वरिष्ठ नागरिक दिवस
:वरिष्ठ नागरिक: अनुभव की थाती, समाज की असली पूँजी
भारतवर्ष में 1 अक्तूबर को ‘वरिष्ठ नागरिक दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि हमारे जीवन में सबसे अनुभवी, संस्कारवान और त्यागमयी वर्ग को याद करने का अवसर है। वरिष्ठ नागरिक वे हैं जिन्होंने अपने जीवन का स्वर्णिम समय परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित किया। उन्होंने अपनी मेहनत और पूँजी से आने वाली पीढ़ियों के लिए नींव रखी।
लेकिन आज का सबसे बड़ा सवाल यही है – कौन पूछता है वरिष्ठ नागरिकों को?
तेज़ रफ्तार ज़िन्दगी में अक्सर बुजुर्ग उपेक्षित हो जाते हैं। जिनके कंधों पर कभी पूरे घर की जिम्मेदारी थी, वही आज अकेलेपन और असुरक्षा से जूझते दिखते हैं
वरिष्ठ नागरिक: अनुभव की थाती, समाज की असली पूँजी
भारतवर्ष में 1 अक्तूबर को ‘वरिष्ठ नागरिक दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि हमारे जीवन में सबसे अनुभवी, संस्कारवान और त्यागमयी वर्ग को याद करने का अवसर है। वरिष्ठ नागरिक वे हैं जिन्होंने अपने जीवन का स्वर्णिम समय परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित किया। उन्होंने अपनी मेहनत और पूँजी से आने वाली पीढ़ियों के लिए नींव रखी।
लेकिन आज का सबसे बड़ा सवाल यही है – कौन पूछता है वरिष्ठ नागरिकों को?
तेज़ रफ्तार ज़िन्दगी में अक्सर बुजुर्ग उपेक्षित हो जाते हैं। जिनके कंधों पर कभी पूरे घर की जिम्मेदारी थी, वही आज अकेलेपन और असुरक्षा से जूझते दिखते हैं।
दरअसल, वरिष्ठ नागरिक केवल अपने परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक जीवित विश्वविद्यालय हैं। उनका अनुभव आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन कर सकता है। उनकी सेवा करना, उनके प्रति सम्मान रखना केवल संस्कार ही नहीं बल्कि कर्तव्य है।
वरिष्ठ नागरिकों को भी चाहिए कि वे खुद को केवल परिवार तक सीमित न रखें। जीवन का यह पड़ाव आत्मसंतोष और आत्मविकास का होना चाहिए। स्वस्थ, मस्त और व्यस्त रहकर वे न सिर्फ अपनी जिन्दगी को आनंदमय बना सकते हैं, बल्कि समाज में नई ऊर्जा भी भर सकते हैं। किताबें पढ़ना, कला-संस्कृति, योग, खेल और सामाजिक संगठनों से जुड़ना इस उम्र की नीरसता को तोड़ सकता है।
परिवारों को भी यह समझना होगा कि बुजुर्ग बोझ नहीं, बल्कि आशीर्वाद होते हैं। उनसे उम्मीदें कम रखें, लेकिन उनका सम्मान अधिक करें। उनकी देखभाल केवल सेवा नहीं, बल्कि अपने भविष्य का भी संरक्षण है – क्योंकि आज के युवा ही कल के वरिष्ठ नागरिक बनेंगे।
इसलिए अब यह सोच बदलनी होगी कि वरिष्ठ नागरिकों को कोई नहीं पूछता। दरअसल, वरिष्ठ नागरिक खुद अपनी शक्ति हैं और समाज की सच्ची पूँजी भी।
उनकी मुस्कान और अनुभव से ही परिवार और समाज की नींव मजबूत रह सकती है।
“वरिष्ठ नागरिक बोझ नहीं, अनुभव की थाती हैं; उनका सम्मान ही सच्ची मानवता है।”
वरिष्ठ नागरिकों को भी चाहिए कि वे खुद को केवल परिवार तक सीमित न रखें। जीवन का यह पड़ाव आत्मसंतोष और आत्मविकास का होना चाहिए। स्वस्थ, मस्त और व्यस्त रहकर वे न सिर्फ अपनी जिन्दगी को आनंदमय बना सकते हैं, बल्कि समाज में नई ऊर्जा भी भर सकते हैं। किताबें पढ़ना, कला-संस्कृति, योग, खेल और सामाजिक संगठनों से जुड़ना इस उम्र की नीरसता को तोड़ सकता है।
परिवारों को भी यह समझना होगा कि बुजुर्ग बोझ नहीं, बल्कि आशीर्वाद होते हैं। उनसे उम्मीदें कम रखें, लेकिन उनका सम्मान अधिक करें। उनकी देखभाल केवल सेवा नहीं, बल्कि अपने भविष्य का भी संरक्षण है – क्योंकि आज के युवा ही कल के वरिष्ठ नागरिक बनेंगे।
इसलिए अब यह सोच बदलनी होगी कि वरिष्ठ नागरिकों को कोई नहीं पूछता। दरअसल, वरिष्ठ नागरिक खुद अपनी शक्ति हैं और समाज की सच्ची पूँजी भी।
उनकी मुस्कान और अनुभव से ही परिवार और समाज की नींव मजबूत रह सकती है।

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