — वे हमारे लोकतांत्रिक विमर्श को तथ्य से हटाकर कल्पना और षड्यंत्र की दिशा में मोड़ देती हैं। राष्ट्रवाद और देशभक्ति का अर्थ कभी भी संदेह और नफरत नहीं होता; बल्कि विवेक, संयम और एकता उसका असली स्वरूप है।
भारत आज दुनिया की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक शक्ति है। हमारी संस्थाएं, मीडिया, न्यायपालिका और नागरिक समाज — सब मिलकर लोकतंत्र की रक्षा करते हैं। यदि कोई भी विदेशी या देशी ताकत इस व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश करेगी, तो उसकी जांच और कार्रवाई के लिए हमारे पास पर्याप्त तंत्र मौजूद हैं। इसलिए डरने की नहीं, बल्कि सचेत और जिम्मेदार बनने की जरूरत है।
हर नागरिक की यह जिम्मेदारी है कि वह किसी भी संदेश को फॉरवर्ड करने से पहले उसकी सत्यता जांचे। अफवाहें राष्ट्रभक्ति नहीं होतीं, वे केवल असत्य का बोझ बढ़ाती हैं। डिजिटल नागरिकता का पहला नियम यही है — सोचो, परखो, फिर साझा करो।
भारत की ताकत उसकी एकता, विविधता और विवेक में है। अफवाहें जितनी तेज़ चलें, उतनी ही ज़रूरत है कि हम शांत रहें और सच्चाई का साथ दें।
– संपादकीय मंडल,

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